Powered by

Latest Stories

Homeगाँव-घर

गाँव-घर

डेनमार्क के प्राइमरी स्कूलों में दिया जाता है राजस्थान के इस गाँव का उदाहरण!

''एक वक्त था जब हमारे गाँव की पहाड़ियां हरियाली और सुंदरता में कश्मीर की वादियों जैसी थी। आमजन के लालच, अंधाधुंध वनौषधियों के संग्रहण, वनों द्वारा प्राप्त उपज के अतिदोहन, इमारती लकड़ी की कटाई और बेतरतीब ढंग से मार्बल खानों की खुदाई, अनियंत्रित पशु चराई के कारण यह पहाड़ियां खाली होती चली गई। मैं सोचता हूँ कि कड़े से कड़े कानून भी इस तरह के प्राकृतिक विनाश को रोकने में कारगर साबित नहीं हो सकते।''

कभी दिन के रु. 50 के लिए करते थे मजदूरी, आज किसानी से साल का टर्नओवर हुआ 50 लाख!

By मानबी कटोच

द बेटर इंडिया के माध्यम से किसान गंसू महतो सभी किसानों से अनुरोध करते हैं कि यदि उन्हें किसानी में कोई भी समस्या हो, तो वे बेझिझक गंसू जी को फोन कर सकते हैं या उनसे मिलने उनके घर जा सकते है।

इन महिला किसानों से सीखिए खेती और पशुपालन के नए तरीके, होगा मुनाफ़ा!

सुधा को डेयरी क्षेत्र में सराहनीय काम करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार से लगातार 4 बार गोकुल पुरस्कार भी मिल चुका है। सुधा आज गाँव की दूसरी महिलाओं को भी डेयरी का संचालन करना सिखा रही हैं।

सरपंच ने गाँववालों से लगवाए 5 लाख पौधे, अब गाँव की हर बेटी के नाम है लाखों की एफडी!

इस गाँव में जन्म लेने वाली हर कन्या के नाम पर उसके परिजनों और ग्रामीणों द्वारा 111 पौधे लगाए जाते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि अब तक 93,000 से अधिक पौधे पेड़ बन चुके हैं।

खेती से करोड़ों कमाने वाला यह किसान, अब दूसरे किसानों की आय दुगनी करने में करता है मदद!

आज की तारीख़ में वे 6500 किसानों के साथ मिलकर 60 से अधिक फार्मेसियों को आयुर्वेदिक महत्व की जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ उपलब्ध करवा रहे हैं।

इंदिरा गाँधी से लेकर ऐश्वर्या राय तक ने पहनी हैं इस छोटे से टापू पर बसे गाँव में बनी साड़ियाँ !

इन साड़ियों को पहली बार तब राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली, जब पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन्हें पहनना शुरू किया। इन साड़ियों को बनाने वाले कई कारीगरों को भारत के नागरिक पुरस्कार भी मिल चुके हैं।

इस हैदराबादी की वजह से आज बिहार के पूर्णिया में हैं आम, लीची और अमरुद के बागान!

By Site Default

अनंत सत्यार्थी की नर्सरी में उनके बेटे से बातचीत करते हुए लगा मानो हम बिहार से आंध प्रदेश की यात्रा कर रहे हैं।

बिहार का पहला खुला शौच-मुक्त गाँव अब है बेफ़िक्र-माहवारी गाँव भी; शिक्षकों ने बदली तस्वीर!

बिहार में केवल 15-25 साल की केवल 31 प्रतिशत महिलाएं ही सुरक्षित रूप से अपने माहवारी का प्रबंधन करती है। ऐसे में इस तरह के सकारात्मक पहल हमें एक नए भविष्य की उम्मीद दिलाते हैं, जहाँ किशोरियों को भी बिना किसी भेद-भाव के अपने अधिकार मिले और वे लड़कों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल सकें!