कर्नाटक की रहने वाली रोजा रेड्डी ने ऑर्गेनिक खेती के लिए अपनी कॉर्पोरेट जॉब छोड़ दी। अपनी बंजर ज़मीन पर ऑर्गेनिक खेती करने का फैसला किया और आज इस क्षेत्र में न केवल महारत हासिल की है, बल्कि हर साल करोड़ रुपये भी कमा रही हैं।
उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में जन्मे चंद्रशेखर पांडे अपनी पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ रोज़गार की तलाश में सपनों की नगरी मुंबई में जा बसे. शहर में वह अपने सभी अरमान पूरे करते हुए तरक्की कर रहे थे, लेकिन इस बीच गांव और अपनी मिट्टी के लिए लगाव भी बढ़ता रहा। जानें 22 साल बाद आख़िर ऐसा क्या हुआ कि नौकरी छोड़कर वह वापस गांव लौट आये.
उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर जिले के खुरपी गांव में 32 वर्षीय सिद्धार्थ राय, एक एग्रो-टूरिज्म सेंटर चला रहे हैं, जहां आपको तालाब, मुर्गियां, घोड़े, ऊंट, बत्तख सहित कई जानवर मिलेंगे और ये सभी सिद्धार्थ की आय का ज़रिया भी हैं। उन्होंने इस काम की शुरुआत, एक समय पर नौकरी छोड़कर का थी।
राजकोट के 30 वर्षीय रसिक नकुम ने साल 2013 में टीचर की नौकरी के साथ-साथ हाइड्रोपोनिक तरीके से सब्जियां उगाना शुरू किया था। वहीं, पिछले चार सालों से वह नौकरी छोड़कर एक कृषि एक्सपर्ट के तौर पर काम कर रहे हैं। पढ़ें, कैसे हुआ यह सब मुमकिन।
मिलिए टिहरी गढ़वाल के एक छोटे से गांव भैंसकोटी में रहनेवाले कुलदीप बिष्ट और उनके मित्र प्रमोद जुयाल से, जो कभी पढ़ाई और काम के लिए शहर चले गए थे। लेकिन आज गांव में रहकर ही मशरूम की खेती कर रहे हैं और इससे लाखों का मुनाफा भी कमा रहे हैं।
मिलिए भोपाल (मध्य प्रदेश) के 26 वर्षीय हर्षित गोधा से, जिन्होंने यूके से BBA की पढ़ाई करने के बाद, भारत आकर एवोकाडो उगाना शुरू किया। जानिए क्यों और कैसे?
कई साल मेहनत करने के बाद, राजस्थान की रहनेवाली संतोष पचर ने गाजर के बीजों की एक नई किस्म विकसित करने में सफलता पाई। बीज की नई किस्म से हजारों दूसरे किसानों को भी काफी मदद मिल रही है।
14 साल में पहली बार इंजीनियर तुकाराम सोनवणे और उनकी पत्नी सोनल वेलजाली अपने गांव आए। यहां गांववालों की परेशानी देखते हुए दोनों ने एक ‘इलेक्ट्रिक बुल’ बनाया और खेती से जुड़ी कई समस्याओं का हल निकालने की कोशिश की।
इलेक्ट्रॉनिक कार और स्कूटर के बाद जामनगर के एक किसान महेश भुत ने ई-ट्रैक्टर ‘व्योम’ बनाया है, जिसकी मदद से उनका खेती का खर्च 25 प्रतिशत तक कम हो गया है। इस ट्रैक्टर को देशभर से ऑर्डर्स मिल रहे हैं ।