Gujrat के साबरकांठा जिले की जेठीपुरा ग्राम पंचायत देश की आदर्श ग्राम पंचायतों में से एक है। गाँव के सरपंच अहसान अली बट्ट के नेतृत्व में पिछले 7 सालों में बहुत से विकास कार्य हुए हैं। गाँव का अपना कुआ, आरओ प्लांट, मेडिकल स्टोर, अस्पताल आदि हैं।
किसानों की समस्या को जड़ से मिटाने के लिए देश में आज उन्हें जैविक खेती की ओर मोड़ा जा रहा है, जिसमें किसी भी रसायन का प्रयोग न हो। पर यह समस्या तब तक हल नहीं हो सकती जब तक किसान विदेशी बीज अथवा कृतृम बीजों का इस्तेमाल करता रहेगा।
गुजरात ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑगमेंटेशन नेटवर्क में सीनियर मैनेजर का पद संभाल रहे अलज़ुबैर सैयद ने भारत के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में ईंधन की समस्या पर काम करते हुए 'सोलर कुकिंग अभियान' शुरू किया है। उन्होंने अब तक 100 से भी ज़्यादा गांवों में जाकर लोगों को सौर कुकर बनाना सिखाया है।
राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में स्थित ग्राम पंचायत घमुड़वाली आज देश की स्वच्छ और हरित ग्राम पंचायतों में शामिल होती है। यहाँ के सरपंच राजाराम जाखड़ के नेतृत्व में गाँव में बहुत से विकास कार्य हुए हैं और आगे भी जारी हैं। इन विकास कार्यों को देखते हुए ही घमुड़वाली गाँव को निर्मल गाँव होने का सम्मान प्राप्त है।
छत्तीसगढ़ में महासमुंद जिले के पिथौरा ब्लॉक में स्थित ग्राम पंचायत सपोस पूरे भारत में एक आदर्श ग्राम पंचायत की मिसाल पेश कर रही है। ग्राम पंचायत सपोस के अंतर्गत दो गाँव, सपोस और गबौद आते हैं। इन दोनों गांवों के विकास के लिए ग्राम पंचायत उम्दा कार्य कर रही है।
गुजरात के साबरकांठा जिले के दरामली गाँव को स्वच्छता के साथ-साथ, देश का प्रथम 'कौशल्य गाँव' होने के का भी सम्मान प्राप्त है। इस गाँव की सरपंच, देसाई हेतल बेन अंकुर भाई हैं। उनके कार्यों से प्रेरित होकर ही उत्तर-प्रदेश के हसुड़ी औसानपुर गाँव के सरपंच दिलीप त्रिपाठी ने भी अपने गाँव का विकास किया है।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र में शाहबाद मारकंडा जिले के डगाली गाँव से ताल्लुक रखने वाले करण सीकरी, एक प्रगतिशील किसान और उद्यमी हैं। उन्होंने साल 2004 में सीकरी फार्म्स की शुरुआत की और आज उनका बनाया जैविक खाद हरियाणा के आलावा पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर तक जाता है।
राजस्थान में एक किसान के बेटे 20 वर्षीय नारायण लाल गुर्जर ने फलों के छिलकों का इस्तेमाल कर एक प्राकृतिक सुपर एब्जॉर्बेंट पॉलिमर बनाया है। यह राजस्थान में बारिश की कमी के कारण सूखती ज़मीन और फिर कम उत्पादन जैसी समस्याओं का हल है। जैविक कचरे से बना यह पदार्थ इको-फ्रेंडली है।