साल 2019 में, बीटेक सेकंड ईयर की पढ़ाई के समय विशाल श्रीवास्ताव ने सूखा प्रभावित इलाकों का दौरा किया, जिसके बाद मानो उनके जीवन को एक नई दिशा मिल गई। तब से वह अलग-अलग संस्थाओं से जुड़कर पौधा रोपण का काम करने में लग गए और अब तक लाखों पौधे लगा चुके हैं।
पर्यावरण एक्टिविस्ट और सामाजिक कार्यकर्ता मणिकंदन आर, 20 सालों से भी ज्यादा समय से तमिलनाडु के कोयंबटूर में बदहाल पानी के स्रोतों को सुधारने के मिशन पर हैं।
डॉ मंजू वासुदेवन और डॉ श्रीजा केरल के आदिवासियों के जीवन में एक उम्मीद की किरण बनकर आई हैं। उनका फारेस्ट पोस्ट उद्यम आदिवासियों के लिए एक नियमित आय का जरिया है।
साल 2014 में जब पीके पात्रो ने देहरादून जू के डायरेक्टर का पद संभाला था, तभी से उन्होंने इसे एक सस्टेनेबल मॉडल के तौर पर विकसित करना शुरू कर दिया था। उन्हीं के प्रयासों का नतीजा है कि आज यह जू जीरो कार्बन फुट प्रिंट वाली जगह बनने की ओर बढ़ रहा है।
उत्तर प्रदेश के लखनऊ जिले के हेमी गांव के रहने वाले दीपक के एक रिश्तेदार, शराब पीकर अपनी पत्नी को मारा-पीटा करते थे। लेकिन दीपक के एक प्रयास ने उनके घर की तस्वीर बदल दी।
नागालैंड का शिन्न्यु गांव (Nagaland Village) भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित है। 44 साल पहले बसे इस गांव में बिजली की कोई सुविधा न थी। लेकिन, एक सरकारी शिक्षक के सोशल मीडिया पोस्ट ने उन्हें एक नई उम्मीद दी है। पढ़िए यह प्रेरक कहानी!
सी एम नागराज, बेंगलुरु के गवर्नमेंट हाई स्कूल डोड्डबनहल्ली में स्कूल टीचर हैं। हाल ही में पर्यावरण बचाने की उनकी पहल के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
गुजरात के अमलसाड में सालों पुराने श्मशान को साल 2020 में एक नया रूप दिया गया। यहां की दो एकड़ जगह पर पहले मात्र श्मशान होने से इसका ज्यादा उपयोग नहीं हो पाता था, लेकिन अब यहां एक बेहतरीन गार्डन भी है जहां शहर के लोग समय बिताने आते हैं।
केरल के शंकरन मूसाद वज़क्कड़ पंचायत में रहते हैं। वे 56 साल के हैं। शंकरन मूसाद एक रिटायर्ड क्लर्क हैं। वह भारत सरकार द्वारा एकल उपयोग में आने वाली प्लास्टिक के वस्तुओं को खत्म करने को लेकर चलाए जा रहे अभियान में अपना योगदान दे रहे हैं।