प्रियंका तिवारी, उत्तर प्रदेश के राजपुर ग्राम पंचायत की सरपंच हैं। एक साल के भीतर ही उन्होंने गांव में कई बदलाव किए हैं। उन्होंने गांव में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर रोक के साथ ग्रेवाटर रीसाइक्लिंग, एक श्मशान घाट और एक लाइब्रेरी भी शुरू की है।
मध्य प्रदेश के बैतूल जिले का बांचा गांव देश का पहला ऐसा गांव है, जहां न किसी घर में लकड़ी के चूल्हे का इस्तेमाल होता है और न ही एलपीजी सिलेंडर का। जानिए कैसे बदली इस आदिवासी बहुल गांव की किस्मत!
नागालैंड का शिन्न्यु गांव (Nagaland Village) भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित है। 44 साल पहले बसे इस गांव में बिजली की कोई सुविधा न थी। लेकिन, एक सरकारी शिक्षक के सोशल मीडिया पोस्ट ने उन्हें एक नई उम्मीद दी है। पढ़िए यह प्रेरक कहानी!
नदी के दोनों किनारों पर बड़े-बड़े पेड़ों पर तार खींचकर उस पर बांस बिछाकर पुल में चलने के रास्ते तैयार किए गये और करीब 25 से 30 दिनों की मेहनत के बाद कटांग का झूला पुल आज लोगों का संकटमोचक बनकर तैयार है।
'आदिवासी जनजागृति' ने पिछले 3 महीनों में न सिर्फ कोरोना पर जागरूकता लाने का काम किया है बल्कि फेक न्यूज, मजदूरों की समस्या सहित इस दौरान बढ़े करप्शन को भी उजागर किया है।
भारत के गाँव खुद अपना खाना उगाएं, इसके लिए उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर एक एक्शन प्लान भी बनाया है, जिसके हिसाब से हर एक गाँव में पांच तरह के किचन गार्डन लगाए जा सकते हैं!
स्थानीय हिमाचली सेल्फ-हेल्प समूहों से अचार, जैम, चटनी, चिलगोज़े, राजमा, हर्बल चाय, ऊनी सामान, शहद, क्रीम, गुट्टी का तेल वगैरह जाने क्या-क्या खरीदकर, पैकेजिंग कर, वह अपने शब्दों की चाशनी में घोलकर इन्हें ऑनलाइन बेचती हैं। अपने कलम की ताकत से अब इन महिलाओं की मदद करती हैं!