टीचर शालिनी वर्मा के प्रयासों के चलते इस सरकारी स्कूल में पोषण वाटिका बनाई गयी है, जहाँ उगाई गयी पालक, पुदीना, चुकंदर, मेथी, गाजर इत्यादि स्कूल के लिए बनने वाले मिड डे मील में प्रयोग किये जाते हैं।
“भारत में पढ़ाई के दौरान व्यावहारिक कौशल की अपेक्षा नंबर पर ज्यादा जोर दिया जाता है। लेकिन ये ऐसे व्यावहारिक कौशल हैं जो बाद में बच्चों को न केवल नौकरी पाने में बल्कि इनोवेटर बनने में भी मदद करते हैं। ” – शोएब डार
66 वर्षीया रीटा, प्लास्टिक की थैलियों से खूबसूरत बैग, चटाई और बास्केट जैसी चीजें बना रही हैं। इन सभी उत्पादों को वह अपनी सोसाइटी में काम करने वाले स्टाफ को बाँट देती हैं!
ध्रुव और रोहन का बचपन पढ़ाई के साथ-साथ रोहन के दादाजी के गैराज में भी बीता। जहां वे दोनों पुरानी चीजों को नया रूप देते थे और वहीं से उन्हें आने वाली पीढ़ी के लिए यह 'आश्रम' शुरू करने की प्रेरणा मिली!
श्रीमाली ने सुझाव दिया कि पूरा ढेर नहीं हटाकर बीच में से एक झिरी निकाल दी जाए, ऐसा करने में कोई भारी बजट भी नहीं लगेगा, साथ ही जनधन की कोई हानि का ख़तरा भी नहीं होगा। स्थानीय प्रकृति प्रेमियों के दबाव में प्रशासन ने सुझाव को मंजूरी दे दी।
अब तक 40 हजार से अधिक पेड़ लगा चुके रुद्रप्रयाग जनपद के राजकीय प्राथमिक विद्यालय, कोट तल्ला के शिक्षक सतेंद्र सिंह भंडारी ने पर्यावरण संरक्षण का जो अभियान शुरू किया, वह आज भी जारी है।
Haryana में यमुनानगर जिले के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल, कैंप में विज्ञान अध्यापक के पद पर कार्यरत दर्शन लाल बवेजा को शिक्षक के साथ-साथ विज्ञान संचारक के रूप में भी जाना जाता है। बच्चों को विज्ञान के अलग-अलग सिद्धांत समझाने के लिए उन्होंने 250+ हैंड्स ऑन गतिविधियाँ तैयार की हैं।