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डॉ. कायनात काज़ी

हर मायने में आत्मनिर्भर हैं पातालकोट के जंगलों के आदिवासी, सिर्फ नमक खरीदने आते हैं बाहर

पातालकोट की जलवायु इतनी सरल और सुगम है कि आपका यहीं बसने का मन करेगा। वनों से आती ठंडी हवाएं, कम धूप आने के कारण ठंडक का बना रहना, खेती के लिए मिट्टी, पहाड़ों की पतली-पतली दरारों से प्राकृतिक रूप से छनकर आता मिनरल वाटर, नजदीक बहती दूधी नदी और क्या चाहिए जिंदगी जीने के लिए!

उस शख्स की कहानी जिसने सतपुड़ा के जंगलों को टूरिस्ट स्पॉट में बदल डाला!

पवन सतपुड़ा के जंगलों में अनेक प्रकार की अड्वेंचर एक्टिविटी चलाते हैं जिसमें ट्रेकिंग, कैंपिंग, रिवर वाल्किंग, स्टार गेजिंग, बाइकिंग आदि शामिल हैं। पवन ने यहाँ पातालकोट और तामिया में लगभग 12 ट्रेक ख़ुद ढूँढ निकाले हैं।

आदिवासी पहनावे को बनाया फैशन की दुनिया का हिस्सा, हाथ की ठप्पा छपाई ने किया कमाल

गाँव में ब्लॉक प्रिंट का काम करने वाले लोग ख़त्म हो चुके थे और युवा इसे करना नहीं चाहते थे। लेकिन मुहम्मद युसूफ अपने अब्बा से मिली विरासत को इस तरह खोना नहीं चाहते थे। उन्होंने ठान लिया था कि कुछ भी हो जाए वह इस कला को मरने नहीं देंगे।

पारंपरिक हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग को बनाया ब्रांड, गोंड कला को दी 'आशा'!

कलाकारों को मजदूर बनते देख रोहित रूसिया ने इस पुरातन कला को संजोने की ठानी और मशीनों के दौर में बुनकरों का सहारा बने।

गुटखा छोड़, उन पैसों से 7 साल में लगाए 1 हज़ार पौधे!

"एक दिन वाटिका में आग लग गई और 200 पौधे जलकर राख हो गए। उस दिन मैं इतना रोया, जितना शायद अपनी माँ की मौत के समय भी नहीं रोया था। मेरे बच्चों ने मुझे सोच में देखकर आपस में सलाह की और मुझसे बोले, पापा आप एयरटेल के डिश को हटाकर फ्री वाला डिश लगा दीजिए और उन पैसों से पौधों की सुरक्षा के लिए तार की जाली ले आइए।"

128 साल पहले औरंगाबाद में दादा ने रखी थी नींव इस कला को बचाने की, आज पोते ने पहुँचाया अमेरिका तक

फैसल ने अपनी पहचान खो चुके बुनकरों और उनके लूम्स को जगाने का काम किया है। आज लगभग 150 बुनकर परिवार इस लुप्त होती कला को फिर से जिंदा करने में न सिर्फ़ योगदान दे रहे हैं बल्कि अपना जीवन यापन भी अच्छी तरह से कर रहे हैं। आज उनके फेब्रिक आप अमेरिका के कैलिफोर्निया, डैलस, सैन फ्रांसिस्को, लॉस एंजेलिस और ऑस्टिन से भी खरीद सकते हैं।

माता-पिता न बनने का लिया फ़ैसला ताकि पंद्रह ज़रूरतमंद बच्चों को दे सके बेहतर ज़िन्दगी!

'' मुझे सबसे अधिक ख़ुशी तब होती है जब यह बच्चे अपनी छोटी से छोटी समस्या मेरे पास हक से लेकर आते हैं, तो मुझे लगता है कि मैं सही मायनों में अपना फ़र्ज़ निभा पा रही हूँ। बच्चे बेझिझक मुझसे अपनी बातें शेयर किया करते हैं।''

कभी थे ड्रग एडिक्ट, अब हैं पहाड़ों के नशा मुक्ति दूत!

पंकी की नशे की लत ने उसके सोचने-समझने की सलाहियत भी ख़त्म कर दी थी। आज उस घड़ी को याद करते हुए पंकी की ऑंखें भर आती हैं।