सस्टेनेबल लिविंग को ध्यान में रखकर Bir Terraces को पारंपरिक पहाड़ी तरीके से बनाया गया है। वादियों में बसे इस घर को बनाते समय एक भी पेड़ नहीं काटा गया और इसे बनाने में रीसाइकल्ड लड़की जैसी प्राकृतिक चीज़ों का ही इस्तेमाल किया गया है।
90 साल की उम्र में भी लक्ष्मी अम्मल, मेहनत करने से नहीं डरतीं। उन्होंने अपनी 72 साल की बेटी के साथ मिलकर पिछले साल ही चेन्नई के पास 'वक्साना फार्म स्टे' की शुरुआत की है।
लगभग 100 साल पुराने हिमाचली काठ कुनी घर को खूबसूरत होमस्टे में बदलकर फरीदाबाद के रहने वाले देवेश जोशी अपने शहरी मेहमानों के बीच सस्टेनेबल लिविंग और ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। यहाँ आने वाले लोग प्रकृति के बीच वक़्त बिताने के अलावा कई अडवेंचरस एक्टिविटीज़ में भी हिस्सा ले सकते हैं।
उत्तराखंड के छोटे से गांव करौली के रहनेवाले नीरज जोशी के पिता ITBP में नौकरी के साथ-साथ खेती भी किया करते थे और उन्हीं से नीरज को भी खेती और पेड़-पौधों से बहुत कम उम्र से ही लगाव हो गया था। इसीलिए नीरज ने फ्रांस की नौकरी ठुकराकर, गांव आकर खेती करने का फैसला किया।
ऑर्गेनिक फार्मिंग से लेकर कम्पोस्टिंग तक, सब सीख सकते हैं मंगलुरु के नज़दीक केपु गाँव में बसे इस अनोखे 'वारानाशी फार्मस्टे' में। साथ ही यहाँ आने वाले मेहमान कायाकिंग और स्विमिंग जैसी कई एक्टिविटीज़ में भी भाग ले सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के मेरठ के रहनेवाले सुनील सोम ने 7 साल पहले प्राकृतिक खेती को अपनाया था। उन्होंने खुद ही अपना एक गुड़ प्लांट लगाया हुआ है और उसमें ही शुद्ध प्राकृतिक गुड़ बनाते हैं।
कभी मुंबई में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले पवित्रा और रिनास आज खेतों में काम करते हैं और उन्हें यह मेहनत करने में मज़ा आ रहा है। सबसे अच्छी बात है कि आज वे एक हेल्दी लाइफस्टाइल जी रहे हैं।
तमिलनाडु के रहने वाले थायुमानवन कुनापालन शहरी गार्डनर्स के लिए किसी उदाहरण से कम नहीं हैं। वह अपने घर की छत पर लगभग हर तरह की सब्जियां उगा रहे हैं, लेकिन ख़ासियत यह है कि ये सब्जियां वह 200 ग्रो बैग्स और 25 पुराने रेफ्रिजरेटर्स में उगाते हैं।
रिटायर होने के बाद, थोडुपुझा (केरल) के रहनेवाले पुन्नूस जैकब ने खेती के अपने शौक़ को आजमाने का फैसला किया। आज वह ‘मंगलम फूड्स' ब्रांड के तहत, ताज़ा सब्जियां बेच रहे हैं।
महाराष्ट्र के रहने वाले जगन प्रह्लाद बागड़े को 'कैक्टस मैन' के नाम से भी जाना जाता है। उनके खेतों पर जंगली जानवर और कीट अक्सर हमला किया करते थे जिससे भारी नुकसान होता था। इस गंभीर समस्या को देखते हुए वह एक एनवायरनमेंट फ्रेंडली और कम लागत वाला समाधान लेकर आए हैं।