उत्तराखंड के रहने वाले दो दोस्तों ने मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ नेशनल पार्क के घने जंगल के बाहरी इलाके में पांच खूबसूरत मिट्टी के घर और ट्री हाउसेज़ बनाए हैं। इस इलाके को रॉयल बंगाल टाइगर्स, व्हाइट टाइगर्स, तेंदुओं और हिरणों का घर भी कहा जाता है। यहाँ से रिज़र्व फारेस्ट में जंगली जानवरों और पक्षियों को भी देखा जा सकता है।
पर्यावरण और हॉस्पिटैलिटी की फील्ड से आने वाले मानव खंडूजा और श्यामेंद्र सिंघारे ने 1986 में प्रकृति से अपने लगाव और प्यार के चलते ‘पगडंडी सफारीज़’ की शुरुआत की थी। आज पगडंडी सफारी कैम्प्स एक या दो नहीं, बल्कि हरियाणा, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसी 7 अलग-अलग जगहों पर जगलों के बीचों-बीच बने हैं।
नेशनल पार्क के बीच बने सस्टेनेबल घर
मानव और श्यामेंद्र ने कई सालों पहले मध्य प्रदेश के पन्ना नेशनल पार्क में कुछ टेंट्स लगाकर इस प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी, तब उन्हें इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि उनकी यह पहल इतनी सफल हो पाएगी। अपने छोटे से सफारी बिज़नेस को चलाते हुए उन्हें यह एहसास हुआ कि लोग ट्री हाउसेज़ में रहने, जंगलों और वाइल्डलाइफ टूरिज्म को लेकर कितने उत्साहित हैं और इन्हें देखना चाहते हैं।
तभी इन दो दोस्तों ने अपने काम को बढ़ाने का फैसला किया और 1986 के बाद साल 2007-2010 के बीच ट्री हाउसेज़ और मिट्टी के घर वाली दो और लॉज बनाए।
आज पगडंडी सफारीज़ के मध्य प्रदेश के कान्हा नेशनल पार्क में कान्हा अर्थ लॉज, सतपुड़ा नेशनल पार्क में देनवा बैकवॉटर एस्केप, पेंच नेशनल पार्क में पेंच ट्री लॉज, बांधवगढ़ नेशनल पार्क में ट्रीहाउस हाईडअवे और किंग्स लॉज और पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में केन रिवर लॉज बने हुए हैं। इसके अलावा, महाराष्ट्र के ताडोबा नेशनल पार्क में इनका वाघोबा इको लॉज भी है।
भारत के खूबसूरत और लोकप्रिय नेशनल पार्क्स में स्थित पगडंडी सफारीज़ के जंगल लॉज, यात्रियों को जंगल और वाइल्डलाइफ को करीब से देखने का अनुभव कराते हैं। सस्टेनेबल टूरिज्म को बढ़ावा दे रहे इन घरों की सबसे ख़ास बात यह है कि इनको मिट्टी, रीसाइकल्ड लकड़ी और लोकल मटेरियल से बनाया गया है। मिट्टी के इस्तेमाल को यहाँ विशेष महत्त्व दिया जाता है, इनका मानना है कि मिट्टी हमें प्रकृति से जोड़े रखती है।
कई अवार्ड्स से सम्मानित हो चके हैं ट्री हाउसेज़ बनाने वाले पगडंडी सफारीज़
सिर्फ़ दो दोस्तों का शुरू किया यह प्रोजेक्ट आज 300 लोगों की एक टीम द्वारा चलाया जाता है, जिनमें से 80 प्रतिशत लोकल लोग हैं, जो अपने मेहमानों को एक अद्भुत वाइल्डलाइफ एक्सपीरियंस देने के लिए काम करते हैं। ये लॉज कई लक्ज़री जैसे प्राइवेट पूल, अलग-अलग तरह के खाने और आरामदायक स्टे के साथ-साथ एक देसी और प्राकृतिक जीवन जीने का अनुभव भी कराते हैं।
यहाँ की दीवारें मिट्टी और लकड़ी जैसी प्राकृतिक चीज़ों से बनी हैं और फर्नीचर के लिए भी रीसाइकल्ड वुड और लोकल मटेरियल का इस्तेमाल किया गया है।
मड और ट्री हाउसेज़ के अलावा, वाइल्डलाइफ कंज़र्वेशन के लिए यहाँ ज़ीरो सिंगल-यूज़ प्लास्टिक पॉलिसी का भी पूरा ध्यान रखा जाता है।पगडंडी सफारीज़ में आए मेहमानों को फार्म टू टेबल डाइनिंग का अनुभव भी मिलता है।
यहाँ आकर ऑर्गेनिक गार्डन में उगने वाली ताज़ी और पौष्टिक सब्जियों से बने स्वादिष्ट भोजन का भी भरपूर आनंद लिया जा सकता है। विलेज विजिट्स, लोकल फ़ूड टेस्टिंग, नेचर वॉक जैसी एक्टिविटीज़ भी यहाँ कराई जाती हैं।
साथ ही मानव और श्यामेंद्र खुद को बस टूरिज्म और वाइल्डलाइफ एक्सपीरियंस तक सिमित न रखते हुए, पिछले 6 सालों से यहाँ के स्थानीय स्कूलों के एजुकेशन और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। पगडंडी सफारीज़ को अपने इन सभी कामों के लिए कई अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं।
संपादन- अर्चना दुबे
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