आजकल जहां हर कोई पैसे के पीछे भाग रहा है और लाखों का पैकेज कमाना चाहता है, वहीं कुछ लोग सिर्फ़ शांति और सस्टेनेबल लाइफस्टाइल ढूंढते हैं। बस यही चाह वेल्लंगल्लूर पंचायत के कोनाथुकुन्नू में रहने वाले पवित्रा और रिनास की भी थी। कभी कॉरपोरेट जॉब करने वाला यह कपल आज ट्रेडिशनल फार्मिंग कर खुशहाल जीवन जी रहा है।
दरअसल, साल 2016 तक पवित्रा और रिनास, दोनों शहरों में अच्छी कंपनियों में नौकरी कर रहे थे। लेकिन पवित्रा को कुछ अलग करना था। उन्हें भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी से ज़्यादा सादगी, शांति का जीवन जीना था और इसलिए पवित्रा और रिनास ने एक अलग राह चुनी।
दिनभर ऑफिस में एसी, फ़ोन और कंप्यूटर जैसे गैजेट्स का इस्तेमाल करते हुए पवित्रा को यह एहसास हुआ कि वह इससे संतुष्ट नहीं हैं। इसके बाद, जब उन्हें सलीम अली फाउंडेशन के सस्टेनेबल डेवलपमेंट प्रोग्राम के बारे में पता चला, तो उन्होंने तुरंत इसके लिए अप्लाई कर दिया। 2016 में पवित्रा ने एचआर मैनेजर के रूप में अपनी नौकरी छोड़कर फाउंडेशन के साथ काम करना शुरू किया।
कन्नूर की रहने वाली पवित्रा को हमेशा से प्रकृति और खेती से प्यार था। जब वह वेल्लांगल्लूर में फाउंडेशन के प्रोजेक्ट में शामिल हुईं, तो रिनास भी उनके साथ आ गए और दोनों यहीं बस गए। पवित्रा बताती हैं कि एक नॉर्मल ज़िंदगी छोड़ अलग राह चुनना आसान नहीं था, कई मुश्किलें भी आईं। लेकिन वह यह फ़ैसला लेकर आज काफ़ी खुश हैं और उनका यह सफ़र भी बहुत अच्छा रहा।
सालों से बंज़र पड़ी ज़मीन पर कर रहे ऑर्गेनिक खेती
आज पवित्रा और रिनास का हर दिन सुबह 5 बजे से शुरू होता है, क्योंकि बहुत ज़्यादा धूप होने पर खेत में काम करना मुश्किल हो जाता है। हालांकि आज के समय में कई किसान हाईब्रिड बीजों की खेती कर रहे हैं, लेकिन ये दोनों पारंपरिक तरीक़ों को अपनाकर लोगों को ट्रेडिशनल फार्मिंग के प्रति जागरूक कर रहे हैं।
अपने प्रोजेक्ट के चलते उन्होंने 15 एकड़ ज़मीन लीज़ पर ली, जो सालों से बंजर पड़ी थी। धान की खेती के साथ-साथ वे पंचायत में स्थानीय किसानों को ऑर्गेनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। यह प्रोजेक्ट किसानों को मुर्गी पालन और पशु पालन में तकनीकी मदद करके उन्हें अच्छी कमाई करने का मौका दे रहा है।
कभी मुंबई की मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाले रिनास आज खेतों में हर तरह के काम करते हैं और इस काम से वह काफ़ी संतुष्ट हैं। साथ ही यह कपल आज एक स्वस्थ और सस्टेनेबल जीवन जी रहा है। उनका कहना है कि पहले उन्हें खेती की ज़्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन आज वह अपने ज़रूरत की चीज़े खुद उगा रहे हैं।
उनका फाउंडेशन, वेल्लांगल्लूर पंचायत को भोजन के मामले में आत्मनिर्भर बनाने और किसानों को प्रशिक्षित कर उनकी आय बढ़ाने के मकसद से काम कर रहा है।
संपादनः अर्चना दुबे
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