17 तरह के ऑर्गेनिक गुड़ बनाता है यह किसान, साथ ही देते हैं प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग भी

Sunil Som farmer

उत्तर प्रदेश के मेरठ के रहनेवाले सुनील सोम ने 7 साल पहले प्राकृतिक खेती को अपनाया था। उन्होंने खुद ही अपना एक गुड़ प्लांट लगाया हुआ है और उसमें ही शुद्ध प्राकृतिक गुड़ बनाते हैं।

आज केमिकल वाली खेती के कारण बढ़ती बीमारियां हम सभी के लिए चिंता का विषय बन चुकी हैं। हालांकि अब बहुत से किसान जैविक खेती की ओर रुख कर रहे हैं और उनमें से ही एक हैं उत्तर प्रदेश के मेरठ के रहनेवाले किसान सुनील सोम, जो ऑर्गेनिक फार्मिंग के साथ ही प्राकृतिक तरीके से 17 तरह के गुड़ भी बनाते हैं।  

सुनील सोम ने 7 साल पहले प्राकृतिक खेती को अपनाया था। उन्होंने खुद ही अपना एक गुड़ प्लांट लगाया हुआ है और उसमें ही शुद्ध प्राकृतिक गुड़ बनाते हैं। वह यहां पर करीब 17 से 18 तरह के प्राकृतिक गुड़ बनाते हैं। 

इसके अलावा, दाल हो या सब्ज़ी, वह अपने खेत में हर तरह के उत्पाद उगा रहे हैं और एक शुद्ध व स्वस्थ वातावरण बना रहे हैं। सुनील ने बताया कि साल 2017 से ही उन्होंने विधिवत् रूप से खेती करना शुरू कर दिया था। लेकिन उन्होंने गन्ने की फसल पर ज़्यादा focus किया और गन्ने के साथ में बहुत सारी सह फसलें भी उगाते रहे, जैसे- गेहूँ, जौ, मिर्च आदि। 

किसानों को दे रहे ट्रेनिंग, पराली जलाने की घटनाओं को किया कम

सुनील के बनाए हर तरह के गुण का शेप और साइज़ अलग-अलग तरह का होता है। सुनील पूरे यकीन के साथ कहते हैं, “विश्वास मानिए, अगर आप कभी प्राकृतिक खेती वाला गुड़ चखेंगे, तो साधारण गुड़ के स्वाद को भूल ही जाएंगे।” सुनील गांव-गांव जाकर किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक भी करते हैं। 

उनके इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि अब तक 10 से 11 किसान केमिकल वाली खेती छोड़कर ऑर्गेनिक खेती को अपना चुके हैं और सैकड़ों किसान ऐसे हैं, जो कर तो केमिकल वाली खेती ही रहे हैं, लेकिन पराली और पत्तियां जलाने जैसे जो करते थे, वह अब उन्होंने पूरी तरह से छोड़ दिए हैं। 

सुनील जानते हैं कि किसानों के लिए ऑर्गेनिक खेती करना और उसकी मार्केटिंग करना आसान काम नहीं है। इसलिए वह लोगों को फ्री में ऑर्गेनिक खेती की ट्रेनिंग और मार्केटिंग के तरीके भी बताते हैं। सुनील ने आखिर में कहा, “अगली पीढ़ियों को अगर बचाना है, तो हमें प्राकृतिक खेती की ओर लौटना ही पड़ेगा और हमें लौटना ही चाहिए। किसान तब प्राकृतिक खेती करेगा, जब उपभोक्ता इस चीज़ को समझें, किसानों के द्वार पर जाएं, किसानों को सम्मान दें।”

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