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डिजिटल डिवाइड को भरने के लिए Amazon India ने शुरू की पहल, आप भी आ सकते हैं साथ

Amazon India Delivering Smiles initiative

(यह लेख अमेजन इंडिया के साथ साझेदारी में प्रकाशित किया गया है।)

हरिद्वार के रहनेवाले 11 साल के तरुण कुमार के पिता एक दिहाड़ी मज़दूर हैं। जब कोरोना महामारी के दौरान स्कूल बंद हो गए, तो पढ़ने के लिए उन्हें फोन की ज़रूरत थी। पर तरुण समाज के जिस तबके से आते हैं, वहां उनके लिए सस्ते-से-सस्ता स्मार्टफोन खरीदना भी आसान नहीं होता। ऐसे में, तरुण और उनके जैसे लाखों बच्चे क्या करें? क्या होगा उनके भविष्य का? क्या हमने कभी इस बात को गंभीरता से सोचा है? 

भारत में पिछले डेढ़ साल के दौरान, सभी स्कूल-कॉलेज अधिकांश समय के लिए बंद रहे हैं। यूनेस्को की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कोरोना महामारी के बाद, करीब 32 करोड़ स्कूली बच्चे प्रभावित हुए हैं।

यही कारण है कि आज ऑनलाइन शिक्षा का चलन काफी बढ़ गया है। डिजिटल लर्निंग छात्रों के साथ-साथ, शिक्षकों के लिए एक लचीला विकल्प है, क्योंकि इसके जरिए छात्र अपने समय और गति के अनुसार पढ़ाई कर सकते हैं। वहीं, शिक्षक एनिमेशन और आकर्षक ऑडियो-विजुअल के साथ, अपने पढ़ाने के तरीकों को और अधिक प्रभावी बना सकते हैं।

लेकिन, भारत में डिजिटल लर्निंग की राह आसान नहीं है और संसाधनों के अभाव में, तरुण जैसे कई बच्चों की पढ़ाई पर गहरा असर पड़ा है। इसकी वजह है, ऑनलाइन पढ़ाई के लिए आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के पास मोबाइल और इंटरनेट जैसी मूल सुविधाओं की कमी। 

शिक्षा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक असम, आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे सात बड़े राज्यों में 40 से 70 फीसदी स्कूली बच्चों के पास डिजिटल डिवाइस की कमी है। 

वहीं, राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 2017-18 के आँकड़े बताते हैं कि भारत में सिर्फ 42 फीसदी शहरी और 15 फीसदी ग्रामीण परिवार के पास इंटरनेट की सुविधा है। इससे साफ है कि स्थिति कितनी गंभीर है।

दूसरी ओर, अधिक संपन्न और पेशेवर लोगों ने जरूरतों को देखते हुए अपने मोबाइल फोन को अपग्रेड करने में कोई देरी नहीं की। इस तरह अपने पुराने मोबाइल को डोनेट कर, कई कमजोर बच्चों की मदद की जा सकती थी। 

आज दुनिया तकनीकी और रचनात्मक बदलाव के दौर से गुजर रही है। हमें इसमें गरीब और असहाय बच्चों को साथ लेकर चलना होगा, नहीं तो इसे लेकर समाज में दूरियां और बढ़ती जाएँगी। नतीजतन, अपराध, बाल विवाह और बालश्रम जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ सकती हैं।

इन्हीं चिन्ताओं को देखते हुए, अमेजन इंडिया (Amazon India) ने Delivering Smiles पहल की शुरुआत की है, जिसके तहत उनका लक्ष्य डिजिटल डिवाइड यानी डिजिटल माध्यमों में असामनता को कम कर, भारत में सामाजिक विकास को बढ़ावा देना है।

अमेजन की पहल से बच्चों के लिए ऑनलाइन लर्निंग हुआ आसान

इस प्रयास के जरिए गरीब और ज़रूरतमंद बच्चों को मोबाइल, टैबलेट जैसे डिजिटल डिवाइस उपलब्ध कराए जा रहे हैं। अमेजन इंडिया (Amazon India) ने इस पहल की शुरुआत पिछले साल की थी।

11 वर्षीय तरुण को भी अमेजन (Amazon) के इस खास पहल के तहत एक स्मार्टफोन मिला और फिर उनकी दुनिया बदल गई। आज वह अपनी बहन के साथ घर पर रहकर, आसानी से पढ़ाई कर सकते हैं।

जानिए पहल के बारे में

डिलीवरिंग स्माइल अमेज़न की वार्षिक कॉर्पोरेट गिविंग पहल है। 2020 में जब महामारी के कारण ऑफलाइन स्कूल बंद गए, तो Amazon ने 6000 वाईफाई युक्त टैबलेट बाँटें, ताकि बच्चों की शिक्षा न रुके। इस साल भी डिजिटल डिवाइड की खाई को भरने के लिए Amazon 20,000 डिजिटल डिवाइस बांटेगा, जिससे 100,000 छात्रों को सहारा मिलेगा। 

अमेजन इंडिया (Amazon India) के वाइस प्रेसिडेंट मनीष तिवारी ने बताया, “कोरोना महामारी के दौरान न सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में, बल्कि सभी आवश्यक सेवाओं को आसान बनाने में डिजिटल डिवाइड ने लोगों का ध्यान खींचा। इस महामारी के कारण, हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चे और युवा सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “ग्राहकों, कर्मचारियों और तमाम हितधारकों की मदद से, हमारा लक्ष्य बच्चों और युवाओं को डिजिटल डिवाइस मुहैया कराके, उन्हें ऑनलाइन शिक्षा और आवश्यक सेवाओं तक निरंतर पहुँच के लिए सक्षम बनाना है।”

आप कैसे कर सकते हैं मदद 

अमेजन ने इस साल, गूंज और पुराने फोन को खरीदने और बेचने वाली डिजिटल कंपनी कैशिफाई (Casify) के साथ मिलकर, लोगों को इस पहल में भागीदार बनाने के लिए एक नई शुरुआत की है, जिसके तहत आप पुराना स्मार्टफोन दान कर सकते हैं, ताकि भारत में डिजिटल खाई को सामुहिक प्रयास के जरिए, खत्म किया जा सके। 

यदि आप कोई पुराना डिवाइस दान करना चाहते हैं, तो कैशिफाई उसे आपके घर से पिकअप करेगी और उसे रिफर्बिश कर, गूंज संस्था को सौंप देगी। फिर, गूंज के जरिए डिवाइसों को जरूरतमंदों तक पहुँचाया जाएगा।

वहीं, इस पहल में आप Amazon Pay के जरिए नकद योगदान भी कर सकते हैं। इस राशि का इस्तेमाल छात्रों के लिए नए डिवाइस, डेटा कार्ड और डिजिटल एक्सेसरीज खरीदने के लिए किया जाएगा।

पहल को लेकर गूंज के संस्थापक अंशु गुप्ता कहते हैं, “हमें विश्वास है कि अमेजन के साथ विकास कार्यों के लिए हमारी यह साझेदारी एक नये विमर्श को जन्म देगी। हमें उम्मीद है कि इससे अन्य कंपनियों और लोगों को कई पुराने सामान को यूं ही बर्बाद होने से बचाने की प्रेरणा मिलेगी। इससे पर्यावरण संरक्षण भी होगा।”

बेंगलुरु में रहने वाली 15 साल की अनीता पी इस पहल की एक अन्य लाभार्थी हैं। कोरोना महामारी के दौरान, अनीता को अपनी पढ़ाई छोड़कर, मजदूरी का काम करना पड़ रहा था। 

बेंगलुरु की अनीता पी

वह कहती हैं,“मैं नौवीं क्लास में हूँ, लेकिन कोरोना महामारी में स्कूल बंद होने की वजह से, मैं पढ़ाई नहीं कर पा रही थी। इसलिए, मैं परिवार की मदद के लिए कंस्ट्रक्शन साइट पर काम करने लगी। मेरे लिए स्मार्टफोन और टैबलेट लेना आसान नहीं था। लेकिन, अब मुझे अमेजन ने जो टैबलेट दिया है, उसपर मैं पढ़ाई कर सकती हूँ और अपना सपना पूरा कर सकती हूँ। मैं पढ़-लिखकर एक टीचर बनना चाहती हूँ। धन्यवाद, अमेजन!”

ये तो कुछ गिने-चुने उदाहरण हैं, जिससे हमें अहसास होता है कि एक छोटी-सी मदद से, मुफलिसी में जी रहे इन बच्चों के जीवन में कितना बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। इस पहल के जरिए हमारी लोगों से अपील है कि आप अपने पुराने मोबाइल को दान कर, वंचित समाज के बच्चों को आगे बढ़ने का एक मौका दें। 

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संपादन – मानबी कटोच

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