Placeholder canvas

इस 17 वर्षीय लड़की ने 700 बच्चों को शिक्षा से जोड़ा, रोके 50 से ज्यादा बाल विवाह!

"जितने बड़े सपने होंगे, उतनी ही ज्यादा चुनौतियाँ होंगी। जितना ज्यादा संघर्ष होगा, उतनी ही बड़ी मंजिल होगी, इसलिए बस एक कदम बढ़ाकर देखें।"

रियाणा में फतेहाबाद जिले के दौलतपुर गाँव की रहने वाली 17 वर्षीय अंजू वर्मा पिछले कई सालों से बच्चों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। उनका उद्देश्य समाज और देश को बच्चों के लिए सुरक्षित बनाना है। वह कहती हैं, “मैं ऐसा भारत चाहती हूँ जो कि बच्चों के लिए पूरी तरह से सुरक्षित हो। जहाँ न तो बाल मजदूरी, बाल विवाह हो, न भ्रूण हत्या और न ही बच्चों के साथ किसी तरह का क्राइम।”

बच्चों और लड़कियों के अधिकारों के लिए अंजू के इस संघर्ष की शुरुआत मात्र 10 साल की उम्र से हुई थी। उनके अपने साथ हुई एक घटना ने उनके मन में बगावत के बीज बोए और फिर कुछ ऐसी परिस्थितियाँ आईं कि उन्होंने आगे बढ़कर खुद अपनी लड़ाई लड़ने की ठान ली।

वह बताती हैं, “मैं पांचवी कक्षा में थी और मेरी स्कूल की गर्मियों की छुट्टियाँ हुई थीं। छुट्टियों में मुझे मेरी पापा की बुआ के यहाँ जाने का मौका मिला। मैं वहां बहुत ख़ुशी-ख़ुशी गई थी लेकिन वहां जो मेरे साथ व्यवहार हुआ, उससे मुझे लगने लगा था कि भगवान ने मुझे लड़का क्यों नहीं बनाया।”

Buland Udaan, Shiksha ka Adhikar
Anju Verma

अंजू के रिश्तेदारों ने उन्हें बहुत ही गलत तरीके से रखा। वह मुश्किल से वहां 20 दिन रहीं लेकिन उनके लिए एक-एक पल भारी था। उन्हें सुबह 4 बजे उठा दिया जाता ताकि वह घर के 15 सदस्यों के लिए चाय बना सके। उसके बाद उनसे झाड़ू, बर्तन, कपड़े, खाना आदि जैसे सारे काम कराए जाते। कभी अगर वह मना करती तो उन्हें लड़की होने का ताना दिया जाता, “माँ ने कुछ नहीं सिखाया है, अगले घर जाकर नाम खराब करोगी।”

इस घटना का मासूम अंजू के मन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा। अब वह अपने आस-पास हो रही हर एक चीज़ को बहुत गहनता से समझने लगी। “दूसरी घटना थी मेरी एक सहेली की सिर्फ 11 साल की उम्र में शादी होना। मुझे आज तक लगता है कि मैं उसके लिए कुछ नहीं कर पाई। इस बारे में किसी से बात करो तो सब कहते कि यही रीत है, हम- तुम क्या कर लेंगे,” उन्होंने आगे कहा।

गाँव से ही हुई शुरुआत

एक और घटना ने अंजू के सब्र का बाँध तोड़ दिया। उन्होंने बताया कि उनकी कक्षा में कुछ लड़कियां थीं जिन्हें हर रोज काम न पूरा होने पर शिक्षकों से डांट पड़ती थी। अंजू ने अपने भोलेपन में उनसे कह दिया कि वे अपना काम पूरा क्यों नहीं करती हैं? उन्हें क्या रोज-रोज डांट खाने का शौक है? अपने इस सवाल के बदले में अंजू को जो जवाब मिला, उसके बाद उन्होंने ठान लिया कि वह चुप नहीं रहेंगी।

यह भी पढ़ें: आदिवासियों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुंचाने के लिए कई किमी पैदल चलता है यह डॉक्टर!

“उन लड़कियों ने पहले तो मुझे खूब खरी-खोटी सुनाई और मुझसे कहा, ‘तुम किस्मत वाली हो कि तुम्हारे घरवाले तुमसे काम नहीं कराते। हम सुबह खाना-पीना सब बनाकर आते हैं फिर जाकर रात तक घर का हर काम करते हैं। जब हम घर जाते हैं तो हमारा इंतज़ार हमारे घरवालों से ज्यादा भैंसें कर रही होती हैं कि हम पहुंचकर उन्हें चारा-पानी देंगे।’ उनकी बातों ने मुझे बुआ दादी के घर के वो 20 दिन याद दिला दिये।” – अंजू

Anju doing survey in the villages

अंजू ने इस बारे में अपने एक शिक्षक गुरमेल सिंह बिन्दर से बात की और उनसे पहली बार, ‘चाइल्ड लेबर’ यानी कि ‘बाल श्रम’ के बारे में सुना। उन्होंने समझा कि जो कुछ भी उनकी सहेलियों के साथ हो रहा है वह गलत है क्योंकि चाहे घर-परिवार ही क्यों न हो, लेकिन वह अपने बच्चों पर काम का इतना दवाब नहीं बना सकते कि उनका बचपन ही छीन जाए। यह कानूनन गलत है और इसके लिए 50 हज़ार रुपये जुर्माना और छह महीने कारावास की सजा मिलती है।

अंजू ने अपने शिक्षक की मदद से बच्चों के अधिकारों के बारे में पढ़ा और समझा। उन्होंने अपनी सहेलियों के घर जाकर उनके माता-पिता से बात करनी शुरू की। अंजू ने बहुत ही सूझ-बुझ से बातों ही बातों में उनके सामने बच्चों के अधिकारों और कानून के प्रावधानों के बारे में बात की।

यह भी पढ़ें: पॉकेट मनी इकट्ठा कर गरीब बच्चों को जूते, कपड़े और स्टेशनरी बाँट रहे हैं ये युवा!

“मैं यह कर तो रही थी लेकिन मेरा उद्देश्य था कि लोग पढ़ाई का महत्व समझें और किसी डर से नहीं बल्कि अपनी ख़ुशी से अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजें। इसके लिए मैंने अपने गाँव के सरपंच आदि से भी बात की कि यह उनकी भी ज़िम्मेदारी है कि बच्चों को एक अच्छा बचपन मिले।”

अंजू के प्रयासों से उनकी सहेलियों के घरवालों ने अपनी गलती को समझा। इसके बाद अंजू का आत्म-विश्वास काफी बढ़ा। कुछ दिनों बाद, उनके गाँव में काम कर रहे एक समाज सेवी संगठन, सेव द चिल्ड्रेन ने उन्हें अपने एक प्रोग्राम के लिए सेलेक्ट किया। यहाँ पर उन्हें बच्चों के अधिकारों के बारे में एक ट्रेनिंग दी गयी। अंजू ने इस संगठन के साथ लगभग 1 साल तक काम किया।

उन्होंने अपने गाँव का सर्वे किया और स्कूल छोड़ चुके लगभग 25 बच्चों को फिर से स्कूल से जोड़ा। उनकी इस सफलता के लिए उन्हें ‘अशोका यूथ वेंचर’ का हिस्सा बनने का मौका मिला। इसके साथ-साथ उन्हें टेडएक्स टॉक, पुणे में बतौर स्पीकर भी बुलाया गया।

रखी ‘बुलंद उड़ान’ की नींव 

She started her own initiative

लगातार अपने छोटे-छोटे प्रयासों से 5 सालों तक लोगों की मदद करने के बाद, साल 2017 में उन्होंने अपने संगठन, ‘बुलंद उड़ान’ की नींव रखी। इसके ज़रिए वह बाल मजदूरी, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह और बाल शोषण जैसे मुद्दों पर काम कर रही हैं। पहले उनकी पहल सिर्फ हरियाणा तक थी लेकिन अब पंजाब और राजस्थान में भी उन्होंने अपनी पहुँच बनाना शुरू किया है।

हर रविवार, अंजू और उनकी टीम घर-घर जाकर लोगों को बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूक करती है। इसके साथ ही वे ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने की कोशिश करते हैं। आज उनकी टीम में लगभग 60 लोग हैं जिनमें ज्यादातर स्कूल के छात्र हैं।

“किसी भी गाँव में शुरू-शुरू में हमें वक़्त लगता है लोगों को समझाने में, लेकिन हम हार नहीं मानते। हम उन्हें बताते हैं कि अपने बच्चों को छोटा-मोटा काम सिखाना गलत नहीं है, लेकिन बच्चों पर हद से ज्यादा काम का बोझ डाल देना गलत है। हमारी सबसे बड़ी कोशिश यह रहती है कि हम बच्चों को पढ़ाई से जोड़ें।”

अंजू की टीम को कहीं से भी किसी ड्राप आउट बच्चे के बारे में पता चलता है तो वे लोग उसके घर जाते हैं। वजह पता करते हैं कि पढ़ाई क्यों छूटी और उस बच्चे को फिर से स्कूल से जोड़ने की कोशिश करते हैं।

उन्होंने अब तक 700 बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला कराया है, लगभग 50 बाल विवाहों को रोका है और 15 शारीरिक शोषण के मामलों को भी संभाला है। इसके साथ उन्होंने एक कन्या भ्रूण हत्या के मामले को भी बहुत समझदारी से सुलझाया।

वह बताती हैं, “मुझे एक कोमल (नाम बदला हुआ) नामक प्रेग्नेंट महिला के बारे में पता चला। उनकी एक दो साल की बेटी भी थी और दूसरी डिलीवरी का समय लगभग आ चुका था। इस स्थिति में उनके पति उनको अकेला छोड़कर चले गए थे क्योंकि उन्हें बेटियाँ नहीं चाहिए थीं। उनके पास बिल्कुल पैसे नहीं थे और हालत भी काफी गंभीर थी।”

अंजू को जैसे ही पता चला तो वह तुरंत उस महिला के पते पर पहुंची। वह महिला बहुत ही गरीब परिवार से थी और ससुराल में बेटी की माँ होने के चलते यातनाओं से पीड़ित थी। “हमने पहले तो जैसे-तैसे करके उन्हें सही इलाज दिलाया और फिर उनके माता-पिता के पास राजस्थान भेजा। वहां कुछ दिनों बाद उन्होंने दूसरी बेटी को जन्म दिया और वह सही-सलामत है।”

परिवार का है पूरा साथ:

अंजू जिस राह पर चल रही हैं, उस पर आये दिन वह नयी-नयी चुनौतियों का सामना करती हैं। उन्हें बहुत बार गांवों के दबंग लोग डराने-धमकाने की कोशिश करते हैं लेकिन उनका जज़्बा कम नहीं होता। यदि कभी वह कमजोर पड़ें तो उनके माता-पिता और भाई-बहन उन्हें प्रेरित करते हैं।

“शुरू में घरवालों को थोड़ा लगता था कि क्या ज़रूरत है यह सब करने की। लेकिन अब मम्मी-पापा, भाई सब मेरी ताकत बनकर खड़े रहते हैं। मेरे काम के लिए फंडिंग भी मेरे पापा ही करते हैं। वे ट्रक ड्राइवर हैं और महीने में चाहे 20 हज़ार रुपये ही क्यों न कमाएं, उसमें से 10 हज़ार रुपये मेरे संगठन के लिए अलग रख देते हैं,” अंजू ने बताया।

उनका भाई सुखदेव भी हर कदम पर उनके साथ चलता है। उनके अभियानों में पूरा साथ देता है और जब लोग विरोध करते हैं तब अपनी बहन के लिए सबके सामने खड़ा हो जाता है। उनका दोस्त दीनबंधु प्रजापति भी कदम से कदम मिलाकर इस संघर्ष में उनका साथ दे रहा है। अंजू कहती हैं कि उनके दोस्त ने उन्हें ज़िंदगी में बुरे अनुभवों को भूल आगे बढ़ना सिखाया है।

फ़िलहाल, अंजू 12वीं कक्षा में हैं और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। उनकी इस लड़ाई में उनके दोस्त और अब टीम मेंबर, मोनिका गोदारा, पवन, दिव्या बरार, सुमन वर्मा, संदीप, रमेश, सुमित कुमार, हरप्रीत और पूजा, हर कदम पर उनका साथ दे रहे हैं।

यह भी पढ़ें: हर रोज़ 70 जानवरों को खाना खिलाती है 15 साल की यह बच्ची!

अंजू आने वाले समय में यूपीएससी पास करके आईएएस अफसर बनाना चाहती हैं और सिर्फ यही कहती हैं कि अक्सर हम युवा समस्याओं से डर जाते हैं। उनका मानना है कि जितने बड़े सपने होंगे, उतनी ज्यादा चुनौती होंगी। जितना ज्यादा संघर्ष होगा, उतनी ही बड़ी मंजिल होगी, इसलिए बस एक कदम बढ़ाकर देखें।

यदि आपको इस कहानी ने प्रभावित किया और आप अंजू वर्मा से जुड़ना चाहते हैं तो उनके फेसबुक पेज पर सम्पर्क कर सकते हैं!

संपादन – अर्चना गुप्ता

Keywords: Bachcho ke adhikar, Haryana ki Beti, Anju Verma, Buland Udaan, Soch Badaliye, Stop Child Labour, Stop Child Marriage


यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें। आप हमें किसी भी प्रेरणात्मक ख़बर का वीडियो 7337854222 पर व्हाट्सएप कर सकते हैं।

We at The Better India want to showcase everything that is working in this country. By using the power of constructive journalism, we want to change India – one story at a time. If you read us, like us and want this positive movement to grow, then do consider supporting us via the following buttons:

X