गाँव में शुरू किया अचार, स्क्वाश का Village Business, 800 किसानों से खरीदते हैं फल-सब्जियां

मनीष सुन्दरियाल, उत्तराखंड में पौड़ी जिले के धुमाकोट तहसील में डूंगरी गाँव में Village Business, 'सुन्दरियाल प्रोडक्शन' चला रहे हैं।

अगर सही सोच और नीयत से काम किया जाए, तो देश के गांवों में भी रोजगार के बहुत मौके हैं। गाँव में आजीविका कमाने के लिए, जरूरी नहीं कि आपके पास जमीन हो या आप खेती ही करें। आप गाँव में उपलब्ध साधनों से भी रोजगार के अवसर तलाश सकते हैं। जैसा उत्तराखंड के विजय सुन्दरियाल ने किया था। 
उत्तराखंड में पौड़ी जिले के धुमाकोट तहसील में डूंगरी गाँव के रहने वाले, स्वर्गीय विजय सुन्दरियाल ने साल 1998 में सुन्दरियाल प्रोडक्शन (Village Business) की शुरुआत की थी, जहाँ वह अचार, स्क्वाश और जूस जैसी चीज़ें बनाते थे। अब उनके बेटे, 40 वर्षीय मनीष सुन्दरियाल इसे चला रहे हैं।

मनीष कहते हैं कि उनके पिता ने कई सालों तक, हरिद्वार की एक कंपनी में काम करते रहे। लेकिन, अपने गाँव के लिए कुछ करने की चाह, उन्हें शहर से गाँव वापस ले आई और 1998 में उन्होंने डूंगरी गाँव में इस कंपनी की शुरुआत की। 

वह कहते हैं, “पिताजी ने पूसा संस्थान और अन्य कुछ सामाजिक संगठनों से, पहाड़ों में उपलब्ध फूल, फल और सब्जियों की प्रोसेसिंग करके खाद्य उत्पाद बनाना सीखा था। इसके बाद, उन्होंने गाँव में ही काम (Village Business) शुरू किया। हमारी थोड़ी-बहुत जमीन है, लेकिन हम खेती नहीं करते हैं। इसलिए, पिताजी ने गाँव और आसपास के इलाके के दूसरे किसानों से, फल और सब्जियां खरीदना शुरू किया। मैं उस समय लगभग 18 साल का था और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ, पिताजी के काम में भी हाथ बंटाता था।” 

बनाते हैं 30 से ज्यादा खाद्य उत्पाद: 

Pickle and Squash Business
मनीष सुन्दरियाल

मनीष ने आगे बताया कि जब उनके परिवार ने यह काम (Village Business) शुरू किया, तब उन्हें बहुत सी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा। क्योंकि, तब गाँव में काम करने के लिए कर्मचारी नहीं मिल पाते थे। लोग उनके घर आकर काम करने में शर्म महसूस करते थे। इसलिए, मनीष का परिवार कई साल तक, ऋषिकेश में किराए पर रहा और वहां रहते हुए अपना काम चलाया। धीरे-धीरे जब उनका काम बढ़ने लगा और इस इलाके में उनके पिता का अच्छा नाम बन गया, तब 2006 में उनका परिवार फिर गाँव में आकर रहने लगा।

मनीष ने पॉलिटिकल साइंस विषय में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। वह कहते हैं, “अपनी पढ़ाई के साथ-साथ, मैं पिताजी से काम भी सीखता रहा और मास्टर्स करने के बाद, कंपनी को आगे बढ़ाने में ही जुट गया। पिताजी या मैंने कभी भी नहीं चाहा कि हम अपने पहाड़ों या गाँव को छोड़कर कहीं बाहर जाएं। इसलिए, हमने अपनी कंपनी गाँव में शुरू की, ताकि अपने साथ-साथ दूसरों को भी रोजगार दें।” 

उनकी कंपनी में अब 30 से ज्यादा तरह के खाद्य उत्पाद बनते हैं, जो पूरी तरह से शुद्ध, जैविक और रसायन मुक्त हैं। मनीष बताते हैं कि उन्होंने घर पर ही ग्राइंडर, जूसर और पैकेजिंग मशीन लगाई है। उनके खाद्य उत्पादों में अचार, पहाड़ी नमक (पिस्युं लूण), स्क्वाश और जूस आदि शामिल हैं। 

आम, मिर्च, लहसुन, मशरूम आदि का अचार बनाने के साथ ही, वह पहाड़ों में ज्यादा मात्रा में मिलने वाले बुरांश फूल का स्क्वाश, माल्टा और नींबू का स्क्वाश भी बनाते हैं। इसके अलावा, पुदीना, आंवला और काफल का जूस, टमाटर का सॉस, हरी मिर्च का सॉस और सिरका भी बना रहे हैं। उनके यहाँ, पहाड़ों में उगने वाली अलग-अलग तरह की औषधियों से पिस्युं लूण तैयार होता है। 

Pickle and Squash Business
स्थानीय लोगों को दिया रोजगार

उन्होंने बताया, “पहाड़ी नमक बनाने के लिए मैंने 17 महिलाओं को काम पर रखा है। ये महिलाएं सिलबट्टे से पहाड़ी नमक पीसती हैं। हम लगभग आठ तरह के नमक बनाते हैं। जिनमें अदरक, लहसुन, अलसी, धनिया, जीरा और सरसों का फ्लेवर शामिल है।” उत्पादों को बनाने से लेकर, पैक करके अलग-अलग शहरों में दुकानों तक पहुंचाने के लिए, उन्होंने 27 लोगों को काम पर रखा है। उनके यहां काम करने वाले कर्मचारी, प्रतिमाह सात से 10 हजार रुपए तक की कमाई कर लेते हैं। 

किसानों की हो रही है अच्छी आय: 

मनीष कहते हैं कि खाद्य उत्पाद बनाने के लिए, वह सभी रॉ मटेरियल छोटे पहाड़ी किसानों से खरीदते हैं। मनीष और उनके कुछ कर्मचारी, खेतों पर जाकर किसानों से फल-सब्जियां खरीदते हैं। इस तरह, इन किसानों को अब मंडी पर निर्भर नहीं होना पड़ता है। 

वह कहते हैं, “हमारे गाँव के पास कोई बड़ी मंडी भी नहीं है। जिस कारण, किसानों को अपनी फसल बेचने में काफी दिक्कतें आती थीं। लेकिन, हम उनके घर और खेतों पर जाकर ही, फल और सब्जियां खरीद लाते हैं। उन्हें दाम भी उनकी मेहनत के मुताबिक ही देते हैं। इससे किसानों की परेशानियां कम हुई हैं।”

धुमाकोट के खुजड़ा गाँव में रहने वाले 30 वर्षीय किसान सूरजपाल बताते हैं, “हमारा परिवार लगभग 16-17 सालों से मनीष जी से जुड़ा हुआ है। हम अदरक, मिर्च और हल्दी जैसे मसालों की खेती करते हैं। हमारी पूरी उपज को मनीष जी ही खरीदते हैं। इससे, हमें हर मौसम में 10 से 12 हजार रुपए की बचत होती है। क्योंकि अगर हम अपनी उपज को मंडी में बेचने जाएं, तो हमें ट्रांसपोर्ट पर लगभग इतना ही खर्च करना पड़ता है।”

सूरजपाल कहते हैं कि उनके गाँव से मनीष और भी बहुत से किसानों से उनकी उपज को खरीदते हैं। इस कारण, अब उन्हें बाजार की समस्या नहीं है। मनीष ने बताया कि वह फिलहाल लगभग 800 किसानों से जुड़े हुए हैं। ये सभी ऐसे किसान हैं, जिनके पास ज्यादा जमीन नहीं है और कम मात्रा में ही फसल उत्पादन करते हैं। इससे उनके घर का भरण-पोषण हो जाए और कुछ उपज बेचकर पैसे आ जाएं।

Pickle and Squash Business

उन्होंने आगे कहा, “लेकिन समस्या यह है कि उत्तराखंड में अभी भी ज्यादातर गाँव शहरों से जुड़े हुए नहीं हैं। किसानों के लिए कोई साधन नहीं है, जिससे वह सीधा मंडी में अपनी उपज पहुंचा दें। उत्तर प्रदेश से अलग होकर, उत्तराखंड अलग राज्य इसलिए बना, ताकि पहाड़ों के लोगों के लिए पहाड़ों में ही उद्योग लगे और उन्हें दूसरे शहरों में पलायन न करना पड़े। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा है।” 

किसानों की मदद करने के साथ-साथ, मनीष शहरों में छोटे दुकानदारों की भी मदद कर रहे हैं। नैनीताल, रामनगर, काशीपुर, धुमाकोट, कोटद्वार जैसी जगहों पर, वह लगभग 600 दुकानों पर अपने उत्पाद पहुंचाकर आते हैं। ये दुकानदार आगे ग्राहकों को इन उत्पादों को बेचकर, अच्छा मुनाफा कमाते हैं। मनीष कहते हैं, “हमने चार गाड़ियां रखी हैं और इन्हीं से सभी सामान शहरों में पहुंचाते हैं। लेकिन, अभी हमारे ग्राहक सिर्फ उत्तराखंड तक ही सीमित हैं। दिल्ली और चंडीगढ़ के अपने कुछ जानने वालों के यहां, हम ऑर्डर पर सामान भेजते हैं। लेकिन ऑर्डर ज्यादा मात्रा में होना जरूरी है, ताकि हमें उन्हें भेजने में घाटा न हो।” 

पिछले दो सालों से वह पहाड़ी दाल, मोटे अनाज जैसे- बाजरा, रागी, ज्वार और हल्दी, मिर्च, जीरा आदि मसाले भी प्रोसेस करके, अपनी पैकेजिंग के साथ बाजार तक पहुंचा रहे हैं। मनीष कहते हैं कि इस काम (Village Business) से वह गाँव में रहते हुए ही, हर साल लगभग छह लाख रुपए की बचत कर लेते हैं। वह कहते हैं, “इससे ज्यादा अच्छा क्या होगा कि मैं अपने गाँव में रहते हुए, अच्छी कमाई कर रहा हूँ और गाँववालों को भी काम दे पा रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि भविष्य में मेरे बच्चे भी इस काम से जुड़ें। मैं खुशकिस्मत हूँ कि मेरे पिताजी ने मुझे यह राह दिखाई।” 

दूसरे किसानों और युवाओं के लिए, मनीष यही संदेश देते हैं कि अगर कोई सच्ची लगन से काम करता है, तो उसे सफलता जरूर मिलती है। स्थानीय इलाकों में उनका काम (Village Business) अच्छा चल रहा है। लेकिन, वह चाहते हैं कि पहाड़ों के ये शुद्ध खाद्य उत्पाद, बड़े शहरों के लोगों तक भी पहुंचे। 

अगर आप उनके बनाए खाद्य उत्पाद ऑर्डर करना चाहते हैं, तो उन्हें 9012862532 पर कॉल या मैसेज कर सकते हैं। 

संपादन- जी एन झा

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