प्रतिष्ठित बाथवेयर कंपनी हिंदवेयर होम्स ने अपने सीएसआर प्रोग्राम के तहत “Build a Toilet, Build her Future” पहल को लॉन्च कर, पूरे भारत के लाखों स्कूली लड़कियों को एक नई उम्मीद देने का संकल्प किया है।
बिहार के कोसी अंचल में एक अनूठा प्रोडक्शन यूनिट संचालित हो रहा है, इस यूनिट में सिर्फ महिलाएं ही काम करती हैं और उन्हें नियमित सम्मानजनक आजीविका का अवसर मिलता है।
एक कलाकार हमेशा समय से आगे की सोचता है। जब काम करने के लिए बहुत कम महिलाएं घरों से बाहर निकलती थीं, खासकर छोटे शहरों में। तब उत्तर प्रदेश के एक छोटे से जिले मऊ के रहने वाले मुमताज़ खान ने कई लड़कियों और महिलाओं को हुनरमंद बनाने और रोज़गार से जोड़ने का बीड़ा उठाया।
महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना (MKSP) से जुड़कर, झारखंड के पिछड़े गांवों की महिलाएं आत्मनिर्भर बन चुकी हैं। लाख की वैज्ञानिक खेती (lac farming) को अपनाकर कमा रही हैं, 50 हजार से एक लाख रुपये तक का सालाना मुनाफा।
मुंबई में साल 1991 में एक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत ‘श्रमिक महिला विकास संघ’ ने 300 से अधिक जरूरतमंद महिलाओं को सशक्त बनाया है। यह पहल, महिलाओं को एक ऐसा मंच प्रदान करती है, जिसमें वे अपनी पाक-कला का उपयोग कर अपनी आजीविका अच्छे से चलाने में सक्षम बन रही हैं।
कोचीन, केरल में रहने वाली दीविया थॉमस ने साल 2008 में पुराने अखबारों से बैग बना कर अपने काम की शुरुआत की थी और आज वह इको-फ्रेंडली बैग के साथ-साथ डिब्बे, कार्ड, पेपर-पेन जैसे उत्पाद भी बना रहीं हैं।
दिल्ली में पाँच महिलाओं ने मिलकर ‘काकुल’ नाम से एक ऐसे मंच को शुरू किया, जहाँ न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल और हाथों से बने सौ से अधिक उत्पादों को बेचा जाता है, बल्कि इससे दूसरी महिला उद्यमियों को भी बढ़ावा मिल रहा है। पढ़िये एक प्रेरक कहानी।
दिल्ली में रहने वाली प्रज्ञा अग्रवाल ने अपनी बेटी आध्विका के साथ मिलकर अपनी ऑर्गेनिक स्पाइस कंपनी ORganic COndiments की शुरुआत 2016 में की। इसके तहत उनका उद्देश्य वंचित महिलाओं को रोजगार देने का है।
ऐतिहासिक सेव साइलेंट वैली आंदोलन के दौरान मराठिनु स्तुति (Ode to a Tree) नाम की एक कविता इस आंदोलन की पहचान बन गई। इस कविता को आवाज सुगत कुमारी ने दी थी, जो इस आंदोलन का नेतृत्व भी कर रही थीं।