रांची के मनोज रंजन को बचपन से ही गार्डनिंग का शौक था। लेकिन शहर में नौकरी की वजह से उनका परिवार रांची आ गया और यहां पौधे लगाने की जगह नहीं थी। लेकिन पिछले पांच सालों से, उन्होंने घर के बाहर रोड साइड पौधे लगाना शुरू किया और आज 200 से ज्यादा पौधे उगाकर हरियाली फैला दी है।
रामगढ़ (झारखंड) के वियंग गांव के रहनेवाले केदार प्रसाद महतो मात्र बारहवीं पास हैं, लेकिन अपने दिमाग और आठ सालों की मेहनत से, उन्होंने गांव के लिए बिजली बनाने में सफलता हासिल कर ली।
धनबाद में कोल इंडिया के क्वार्टर में रहनेवाली नेहा कच्छप बचपन से ही पौधों के बीच पली-बढ़ीं। नेहा को शादी के बाद, हरियाली की कमी हमेशा खलती थी। लेकिन उन्होंने शिकायत करने के बजाय, माइनिंग एरिया में भी सैकड़ों पौधे लगाकर, कई लोगों को चौंका दिया।
रांची में सरकारी क्वार्टर में रहने वाली दीपिका लकड़ा को गार्डनिंग से खास लगाव है। वह कई तरह के सजावटी पौधे उगा रही हैं और साथ ही एक नर्सरी भी चला रहीं हैं।
झारखंड का धनबाद इलाका, कोयले की खानों के लिए जाना जाता है। ऐसे में, खेती के लिए यहां काफी कम संभावनाएं हैं। लेकिन इस इलाके के एक मज़दूर उमा महतो ने, अपनी दो एकड़ जमीन को 15 साल की मेहनत से उपजाऊ बना दिया।
कोरोना के दौरान जब गांव के बच्चों को शिक्षा नहीं मिल पा रही थी, तब 18 वर्षीय उपेंद्र यादव ने उनको पढ़ाने का बीड़ा उठाया। दिव्यांग होते हुए भी, वह हर रोज लकड़ी के सहारे दो किमी पैदल चलकर 60 बच्चों को पढ़ाने जाते हैं।
झारखंड के रहनेवाले, जीवनबोध एग्रोटेक के संस्थापक, प्रसेनजीत कुमार ने बोकारो में अपने बैकयार्ड में तटीय क्षेत्रों में उगने वाली शहतूत (noni cultivation) उगाने में कामयाबी हासिल की है।
जमशेदपुर के राजेश कुमार, पिछले लॉकडाउन से पहले अपनी नौकरी छोड़कर घर लौट आये थे। उन्होंने घर में ही मशरूम की खेती शुरू की, जिससे आज वह हर महीने अच्छी कमाई कर रहे हैं।