खाद्य इतिहासकार रेबेका अर्ल कहती हैं, "आलू दुनिया भर में होता है और सभी लोग इसे अपना समझते हैं।" वह इसे दुनिया का 'सबसे सफल प्रवासी' मानती हैं। आलू की कहानी किसी एक देश या भौगोलिक क्षेत्र की नहीं है। इसकी कहानी बताती है कि पिछली कुछ पीढ़ियों में इंसान ने ज़मीन और खाने के साथ अपना रिश्ता कैसे बदला है।
अहमदाबाद के मिलन बोचीवाल, पिछले सात सालों से बलूनवाला नाम से एक अनोखे बिज़नेस मॉडल पर काम कर रहे हैं, जिसके ज़रिए वह कई ज़रूरतमंद युवाओं को रोज़गार देने के साथ, शहर की पार्टियों में रंग भर रहे हैं।
सस्टेनेबल लिविंग को ध्यान में रखकर Bir Terraces को पारंपरिक पहाड़ी तरीके से बनाया गया है। वादियों में बसे इस घर को बनाते समय एक भी पेड़ नहीं काटा गया और इसे बनाने में रीसाइकल्ड लड़की जैसी प्राकृतिक चीज़ों का ही इस्तेमाल किया गया है।
90 साल की उम्र में भी लक्ष्मी अम्मल, मेहनत करने से नहीं डरतीं। उन्होंने अपनी 72 साल की बेटी के साथ मिलकर पिछले साल ही चेन्नई के पास 'वक्साना फार्म स्टे' की शुरुआत की है।
पुणे में एक सोशल एंटरप्राइज़ चलानेवाले अनीश मालपानी ने दो साल की रिसर्च के बाद, मल्टी-लेयर प्लास्टिक को रीसायकल करके ट्रेंडी सनग्लासेज़ बनाने का एक तरीका खोज निकाला है।
सुंदरबन, बंगाल के रहनेवाले डॉ. फारूक हूसैन ने गरीब लोगों का इलाज करने के लिए अपनी सरकारी नौकरी तक छोड़ दी और आज लोग उन्हें प्यार से 'बिना पैसे का डॉक्टर' कहकर बुलाते हैं।
लगभग 100 साल पुराने हिमाचली काठ कुनी घर को खूबसूरत होमस्टे में बदलकर फरीदाबाद के रहने वाले देवेश जोशी अपने शहरी मेहमानों के बीच सस्टेनेबल लिविंग और ऑर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा दे रहे हैं। यहाँ आने वाले लोग प्रकृति के बीच वक़्त बिताने के अलावा कई अडवेंचरस एक्टिविटीज़ में भी हिस्सा ले सकते हैं।
चाँद जैसी दिखती है वह, टेस्ट है उसका लाजवाब! होली की है शान, बोलो क्या है उसका नाम? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं मिठास से भरी गुजिया की! इसे करंजी बुलाएं या घुघरा, गरिजालू कहें या पेड़किया.. अलग-अलग नामों वाली इस गुजिया के बिना रंगों वाली होली भी फ़ीकी हो जाती है। लेकिन क्या इसकी कहानी पता है आपको? कैसे एक मिठाई बन गई होली की शान!