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आँखें जाने के बाद भी नहीं हारी हिम्मत, 46 वर्षों से बिना किसी मदद चला रहे हैं अपनी दुकान

केरल के पथानमथिट्टा जिले के रहने सुधाकर कुरुप के आँखों की रोशनी 21 वर्ष के उम्र में ही चली गई।

इस खत को पढ़कर आप भावुक हो जाएंगे, जिसे एक IAS बेटी ने अपनी माँ के नाम लिखा है!

IAS अधिकारी सरयू मोहनचंद्रन मूल रूप से केरल की रहने वाली हैं। वह फिलहाल, तमिलनाडु के नीलगिरी जिले में तैनात हैं। कुछ महीने पहले, उन्होंने अपने फेसबुक पर अपनी माँ, खादिजा के लिए एक काफी भावनात्मक पोस्ट साझा किया।

23 वर्षों से दुनिया के सबसे छोटे सुअर को बचाने के लिए संघर्षरत हैं असम के यह शख्स!

पिग्मी हॉग दुनिया का सबसे छोटा और खास किस्म का जंगली सूअर है। इसकी लंबाई औसतन 60 सेंटीमीटर और ऊंचाई 25 सेंटीमीटर होती है। जबकि, इसका वजन 8 से 9 किलोग्राम होता है।

“जरूरतमंदों को पैसे देने के बजाय, खाना देना बेहतर…” मिलिए कोच्चि के इस प्रेरक चायवाले से!

केरल के कोच्चि के रहने वाले ओ.ए. नजर और उनके भाई ओ. ए. शमसुद्दीन, अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए, हर दिन कम से कम 10 लोगों को खाना खिलाते हैं।

बंगलुरु: ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए स्नैक्स पहुंचाए शहरों तक, बेचीं 20 लाख देसी कैंडी

By निशा डागर

बंगलुरु में रहने वाले विनय कोठारी ने साल 2018 में अपने स्टार्टअप, गो देसी की शुरुआत की, जो आज इमली पॉप्स के लिए अच्छा-ख़ासा ब्रांड बन चुका है!

उम्र 105 वर्ष, काम -जैविक खेती, मिलिए इस दादी से!

जब आज की पीढ़ी 50 साल की उम्र तक रिटायर होने की योजना बना रही है, तो 105 वर्षीय पप्पम्मल की कहानी सिर्फ एक उदाहरण नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है, क्योंकि आज भी, हर दिन वह अपने खेती कार्यों को करती हैं।

कोरोना से लड़ने के लिए हिमाचल प्रदेश के ये 10 लोग अपने-अपने स्तर पर दे रहें हैं योगदान

By रोहित पराशर

कोई अपनी ज़मीन दे रहा है तो कोई कर रहा है श्रमदान, किसी ने सरकारी एंबुलेंस ठीक करने की ठानी है, तो कोई मास्क बना रहा है। किसी ने किरायेदारों का किराया माफ किया, तो किसी ने अपने घर के दरवाज़े ज़रूरतमंदों के लिए खोल दिए। हर कोई अपने सामर्थ्य के अनुसार कोरोना से इस लड़ाई में अपनी-अपनी भूमिका निभा रहा है।

पढ़िए 76 साल की इस दादी की कहानी जिसने 56 की उम्र में की बीएड, खोला खुद का स्कूल!

''माँ के देहांत के कारण बचपन में ही नन्हें कंधों पर रसोई और घर के कामों की जिम्मेदारी आ गई। 15 वर्ष की उम्र तक स्कूल का दरवाजा नहीं देखने वाली इस महिला के लिए काला अक्षर भैंस बराबर था। ज़िद करते हुए नन्हीं बच्चियों के साथ साड़ी पहने हुए ही स्लेट पकड़कर अक्षर ज्ञान लिया। 18 वर्ष की होने तक शादी कर दी गई। ससुराल में पढ़ाई-लिखाई पर पाबंदी के बावजूद पढ़ाई का क्रम जारी रखा। प्राइवेट कैंडिडेट के तौर पर घर पर पढ़ाई कर किसी तरह ग्रेजुएशन और फिर अपनी बेटी के साथ ही बीएड किया। आज खुद का स्कूल चला रही है। शिक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल बनकर उभरी है।''