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कभी थे ड्रग एडिक्ट, अब हैं पहाड़ों के नशा मुक्ति दूत!

पंकी की नशे की लत ने उसके सोचने-समझने की सलाहियत भी ख़त्म कर दी थी। आज उस घड़ी को याद करते हुए पंकी की ऑंखें भर आती हैं।

कविता करकरे : शहीदों के परिवारों को हक़ दिलवाने के लिए लड़ती रही आख़िरी दम तक!

By मानबी कटोच

कविता सिर्फ़ एक शहिद की विधवा नही थी. वे इससे कई ज़्यादा थी. देश के लिए उन्होने जो कुछ किया उससे वे स्वयं एक शहिद कहलाई जाने की हक़दार है.