परिवार के किसी सदस्य के अंतिम संस्कार के लिए, बिना किसी परेशानी और ज़्यादा समय लगाए सारी व्यवस्था करने में लोगों की मदद कर रहा है दिल्ली का स्टार्टअप 'लास्ट जर्नी'।
कम निवेश और कम देखभाल में ज़्यादा मुनाफ़े के लिए मोती की खेती कर रहे अजमेर, रसूलपुरा गांव के 41 वर्षीय रज़ा मोहम्मद ने प्रयोग के तौर पर एक छोटी सी शुरुआत की थी, लेकिन आज वह इससे लाखों कमा रहे हैं।
चेन्नई के केके नगर के एक कॉम्प्लेक्स में 10 साल से अधिक समय तक घरेलू सहायिका के रूप में काम करने वाली अम्मा इस वायरस से जूझने के बाद लगभग एक महीने तक काम पर नहीं जा सकीं। यह काम उनकी आजीविका का एकमात्र स्रोत था।
डॉ. दिव्या सिंह कहती हैं, "संकट के समय अगर मैं अपने देश की मदद नहीं कर सकती हूं तो मेरे डॉक्टर होने का क्या मतलब है।" डॉ दिव्या लोगों की सेवा में दिन-रात लगी हुई हैं। वह पूरा दिन पीपीई किट पहनती हैं इसके लिए उन्होंने अपने बाल तक कटवा लिए हैं।
लॉकडाउन के कारण, भोजन और पैसे की कमी झेल रहे लाखों प्रवासी श्रमिक अपने परिवार से दूर कहीं और फंसे हुए हैं। ऐसे में सूरत का एक एनजीओ एक अलग और अनोखे तरीके से उनकी मदद के लिए सामने आया है। आईए जानते हैं कैसे।
लॉकडाउन में पशुओं का चारा की सबसे अधिक दिक्कत हो रही है। गांव में पशुओं को परेशानी न हो इसके लिए वह गेंहू की फसल का भूसा आदि बांट रहे हैं। इस काम में उनका अबतक करीब ढाई लाख रुपया खर्च हो चुका है।