यह साल 2015 की बात होगी, जब देश भर में दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण की बात हो रही थी। खासकर, हरियाणा और पंजाब में किसानों के पराली जलाने की समस्या पर चर्चा थी, कि कैसे यह वायु प्रदूषण के मुख्य कारणों में से एक है। इसी समस्या का हल ढूंढ निकाला है IIT हैदराबाद ने, Bio Brick बनाकर।
IIT हैदराबाद के डिज़ाइन विभाग के पीएचडी स्कॉलर प्रियब्रत राउतराय और उनके साथी, अविक रॉय ने मिलकर खेतों में फसल के बाद बचने वाली पराली का उपयोग करके ‘Bio Brick’ बनाई है, जिसे बिल्डिंग मटीरियल के तौर पर इस्तेमाल में लिया जा सकता है।
सितंबर, 2021 में IIT हैदराबाद में Bio Brick से बने एक गार्ड-रूम का उद्घाटन किया गया है। यह भारत की पहली बिल्डिंग है, जो Bio Brick से बनी है।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए प्रियब्रत और अविक ने बताया कि कैसे Bio Brick के माध्यम से वह पराली जलाने की समस्या और सस्टेनेबल आर्किटेक्चर पर काम कर रहे हैं।
मूल रूप से ओडिशा से संबंध रखने वाले प्रियब्रत और अविक, दोनों ही आर्किटेक्ट हैं। प्रियब्रत फ़िलहाल पीएचडी कर रहे हैं तो अविक KIITS स्कूल ऑफ़ आर्किटेक्चर, भुवनेश्वर में शिक्षक हैं।
अविक बताते हैं, “डिज़ाइन में मास्टर्स की डिग्री करने के बाद, हम दोनों ही दिल्ली में अलग-अलग इंडस्ट्रीज में काम कर रहे थे। साल 2011 में, हमने साथ में मिलकर अपना Design firm, “R Square Dezign” शुरू किया। हमने कई डिजाइनिंग प्रोजेक्ट्स किए। लेकिन पिछले कुछ सालों में, जब दिल्ली में बढ़ रहे प्रदूषण पर चर्चा बढ़ी तो हमारा ध्यान इस ओर गया। एक तरफ पराली की समस्या थी और दूसरी तरफ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बढ़ती ईंट की मांग। काफी समय तक विचार-विमर्श करके हमने इन दोनों परेशानियों का एक हल ढूंढ़ा और वही हल है Bio Brick।”
Farm Waste से बनाये Bio Brick
प्रियब्रत बताते हैं कि एक तरफ पराली जलाने के कारण बढ़ रहे वायु प्रदूषण की समस्या थी, तो दूसरी तरफ किसान, जिनके पास पराली के प्रबंधन का कोई ठोस समाधान नहीं। वहीं, कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री की बात करें, तो यह सच है कि पर्यावरण को हानि पहुंचाने के लिए यह इंडस्ट्री भी जिम्मेदार है। देश में लगभग 140000 ईंटों की भट्ठियां हैं, लेकिन फिर भी निर्माण कार्यों के लिए ईंटों की आपूर्ति नहीं हो पाती है। साथ ही, ईंट बनाने के लिए मिट्टी की सबसे ऊपर परत का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसके कारण मिट्टी की गुणवत्ता घट रही है।
ईंट की ये भट्ठियां न सिर्फ बहुत ज्यादा ऊर्जा लेती हैं, बल्कि इनसे होने वाला प्रदूषण भी काफी ज्यादा है। इस कारण अविक और प्रियब्रत ने सोचा कि कृषि अपशिष्ट यानी farm waste को कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री के लिए क्यों इस्तेमाल नहीं किया जा सकता? उन्होंने साल 2015 से इस पर काम करना शुरू कर दिया था। सबसे पहले उन्होंने अलग-अलग फसलों जैसे गन्ना, गेहूं और चावल आदि के अपशिष्ट पर रिसर्च करना शुरू किया। इसी बीच, प्रियब्रत को 2017 में IIT हैदराबाद में पीएचडी में दाखिला मिल गया और अविक ने कॉलेज में बतौर शिक्षक काम शुरू कर दिया।
2019 में अविक और प्रियब्रत ने ICED conference, Delft university में ‘बायो ब्रिक’ पर एक रिसर्च पेपर भी पब्लिश किया। उनका आईडिया सभी को अच्छा लगा और तब से दोनों इस प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। लगभग छह सालों की मेहनत के बाद आखिरकार वह अलग-अलग फसलों के अपशिष्ट से ईंट बनाने में कामयाब हो गए। उन्होंने अपनी ‘बायो ब्रिक’ को Rural Innovators Start-Up Conclave 2019 में प्रेजेंट किया। जहां उन्हें सस्टेनेबल हाउसिंग केटेगरी में Special Recognition Trophy मिली। इसके बाद, उन्होंने अपनी इस तकनीक के लिए पेटेंट फाइल किया और अप्रैल 2021 में उन्हें पेटेंट भी मिल गया।
Bio Brick से बनाया सस्टेनेबल गार्ड-रूम
अपनी तकनीक पर बात करते हुए अविक और प्रियब्रत स्पष्ट करते हैं “हमने पराली से ईंट बनाने के लिए सीमेंट और चुने को बाइंडर के रूप में प्रयोग किया है। सबसे पहले पराली को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है और फिर इसमें पानी के साथ चुना और सीमेंट मिलाया जाता है । इसके बाद इसे मोल्ड में डाला कर दो दिन तक सुखाया जाता है। दो-तीन दिन में ईंट तैयार हो जाती है। हमने IIT हैदराबाद के कैंपस में इस मटीरियल से 6×6 फ़ीट का एक गार्ड रूम बनाया है। इसकी दीवारें और छत, दोनों ही बायो ब्रिक से बनी हैं।”
इस कमरे का स्ट्रक्चर बनाने के लिए उन्होंने मेटल के फ्रेम का इस्तेमाल किया है। प्रियब्रत कहते हैं, “सबसे पहले हमने मेटल का फ्रेम तैयार किया और फिर इसमें मोल्ड लगाकर रॉ मटेरियल से दीवारें बनाई। मोल्ड को दो दिन बाद हटा दिया गया और इसके बाद, लगभग 10 दिन तक दीवारों को सूखने दिया गया ताकि यह अच्छे से मजबूत हो जाएं। इसके बाद हमने इसी तरह छत बनाने पर भी काम किया। छत के लिए पीवीसी शीट पर बायो ब्रिक लगाई गयी हैं। इससे यह इंसुलेटर का काम करेंगी। सितंबर 2021 में यह गार्डरूम बनकर तैयार हो गया था।”
उन्होंने बताया कि IIT हैदराबाद के BUILD (Bold Unique Idea Lead Development) प्रोग्राम के तहत उन्हें इस प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग मिली।
गार्ड-रूम की खासियत
बायो ब्रिक से बने होने के कारण कमरे के अंदर का तापमान बाहर के तापमान से लगभग छह डिग्री कम रहता है। क्योंकि यह मटेरियल इंसुलेटर की तरह काम करता है। वहीं, चुने और सीमेंट को बाइंडर मटेरियल की तरह इस्तेमाल करने से यह आग प्रतिरोधी भी है। इसके अलावा,
- यह तकनीक न सिर्फ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में मिट्टी की ईंटों का सस्टेनेबल विकल्प है बल्कि किसानों के लिए अतिरिक्त आय का साधन भी हो सकती है।
- अगर किसानों को पराली के प्रबंधन का सही रास्ता दिया जाये तो कोई भी पराली नहीं जलाएगा, जिससे वायु प्रदूषण नहीं होगा।
- बायो ब्रिक बनाना बहुत ही आसान है और किफायती भी। किसान इसे अपने खेतों में भी बना सकते हैं और आगे सप्लाई कर सकते हैं।
- मिट्टी की ईंट से बायो ब्रिक का वजन पांच गुना कम होता है तो सीमेंट की ईंटों से आठ गुना कम होता है।
- सामान्य ईंट की तुलना में, अगर बायो ब्रिक को बड़े स्तर पर बनाया जाए तो एक ईंट की कीमत दो से तीन रुपए आएगी।
- गांव और छोटे शहरों में, छोटे हाउसिंग मॉडल और किफायती बिल्डिंग्स के लिए बायो ब्रिक बहुत ही अच्छा और सस्टेनेबल रॉ मटेरियल है।
इस प्रोजेक्ट के बारे में IIT हैदराबाद के डायरेक्टर, प्रोफेसर बीएस मूर्ति का कहना है कि ‘अपशिष्ट से कमाई’ का यह सबसे बेहतरीन उदाहरण है। इसलिए वह जल्द ही इसे ग्रामीण समुदायों तक पहुंचाने के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को प्रपोजल भेजेंगे। वहीं, संस्थान के डिज़ाइन विभाग के हेड, प्रोफेसर दीपक जॉन मैथ्यू कहते हैं कि यह आविष्कार किसानों के जीवन में बदलाव लाएगा क्योंकि वे अपने खेती के अपशिष्ट से आमदनी कमा सकेंगे। इससे उन्हें अच्छे रोजगार के अवसर मिलेंगे।
अगर आप इस प्रोजेक्ट के बारे में अधिक जानकारी चाहते हैं तो यह वीडियो देख सकते हैं।
संपादन- जी एन झा
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