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पहले पराली में उगाई मशरूम, फिर इसके वेस्ट से बनाये इको फ्रेंडली बर्तन

Dr. Pooja Dubey Pandey

डॉ. पूजा दुबे पाण्डेय एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट हैं और इंदौर में अपनी कंपनी, 'Biotech Era Transforming India' (BETi) के जरिए मशरूम पर काम करने के साथ-साथ, पराली से इको फ्रेंडली पैकजिंग भी बना रही हैं।

“किसी भी क्षेत्र में शोधकर्ता, सालों तक शोध करते हैं। लेकिन उनके शोध का प्रभाव आम आदमी तक पहुंचने में लंबा वक्त लग जाता है। मैंने भी बायोटेक्नोलॉजी में एमएससी और पीएचडी की। पढ़ाई के बाद अलग-अलग संस्थानों जैसे भोपाल में नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज और नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी की लैब में बतौर रिसर्चर काम किया। लेकिन सवाल यही था कि हमारा काम लोगों तक कब पहुंचेगा,” यह कहना है इंदौर में रहने वाली डॉ. पूजा दुबे पाण्डेय का। 

पूजा एक बायोटेक्नोलॉजिस्ट हैं और अपनी खुद की कंपनी, ‘Biotech Era Transforming India’ (BETi) चला रही हैं। साल 2017 में उन्होंने अपनी कंपनी का पंजीकरण कराया था। दिलचस्प बात यह है कि पूजा ने अपने घर के बेसमेंट में ही लैब स्थापित कर बिज़नेस शुरू किया। जिसके जरिए वह मशरूम के स्पॉन बनाती हैं। वह मशरूम उगाने के साथ, इसके अलग-अलग उत्पाद भी बना रही हैं। हाल ही में, उन्होंने पराली का इस्तेमाल करके ‘इको फ्रेंडली पैकेजिंग’ भी बनाई है। 

द बेटर इंडिया से बात करते हुए पूजा ने कहा, “पढ़ाई के दौरान मुझे पता चला कि देश से कुपोषण को मिटाने में मशरूम कारगर साबित हो सकता है। साथ ही, अगर इस क्षेत्र में काम किया जाए, तो किसानों को भी आगे बढ़ाया जा सकता है। लेकिन नौकरी के दौरान मुझे इस पर काम करने का ज्यादा समय नहीं मिला। मैंने अलग-अलग शहर जैसे भोपाल, दिल्ली, मुंबई आदि में रहकर काम किया। लेकिन अपनी बेटी के जन्म के बाद लगा कि अपने शहर लौटकर जमीनी स्तर पर कुछ करना चाहिए।” 

जहां एक ओर पूजा को अपनी बेटी को समय देना था, वहीं दूसरी ओर वह अपने बरसों के ज्ञान और रिसर्च के आधार पर अपना कोई काम शुरू करना चाहती थीं। इसलिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी और इंदौर लौटकर अपनी खुद की कंपनी शुरू की। इस काम में उनके पति और परिवार ने पूरा सहयोग किया। खासकर, उनकी बेटी इरा ने।

Dr. Pooja with her daughter and Team
Dr. Pooja with her daughter and Team

पूजा कहती हैं, “इरा की हमेशा से मेरे काम में बहुत दिलचस्पी रहती है। हर बार वह मुझे अपने नए-नए आइडियाज देती है और मेरी मदद करने की कोशिश करती है। इसलिए मैं हमेशा यही कहती हूँ कि बच्चे कभी भी मज़बूरी नहीं होते हैं, बल्कि आपकी सबसे बड़ी ताकत बन सकते हैं।”

पहले मशरूम पर किया काम 

कंपनी की शुरुआत में पूजा ने मशरूम के बीज बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने देखा कि किसानों को मशरूम के बीजों के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। साथ ही, उन्होंने खुद भी मशरूम का उत्पादन शुरू किया। इस तरह से वह दो समस्याओं पर काम करने लगी। पहला, कुपोषण की समस्या को मशरूम के जरिये हल करना और दूसरा, पराली जलाने की समस्या पर। पूजा कहती हैं कि मशरूम की खेती में पराली को उपयोग में लिया जा सकता है। इससे किसानों को पराली जलाने की समस्या नहीं पड़ेगी, बल्कि वे खुद मशरूम का उत्पादन करके अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं। या फिर मशरूम की खेती करने वालों को दे सकते हैं। 

पूजा अलग-अलग किस्म की मशरूम उगाती हैं और इन्हें बाजार तक पहुंचा रही हैं। उन्होंने बताया, “मशरूम को लेकर अभी भी बहुत से मिथक हैं। जैसे लोगों को लगता है यह मांसाहारी है या जहरीली होती है। इसलिए जागरूकता पर भी काम किया और फिर धीरे-धीरे ताजा मशरूम और ड्राई मशरूम लोगों तक पहुंचाने लगे।” 

Pink Mushroom and Masala from mushroom farm
Growing Mushroom using Stubble and making its products

इसके बाद, पूजा ने मशरूम की प्रोसेसिंग पर ध्यान दिया। उन्होंने सबसे पहले मशरूम पाउडर बनाया, जिसे आप किसी भी सब्जी, दाल या सांबर में इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके बाद, उन्होंने मैजिक मसाला की तर्ज पर मशरूम, मोरिंगा और कुछ अन्य जड़ी-बूटी मसाले इस्तेमाल करके ‘सम-मोर’ मसाला बनाया। जिसे खाना पकाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। वह मशरूम का अचार भी बना रही हैं। इन सभी उत्पादों को वह ‘BETi’ ब्रांड के तहत लोगों तक पहुंचा रही हैं। 

बनाई इको फ्रेंडली पैकेजिंग 

पूजा बताती हैं, “मैं काफी समय से इस विषय में सोच रही थी कि मशरूम तो जैविक तरीकों से उगा रहे हैं। लेकिन जब बात इसे पैक करने की आती है, खासकर कि ताजा मशरूम को। इसके लिए थर्माकोल की पैकेजिंग ही ज्यादातर इस्तेमाल हो रही है। मैंने इसके लिए प्रकृति के अनुकूल विकल्प के बारे में सोचना शुरू किया।” उन्होंने एक बार फिर पराली के साथ ही प्रयोग किया। अपनी बायोटेक्नोलॉजी की जानकारी का इस्तेमाल करके, उन्होंने आखिरकार ‘इको फ्रेंडली’ पैकेजिंग बनाने का तरीका ढूंढ ही लिया। 

इस प्रोजेक्ट के लिए उन्हें केंद्र सरकार ने ग्रांट दिया है। उन्होंने लैब में ही बैक्टीरिया कल्चर का उपयोग करके मशरूम उगाने के बाद बचे ‘वेस्ट’ (पराली) को डिकम्पोज किया। इसके बाद इसे प्रोसेस करके, इको फ्रेंडली पैकेजिंग मटीरियल बनाया है। इस मटीरियल से पैकेजिंग बॉक्स के साथ-साथ डिस्पोजेबल बर्तन भी बनाये जा सकते हैं। 

Dr. Pooja Dubey Pandey in Lab experimenting on mushroom

फिलहाल, वह सिर्फ पैकेजिंग बॉक्स बना रही हैं, वह भी हैंडमेड। जिनमें मशरूम को पैक किया जा सकता है। इस काम में पूजा के पति प्रदीप पाण्डेय उनका पूरा साथ दे रहे हैं। 

पूजा की कंपनी अब तक लगभग 300 किसानों से जुड़ चुकी है। इन किसानों को उन्होंने न सिर्फ मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दी है, बल्कि उन्हें इको फ्रेंडली पैकेजिंग बॉक्स भी दे रहे हैं। फ़िलहाल, उनके एक बॉक्स की कीमत 10 रुपए है। लेकिन पूजा का कहना है कि जल्द ही मशीनरी भी सेट अप की जाएगी और फिर जैसे-जैसे उत्पादन बढ़ेगा, यह कीमत और भी कम हो जाएगी। 

भोपाल में मशरूम का उत्पादन कर रहे सुदर्शन बताते हैं, “हम काफी समय से पूजा जी से जुड़े हुए हैं। पहले उनसे हम सिर्फ मशरूम के बीज ले रहे थे। लेकिन पिछले एक साल से यह पैकेजिंग बॉक्स भी ले रहे हैं। इसकी गुणवत्ता बहुत ही अच्छी है। प्लास्टिक के मुकाबले भले ही अभी यह थोड़ा महंगा है लेकिन बेहतरीन प्रोडक्ट है।” 

Eco friendly bowl and mushroom training for farmers
Mushroom Training for Farmers

उन्होंने आगे कहा कि ये पैकेजिंग बॉक्स इस्तेमाल के बाद बेकार नहीं जाते हैं। बल्कि वह इन्हें इकट्ठा करके केंचुआ खाद बनाने में इस्तेमाल कर लेते हैं। 

पूजा की कंपनी बायोटेक्नोलॉजी के छात्रों को भी इंटर्नशिप का मौका दे रही है। इसके बारे में प्रदीप कहते हैं कि इससे छात्रों को सीखने का मौका मिलता है और उन्हें काम में मदद। पूजा ने बताया कि फ़िलहाल, उनका सालाना टर्नओवर लगभग 15 लाख रुपए है। हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि आने वाले समय में वह ज्यादा से ज्यादा किसानों और ग्राहकों से जुड़ेंगी। ताकि किसानों की आय बढ़े और ज्यादा से ज्यादा लोगों को सही पोषण मिले। 

अगर आप भी डॉ. पूजा दुबे से संपर्क करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें। 

संपादन- जी एन झा

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