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हर दिशा से लगेगा अलग, कहीं से गोलाकार तो कहीं से आयताकार है यह इको फ्रेंडली घर

Laterite Stone House

लेटराइट पत्थरों और रीसाइकल्ड लकड़ियों से बना है केरल में कोट्टायम के मनोज मैथ्यू का इको फ्रेंडली घर।

केरल में कोट्टायम के कानाक्करी गांव में रहनेवाले मनोज मैथ्यू ने साल 2020 की शुरुआत में अपना घर बनवाने का फैसला किया था। लेकिन मनोज ईंट-सीमेंट के घर तक सीमित नहीं रहना चाहते थे। उनकी इच्छा पारंपरिक स्टाइल में घर बनवाने की थी, जो दिखने में खूबसूरत और आकर्षक हो। साथ ही, रहने में उतना ही आरामदायक और प्रकृति के करीब। 

मनोज कोट्टायम में अपनी ऑफसेट प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं। उन्होंने द बेटर इंडिया को बताया, “मुझे अपने परिवार के लिए घर बनवाना था, लेकिन मैं नहीं चाहता था कि यह बाकी सामान्य घरों जैसा हो। हम सब क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग जैसी परेशानियों से वाकिफ हैं और यह भी जानते हैं कि कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री भी इसका एक कारण है। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों न इको फ्रेंडली तरीके अपनाये जाएं। काफी रिसर्च के बाद, मुझे आर्किटेक्ट लॉरी बेकर और उनके संगठन के बारे में पता चला।” 

पूरी जानकारी लेने के बाद मनोज ने Costford संगठन को अपने घर का प्रोजेक्ट दिया। उनके घर की डिजाइनिंग और निर्माण बिजू पी जॉन और रेंजू के मार्गदर्शन में हुआ। इसके अलावा, मनोज अपने कॉन्ट्रैक्टर विजय कुमार और लकड़ी के काम के लिए प्रवीन का धन्यवाद करते हैं। आर्किटेक्ट रेंजू कहते हैं, “किसी भी घर-निर्माण में हम तीन बातों पर ध्यान देते हैं- ज्यादा से ज्यादा रॉ मटीरियल लोकल हो, घर-निर्माण में इको फ्रेंडली तरीके अपनाये जाएं और जितना हो सके निर्माण की लागत कम से कम हो। मनोज के घर के निर्माण में भी इन सभी बातों का ध्यान रखा गया। 2570 वर्गफीट के एरिया में बना यह इको फ्रेंडली हाउस लोगों के लिए किसी मॉडल से कम नहीं है।” 

Manoj Mathew's Eco friendly house
Manoj Mathew’s Eco Friendly House

इको फ्रेंडली सामग्री से बना घर 

मनोज बताते हैं कि केरल के पारंपरिक घरों में लकड़ी का काफी ज्यादा इस्तेमाल होता है। खिड़की-दरवाजों से लेकर फर्श के लिए, दीवारों के बीच में और कई बार छत के लिए भी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। वह अपने घर को पारंपरिक स्टाइल में बनवाना चाहते थे। लेकिन साथ ही उनका उद्देश्य प्रकृति के अनुकूल काम करना था। इसलिए उन्होंने ज्यादा से ज्यादा पुरानी लकड़ी, रीसाइकल्ड मेटल और टाइल्स का इस्तेमाल किया है। इसके अलावा उन्होंने घर के निर्माण में कम से कम सीमेंट के इस्तेमाल पर भी जोर दिया। 

बात अगर रॉ मटीरियल की करें, तो उनकी कोशिश यही रही कि सभी चीजें स्थानीय इलाकों से मिल जाएं। उनके घर में लेटराइट पत्थर, ईंट, टेराकोटा टाइल्स, पुरानी लकड़ी, ऑक्साइड फ्लोरिंग, मिट्टी के कटोरे, कुल्हड़ जैसी सामग्री का इस्तेमाल हुआ है। वह कहते हैं कि उनके घर की डिजाइनिंग भी इस तरह से हुई है कि एक तरफ से देखने पर यह लोगों को गोलाकार लगता है, तो दूसरी तरफ से देखने पर सामने आयताकार। साथ ही, यह घर काफी ज्यादा वातानुकूलित है, जिससे उन्हें आर्टिफीशियल चीजों पर ज्यादा निर्भर नहीं होना पड़ता है। 

“इससे पहले मैं जिन भी घरों में रहा, वहां अंदर प्रवेश करते हुए लगता था कि मैं किसी बंद जगह पर आ गया हूं। लेकिन यह घर प्रकृति से कटा हुआ नहीं, बल्कि प्रकृति का हिस्सा लगता है। इसकी वजह यह है कि हमने ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक सामग्री से घर बनवाने पर जोर दिया। घर के अंदर भी सभी जगहें ऐसे बनाई गयी हैं कि परिवार में सब एक-दूसरे से जुड़ाव महसूस करें। जैसे घर में आंगन बीच में है और इसके चारों ओर लिविंग रूम, डाइनिंग, और किचन है। आप अगर आंगन में बैठे हों और कोई रसोई में काम कर रहा हो या कोई खाना खा रहा हो तो भी एक-दूसरे से बात कर सकते हैं,” उन्होंने बताया। 

Used Laterite Stones, Country Bricks and Recycled Wood to build house
Living Room

रैट ट्रैप बॉन्ड तकनीक से बनी दीवारें 

आर्किटेक्ट रेंजू ने बताया कि उन्होंने घर की नींव के लिए पत्थरों का इस्तेमाल किया है। पत्थरों के ऊपर बीम लगाई गयी है और फिर उन्होंने घर का निर्माण शुरू किया। घर में ग्राउंड फ्लोर, फर्स्ट फ्लोर और फिर एक छोटी-सी परछत्ती (Attic) है। उन्होंने बताया कि परछत्ती के निर्माण में ज्यादा से जयादा लकड़ी का इस्तेमाल हुआ है। वहीं अगर ग्राउंड फ्लोर की बात करें तो ग्राउंड फ्लोर पर दो बैडरूम हैं, जिनमें अटैच बाथरूम हैं। इसके अलावा, लिविंग रूम, रसोई, डाइनिंग रूम और बीच में आंगन है। फर्स्ट फ्लोर पर दो बैडरूम हैं, जिनमें अटैच बाथरूम हैं और बाकी टेरेस है। 

घर की दीवारों के निर्माण में सामान्य ईंट, लेटराइट पत्थर और लकड़ी के पैनल का इस्तेमाल किया गया है। “हमने दीवारों को रैट ट्रैप बॉन्ड तकनीक से बनाया है क्योंकि इस तकनीक में 25% तक कम ईंटें इस्तेमाल होती हैं। साथ ही, यह घर के अंदर के तापमान को संतुलित करने में सहायक है। सामान्य घरों की तुलना में इस तकनीक से बने घरों के अंदर ज्यादा ठंडक रहती है। क्योंकि दीवार में खाली जगह होने के कारण, गर्मियों में बाहर से गर्मी अंदर ट्रांसफर नहीं होती है और इसी तरह सर्दियों में बाहर से ठंड भी अंदर ट्रांसफर नहीं हो पाती है,” उन्होंने बताया। 

घर को पारंपरिक लुक देने के लिए उन्होंने कई जगहों पर कर्व का इस्तेमाल किया है। जैसी लिविंग रूम की दीवार कर्व में है। साथ ही, इस दीवार और यहां की छत को इस तरह से बनाया है कि ताजा रौशनी और हवा का प्रवाह रहे। घर में ऑक्साइड और लकड़ी की फ्लोरिंग के साथ-साथ एक-दो जगह ग्रेनाइट और विट्रीफाइड टाइल्स का भी उपयोग किया है। छत बनाने के लिए फिलर स्लैब तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। “हमने फिलर के लिए मिट्टी की बनी अलग-अलग चीजों जैसे टाइल्स, कटोरों तो कहीं कुल्हड़ का प्रयोग किया है। बाकी ऊपर की तरफ मैंगलोर टाइल्स का प्रयोग किया है। छत के निर्माण की यह तकनीक भी घर के अंदर के तापमान को संतुलित रखने में काफी मददगार है,” उन्होंने आगे कहा। 

Wooden Flooring
Filler Slab Roof to Wooden Flooring

70% पुरानी लकड़ियों का किया है इस्तेमाल 

मनोज ने बताया कि उनके घर में लकड़ी का काफी ज्यादा इस्तेमाल हुआ है। इसके लिए उन्होंने एक टूटे हुए घर से निकलने वाली पुरानी लकड़ी, खिड़की-दरवाजों को खरीदकर अपने घर के निर्माण में लगाया। उनके घर के निर्माण में इस्तेमाल हुई लगभग 70% लकड़ियां पुरानी हैं। लेकिन आज उनके घर को देखकर कोई नहीं कह सकता है कि उन्होंने रीसाइकल्ड मटीरियल इस्तेमाल किया है। 

आर्किटेक्ट रेंजू कहते हैं, “घर की डिजाइनिंग, रॉ मटीरियल, कंस्ट्रक्शन और इंटीरियर की कुल लागत लगभग 49 लाख रुपए पड़ी। लेकिन अगर सामान्य और सभी नए रॉ मटीरियल के साथ अगर ऐसा घर बनाया जाए तो एक अंदाजे से मैं कह सकता हूं कि कम से कम 70-80 लाख रुपए खर्च होंगे। क्योंकि आज के जमाने में पारंपरिक लुक वाले घर बनाने के लिए बहुत ही स्किल्ड लेबर की जरूरत होती है। साथ ही काफी मेहनत और समय भी लगता है। लेकिन मनोज जी के घर में हमने रॉ मटीरियल पर काफी बचत की, जिस कारण हम अच्छे कारीगरों से करवा सके।” 

घर के चारों तरफ कटहल, रबर, अंजिली, और नारियल के पेड़ हैं। जिस कारण उनके घर में हमेशा ताजी हवा बहती रहती है। उन्होंने अपने घर के कैंपस में भी कुछ पेड़-पौधे लगाए हुए हैं।

Using Recycled Wood to build eco friendly house
Used Recycled Wood

मनोज कहते हैं, “पुराने घर में बिना एसी के काम नहीं चलता था लेकिन इस घर में मैंने अब तक एसी नहीं लगाया है। साथ ही, पुराने घर में जब हम रहते थे तो रात के समय में मैं कई बार पानी पीने के लिए उठता था। क्योंकि गर्मी के कारण गला सूखने लगता था। लेकिन इस घर में मुझे एक बार भी रात को उठने की जरूरत नहीं पड़ती है। मैं सुकून से सोता हूं। और तो और रात के समय हमारा पंखा भी एकदम कम स्पीड पर होता है क्योंकि घर एकदम ठंडा रहता है।” 

उनके घर का एक आकर्षण बायोगैस प्लांट भी है, जो उनके सेप्टिक टैंक से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि उन्हें हर रोज सुबह और शाम में दो-दो घंटे की गैस इस प्लांट से मिल जाती है, जिससे एलपीजी सिलिंडर पर उनकी निर्भरता काफी कम हो गयी है। मनोज और उनका परिवार सभी को इको फ्रेंडली तरीकों से घर बनाने की सलाह देता है। खासकर कि ऐसे लोगों को, जिन्हें बजट की कोई समस्या नहीं है। वह कहते हैं कि अगर आप घर बनवाने में लाखों रुपए खर्च कर ही रहे हैं तो कम से कम ऐसी जगह करें जो न सिर्फ आपके लिए बल्कि पर्यावरण के लिए भी हितकारी हो। 

संपादन- जी एन झा

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