मिलिए मध्य प्रदेश के अमृत पाटीदार से, 36 सालों में सार्वजनिक जगहों पर लगा दिए 6 लाख पौधे

अपने घर के आस-पास की जगहों पर तो सभी पौधे लगाते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के धार जिले के अमृत पाटीदार पिछले 36 सालों से सार्वजनिक जगहों पर पेड़ लगाने का काम कर रहे हैं।

Amrit Patidar Save Earth

जब कभी हम अपने आस-पास हरियाली देखते हैं, तो हम ताज़गी और ख़ुशी का अनुभव करते हैं। शहर से दूर जंगलों, पहाड़ों या गावों में हम ऐसी ही ताज़गी के लिए जाते हैं। लेकिन जहां हम रहते हैं, उस जगह का क्या? कितना अच्छा हो अगर हर सड़क के किनारे लम्बे और घने पेड़ लगे हों? हमारे शहरों और गावों के स्कूल, कॉलेज, हमारे घर या सभी सार्वजानिक जगहों पर भी हरियाली हो। 

“ऐसे सुंदर माहौल की कल्पना करना तो सबके लिए बहुत आसान है, लेकिन पौधे लगाना और उसकी देख-रेख करने का काम, ज्यादातर लोगों को मुश्किल लगता है। यकीन मानिए, यह उतना भी मुश्किल नहीं, जितना हम समझते हैं,” यह मानना है, धार (मध्यप्रदेश) जिले के गजनोद गांव के रहनेवाले डॉ. अमृत पाटीदार का। वह साल 1985 से अपने जिले में अलग-अलग सार्वजनिक जगहों पर पौधे लगाने का काम कर रहे हैं। द बेटर इंडिया को उन्होंने बताया कि अब तक उन्होंने, अपने खर्च से छह लाख से ज्यादा पौधे लगा दिए हैं।   

Save Earth mission

कैसे हुई शुरुआत?

60 वर्षीय अमृत, एक किसान के बेटे हैं। वह बचपन में अपने घर से पांच किलोमीटर दूर स्कूल में पढ़ने जाया करते थे। अमृत कहते हैं, "स्कूल जाने के दौरान जब भी भूख लगती, मैं और मेरे दोस्त किसी पेड़ के नीचे या बागीचे में बैठकर अपना लंच किया करते थे। तब मैं हमेशा सोचता, ये पेड़ न होते तो हमे कड़ी धूप में बैठना पड़ता।" यही कारण है कि बचपन से पेड़-पौधों के प्रति उनका विशेष लगाव बन गया। वह हमेशा सोचते कि कैसे ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए जाएं। 

इसी सोच के साथ उन्होंने, 1984 में पौधों की नर्सरी का काम शुरू किया। लोग अपने घरों और खेतों के लिए तो पौधे ले जाते, लेकिन सार्वजनिक जगहों पर कोई पेड़ नहीं लगाता था। अमृत ने इसी चिंता के साथ, 1985 से सार्वजानिक जगहों पर पौधे लगाने की शुरुआत की और सबसे पहला पेड़ अपने स्कूल में लगाया। बस तब से उन्होंने हॉस्पिटल, सरकारी ऑफिस, जेल और सड़क के किनारे जैसी कई जगहों पर पौधे लगाने का काम शुरू कर दिया।  

Save Earth

कई समस्याओं का किया सामना  

वह कहते हैं, "शुरुआती दिनों में लोग मेरा मजाक उड़ाते। कई लोग मेरे लगाए पौधों को उखाड़कर फेंक भी दिया करते थे। जिसके कारण, बहुत बार मेरा लोगों से झगड़ा भी हो जाता।" वहीं पौधों में पानी देने के लिए उनके पास पानी की भी कमी थी, जिसके लिए उन्होंने अपने गांव के गटर के पानी को फ़िल्टर करके उपयोग करना शुरू किया। उन्होंने गटर के पानी को फ़िल्टर करने के लिए तीन अलग-अलग गढ्ढे बनाए, जिनमें पानी फ़िल्टर होता और बाद में वह उसका इस्तेमाल पौधों में पानी देने के लिए करते। 

अमृत कहते हैं, "जैसे-जैसे मेरे लगाए पौधों की संख्या बढ़ने लगी, मेरे काम के बारे में लोकल समाचार-पत्रों में लेख आने शुरू हो गए। साल 2004 के बाद, गांव में लोगों ने मेरा साथ देना शुरू कर दिया।" जिसके बाद अमृत बन गए अपने गांव के 'पौधे वाले भैया'। अमृत किसी भी त्यौहार, समारोह आदि में फूल या कोई और तोहफा देने के बजाय पौधा देना पसंद करते हैं। 

Save Earth Mission by amrit patidar

वह अपने गांव में जिस भी शादी में जाते हैं, एक पौधा जरूर ले जाते हैं और नए जोड़े को पौधा तोहफे में देते हैं। वह अपने घर आए हर एक मेहमान या आस-पास के गांव में आए, हर नए सरकारी अफसर का स्वागत पौधा भेंट करके करते हैं। अब तक वह 32, 000 से ज्यादा पौधे तोहफे में दे चुके हैं। इसके अलावा, अमृत अपने घरवालों के जन्मदिन में केक की जगह फल कटवा कर जन्मदिन मनाते हैं। 

बदला आस-पास के कई गावों का रूप  

अमृत की इस मुहीम से उनके ही नहीं, बल्कि आस-पास के गावों में भी कई बदलाव आए हैं। उनके गांव के एक युवा किसान मनोज पाटीदार बताते हैं, "हमारे गांव में पहले लोगों में पौधों और पौधरोपण के प्रति इतनी जागरूकता नहीं थी। लेकिन अमृत ने जिस तरह से गांव भर में अलग-अलग जगह पौधे लगाए, इससे गांव का नज़ारा ही बदल गया। हमारे गांव की हर सड़क आज हरी-भरी बन गई। साथ ही, मेरे जैसे गांव के कई और लोग पौधे लगाने और उसकी देखभाल करने के प्रति ज्यादा जिम्मेदार बन गए हैं।"  

मनोज कहते हैं कि अमृत के लगाए पौधे, इंसानों के साथ जानवरों को भी ठंडक देने का काम कर रहे हैं। उनके गांव के पास एक पशु हाट है, जहां लोग पशुओं को खरीदने और बेचने जाते हैं। इस पशु हाट में पहले बिल्कुल पेड़ नहीं थे, जिसके कारण सभी पशुओं को धूप में ही रखना पड़ता था। लेकिन अमृत ने अब वहां इतने पेड़ लगा दिए हैं कि पशुओं के लिए एक ठंडक भरा शेड बन गया है। इसके अलावा गांव के श्मशान, मुक्तिधाम को भी उन्होंने हरा-भरा कर दिया है। 

Save Earth

अमृत नीम, पीपल  और बरगद, तीन पेड़ साथ में लगाते हैं, यह इसे 'त्रिवेणी' पेड़ कहते हैं। उनका कहना हैं कि लोग 'त्रिवेणी पेड़ों' को काटने से परहेज करते हैं।  साथ ही, इन पेड़ों को ज्यादा देख-रेख की जरूरत भी नहीं पड़ती और ये पेड़ ऑक्सीज़न का अच्छा स्रोत भी हैं। इसके अलावा, वह फलदार पौधे भी लगाते हैं।  

अमृत को, 2014 में राज्य सरकार की ओर से फिलीपींस और ताइवान में जैविक खेती और पर्यावरण संरक्षण की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया था। इसके साथ ही, उन्हें 2017 में दिल्ली में आयोजित, ‘विश्व स्वच्छ पर्यावरण शिखर सम्मेलन’ में 'राष्ट्रिय पर्यावरण जाग्रति पुरस्कार' से सम्मनित किया गया था। वहीं 2017 में ही मुंबई में वर्ल्ड एग्रीकल्चर एक्सीलेंस अवॉर्ड समरोह में भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा, अमृत को जून 2017 में उनके काम के लिए, कोलकाता यूनिवर्सिटी की ओर से डॉक्टरेट की मानक उपाधि से भी नवाज़ा जा चुका है।

अमृत अंत में कहते हैं कि आनेवाले समय में किसी भी प्राकृतिक समस्या से निपटने के लिए पौधे लगाना बहुत जरूरी है।  

आशा है इनकी कहानी पढ़कर आपको जरूर प्रेरणा मिली होगी।  

संपादन- अर्चना दुबे

यह भी पढ़ें: राजस्थान: घर में जगह नहीं तो क्या? सार्वजानिक स्थानों पर लगा दिए 15,000 पेड़-पौधे

यदि आपको इस कहानी से प्रेरणा मिली है, या आप अपने किसी अनुभव को हमारे साथ साझा करना चाहते हो, तो हमें hindi@thebetterindia.com पर लिखें, या Facebook और Twitter पर संपर्क करें।

Related Articles
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe