मणिपुर के मोइरंगथेम लोइया के 300 एकड़ के जंगल में पौधों की 100 से ज़्यादा किस्में हैं, बांस की लगभग 25 किस्में हैं, यहां हिरण, साही और सांप की प्रजातियां भी हैं। करीब 20 साल पहले यह ज़मीन बंजर थी।
78 वर्षीय कमल चक्रवर्ती, पिछले 26 सालों से पुरुलिया( पश्चिम बंगाल) में ‘भालो पहाड़' नाम की एक सोसाइटी चला रहे हैं। जिसके तहत उन्होंने एक भव्य जंगल बनाया है और यहाँ रहते आदिवासियों तक शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधा पहुंचा रहे हैं।
बचपन से पेड़-पौधे लगा रहे अंकलेश्वर के दीपक प्रजापति, जहां भी रहते हैं, वहां पौधे लगाते रहते हैं। उन्होंने देशभर से पोर्टुलाका की 100 किस्में जमा की हैं, जिन्हें वह सिर्फ अपने घर में ही नहीं, बल्कि गांव के मंदिरों में भी लगाते रहते हैं।
जम्मू के मरीन इंजीनियर नवजीव डिगरा हमेशा से जहाज पर रहते हुए प्रकृति के पास तो थे, लेकिन प्रकृति में फैले प्रदूषण से भी काफी परेशान थे। तभी उन्होंने अपने शहर के पार्क को हरा-भरा बनाने की ठानी और खुद की मेहनत से इसे एक बायोडायवर्सिटी गार्डन बना दिया।
अपने घर के आस-पास की जगहों पर तो सभी पौधे लगाते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के धार जिले के अमृत पाटीदार पिछले 36 सालों से सार्वजनिक जगहों पर पेड़ लगाने का काम कर रहे हैं।
जयपुर की अनुपमा तिवाड़ी, पिछले 12 साल से पौधे लगा रही हैं। अब तक उन्होंने 15000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं। उनके जीवन का लक्ष्य एक लाख पेड़-पौधे लगाना है।