देसी सब्जियों और फलों का स्वाद, लोगों की थाली में वापस लाने के लिए गुना (मध्यप्रदेश) के रुठियाई गांव में रहनेवाले केदार सैनी ने सैकड़ों बीज इकट्ठा किए हैं, जिन्हे वह मात्र डाक खर्च के साथ देशभर के किसानों तक पंहुचा रहे हैं। अब तक वह देश के 17 राज्यों के हजारों लोगों तक ये बीज पंहुचा चुके हैं।
जम्मू के मरीन इंजीनियर नवजीव डिगरा हमेशा से जहाज पर रहते हुए प्रकृति के पास तो थे, लेकिन प्रकृति में फैले प्रदूषण से भी काफी परेशान थे। तभी उन्होंने अपने शहर के पार्क को हरा-भरा बनाने की ठानी और खुद की मेहनत से इसे एक बायोडायवर्सिटी गार्डन बना दिया।
राजकोट के पास बसे एक छोटे से गांव मजेठी में रहने वाले जगमलभाई ने अपने खुद के खर्च से एक सुंदर सा Children's park तैयार किया है। सालों पहले उन्होंने मात्र दो पौधे लगाने से शुरुआत की थी, वहीं आज यहां 5000 पेड़-पौधे लगे हैं जिसमें से ज्यादातर पेड़ फलदार हैं।
अपने घर के आस-पास की जगहों पर तो सभी पौधे लगाते हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के धार जिले के अमृत पाटीदार पिछले 36 सालों से सार्वजनिक जगहों पर पेड़ लगाने का काम कर रहे हैं।
कोलकाता के CA संतोष मोहता ने, अपनी छत पर बागवानी करने के साथ-साथ, शहरों में हरियाली फ़ैलाने के मकसद से ‘Concern For Earth’ नाम की संस्था भी बनाई है, जहाँ वह free gardening tips देते हैं।
पालनपुर, गुजरात के 26 वर्षीय निरल पटेल ने लॉकडाउन के दौरान एक अनोखा बीज बैंक बनाया है। वह महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान तक पार्सल से विलुप्त होती वनस्पतियों और पेड़ों के बीज पहुंचाते हैं।
जैसे इंसानों और जानवरों के लिए डॉक्टर और अस्पताल होते हैं ठीक उसी तरह अमृतसर, पंजाब में IRS ऑफिसर रोहित मेहरा ने पेड़-पौधों के लिए ट्री एम्बुलेंस और अस्पताल की शुरुआत की है।
उत्तराखंड के नैनीताल जिला के नाई गाँव के रहने वाले चंदन सिंह नयाल की उम्र कम है, लेकिन उनके इरादे बेहद ऊंचे। चंदन ने जब देखा कि चीड़ और बुरांश के जंगलों में आग लग रही है और जमीन सूख रही है तो उन्होंने अपनी लगन से चामा तोक इलाके में बांज का जंगल तैयार कर दिया।
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के साथ ही राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात आदि राज्यों में सुनील ने पौधारोपण किया है। आज उनके कई पौधे पेड़ बनकर लोगों को राहत पहुंचा रहे हैं।