केरल के कुन्नुर के रहनेवाले अजी आनंद ने अपने 112 गज की जमीन पर खुद से एक ईको फ्रेंडली घर तैयार किया है। इसके लिए न तो उन्होंने किसी आर्किटेक्ट की मदद ली और न ही किसी मिस्त्री या मजदूर की।
मैंगलोर में बसे इस घर को बनाने में, पुराने टूटे हुए घरों की लकड़ियां इस्तेमाल की गयी हैं। पर इन्हें बनाने वालों का दावा है कि यह 100 साल तक टिकने वाला घर है। जानिए क्या है, उनके इस दावे के पीछे की वजह!
कच्छ का भुज शहर, अपनी रेतीली मिट्टी और कम वर्षा के लिए जाना जाता है, लेकिन भुज के गोर परिवार ने एक ऐसा हरा-भरा आशियाना बनाया है, जो पूरी तरह से इको फ्रेंडली है और आत्मनिर्भर है।
दिल्ली के रहनेवाले अनिल चेरुकुपल्ली और उनकी पत्नी अदिति ने शहरी जीवन छोड़, पहाड़ों में एक ऐसा फार्मस्टे बनाया, जिसकी उम्र 100 सालों से भी अधिक है। इसे बनाने में न पेड़ों को काटा गया है और न ही पहाड़ों को।
हरियाणा के डॉ. शिव दर्शन मलिक ने गाय के गोबर से एक वैदिक घर बनाया है। गाय के गोबर से बनी ईंटों और वैदिक प्लास्टर (vedic plaster) के इस्तेमाल से बना यह घर, गर्मियों में ठंडा तो रहता ही है, साथ ही इस घर के अंदर की हवा भी शुद्ध रहती है।