2001 में, गुजरात के भुज में आए भूकंप के दौरान सीमेंट से बने घर तो टूट गए थे, लेकिन ‘भूंगा’ शैली से मिट्टी से बने घरों को ज़रा सा भी नुकसान नहीं पहुंचा था।
तमिलनाडु के कोयम्बटूर के रहनेवाले श्रीनाथ गौतम और विनोथ कुमार ने साल 2018 में सस्टेनेबल आर्किटेक्चर को बढ़ावा देने के लिए ‘भूता आर्किटेक्ट्स’ की शुरुआत की। पढ़ें, कहां से मिली उन्हें इसकी प्रेरणा?
अमरेली के रहनेवाले कैलाशबेन और कनुभाई करकर के घर में तमाम सुविधाएं होते हुए भी, बिजली-पानी का कोई खर्च नहीं आता है। इतना ही नहीं, सरकार उन्हें सालाना 10 हजार रुपये देती है। तभी तो इसे मिला है गुजरात के आदर्श घर का अवॉर्ड।
पुणे के आर्किटेक्ट दम्पति, सागर शिरुडे और युगा आखरे पर्यावरण ने प्राकृतिक और स्थानीय वस्तुओं से चार महीने में तैयार किया अपने लिए दो मंजिला मिट्टी का घर।
बेंगलुरु में इको फ्रेंडली घर में रहने वाले चोक्कलिंगम और उनका परिवार पिछले लगभग 14 सालों से अपनी जीवनशैली को प्रकृति के अनुकूल ढालने के लिए प्रयासरत हैं।
IIT हैदराबाद के पीएचडी स्कॉलर प्रियब्रत राउतराय और KIITS स्कूल ऑफ़ आर्किटेक्चर, भुवनेश्वर के शिक्षक, अविक रॉय ने मिलकर पराली से सस्टेनेबल 'बायो ब्रिक' बनाई है, जिसका इस्तेमाल घर बनाने में किया जा सकता है।