मणिपुर के मोइरंगथेम लोइया के 300 एकड़ के जंगल में पौधों की 100 से ज़्यादा किस्में हैं, बांस की लगभग 25 किस्में हैं, यहां हिरण, साही और सांप की प्रजातियां भी हैं। करीब 20 साल पहले यह ज़मीन बंजर थी।
कोलकाता के CA संतोष मोहता ने, अपनी छत पर बागवानी करने के साथ-साथ, शहरों में हरियाली फ़ैलाने के मकसद से ‘Concern For Earth’ नाम की संस्था भी बनाई है, जहाँ वह free gardening tips देते हैं।
जयपुर की अनुपमा तिवाड़ी, पिछले 12 साल से पौधे लगा रही हैं। अब तक उन्होंने 15000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए हैं। उनके जीवन का लक्ष्य एक लाख पेड़-पौधे लगाना है।
साल 1997 तक, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिला के झारबगड़ा गाँव एक समय 50 किलोमीटर के दायरे में हर ओर से बंजर जमीनों से घिरा हआ था। लेकिन, आज यहाँ के करीब 387 एकड़ जमीन पर घने जंगल लगे हुए हैं और यह कई प्रकार के पशु-पक्षियों का घर है।
उत्तराखंड के नैनीताल जिला के नाई गाँव के रहने वाले चंदन सिंह नयाल की उम्र कम है, लेकिन उनके इरादे बेहद ऊंचे। चंदन ने जब देखा कि चीड़ और बुरांश के जंगलों में आग लग रही है और जमीन सूख रही है तो उन्होंने अपनी लगन से चामा तोक इलाके में बांज का जंगल तैयार कर दिया।
चंडीगढ़ पुलिस में कोंस्टेबल के पद पर कार्यरत देवेंदर सूरा को 'हरियाणा का ट्री-मैन' कहा जाता है। पिछले 7 सालों में उन्होंने अपने वेतन खर्च कर लगभग 182 गांवों और कुछ अन्य शहरों में 1, 54, 000 पेड़ लगवाए हैं और लगभग 2, 72, 000 पेड़ स्कूल, शादी समारोह, रेलवे स्टेशन, मंदिर आदि में जा-जाकर बांटे हैं।