केरल के कन्नूर जिले में पयंगडी के पास थावम के रहनेवाले राजन, पेशे से एक मछुआरे हैं। लेकिन पिछले 40 सालों से मैंग्रोव को उगाने, संरक्षित करने और लोगों को जागरूक करके, उन्हें बचाने और पुनर्स्थापित करने का काम कर रहे हैं। इस वजह से उनका नाम मैंग्रोव राजन पड़ गया है।
गुवाहाटी, असम में स्थित पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी 'डेफोडिल नर्सरी' चलाने वाले ध्रुबज्योति शर्मा ने आज अपने पिता के 38 साल पुराने बिज़नेस को दिया एक नया रूप, जानिए इसकी शुरुआत की कहानी।
महाराष्ट्र के सोलापुर में रहने वाले गौरव जक्कल और उनका परिवार पिछले 50 सालों से गार्डनिंग कर रहा है। यह टेरेस गार्डन उनकी दादी, लीला ने शुरू किया था, जो आज एक मशहूर नर्सरी का रूप ले चुका है।
हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले में दादलू गाँव के रहने वाले हरबीर सिंह एक प्रगतिशील किसान हैं और अपने खेतों में एक हाई-टेक नर्सरी चला रहे हैं। अपनी नर्सरी में वह सब्जियों की पौध तैयार करते हैं, जो आज इटली तक भी पहुँच रहे हैं।
जयपुर, राजस्थान के रहने वाले 25 वर्षीय अनिल थडानी ने कृषि विषय में पढ़ाई की है और उन्होंने अपने घर की छत से नर्सरी का काम शुरू किया, जिसके तहत आज वह 20 से ज्यादा लोगों के घरों में हाइड्रोपोनिक, वर्टिकल और टेरेस गार्डन लगा चुके हैं और लगभग ढाई हजार किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग दे रहे हैं।
केरल के एर्नाकुलम में रहने वाली एक गृहिणी सुमी श्यामराज अपने घर की छत पर ओरनामेंटल पौधे उगाती हैं और इसी से वह महीने में 30 हज़ार रुपये से ज्यादा कमा रहीं हैं।
आकाशदीप ने जब नर्सरी बिज़नेस शुरू किया तो उन्हें अपने पहले प्रोजेक्ट में घाटा हुआ लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी गलतियों से सीखकर सफलता हासिल की!