1984 में जब गुवाहाटी (असम) से 30 किमी दूर धूपगुरी में एक स्कूल प्रिंसिपल ने अपने शौक़ के लिए कुछ पौधे लगाना और इसे लोगों को देना शुरू किया था, तब शायद उन्हें अंदाजा भी नहीं था कि एक दिन यह काम उनके परिवार की पहचान बन जाएगा। यह कहानी है, नार्थ ईस्ट की सबसे हाई टेक और प्रसिद्ध नर्सरी डैफोडिल नर्सरी की, जिसकी शुरुआत एक बिज़नेस के तौर पर तो बिल्कुल भी नहीं की गई थी। दरअसल, 38 साल पहले गोपीनाथ शर्मा ने गार्डनिंग के अपने शौक़ के कारण, अपनी नौकरी के साथ इस काम की शुरुआत की थी, जिसे आज उनके बेटे आगे बढ़ा रहे हैं।
साल 1992 में गोपीनाथ के बेटे ध्रुबज्योति शर्मा ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, पिता के साथ कुछ पैसे कमाने के लिए इस काम से जुड़ने का फैसला किया था, क्योंकि अपने पिता की तरह ही उन्हें भी गार्डनिंग से बेहद लगाव था। लेकिन उस दौरान वह कॉलेज में नौकरी के लिए तैयारी भी कर रहे थे।
द बेटर इंडिया से बात करते हुए ध्रुबज्योति बताते हैं, “मेरे पिता ने अपने स्कूल में भी एक सुन्दर गार्डन और तालाब बनाया था। वहां वह तरह-तरह के फलों और फूलों के पौधे लगाते रहते थे। मैंने उन्हें देखकर ही गार्डनिंग की शुरुआत की थी। यूं तो मैंने जीव विज्ञान की पढ़ाई की है, लेकिन मुझे पौधों में भी काफी रुचि है और मैं पौधों के बारे में पढ़ता रहता हूँ।”
ध्रुबज्योति हाल में गुवाहाटी के डिमोरिया कॉलेज में जूलॉजी यानी जीव विज्ञान विषय के एचओडी के पद पर काम कर रहे हैं और इसके साथ वह सालों से डैफोडिल नर्सरी भी चला रहे हैं।
पिता के शौक को बेटे ने दिया नया रूप
1992 में जब ध्रुबज्योति ने डैफोडिल नर्सरी के काम से जुड़ने का फैसला किया था, तब यहां एक दिन में 100 रुपये की कमाई भी नहीं होती थी। लेकिन समय के साथ यह काम इतना बढ़ने लगा कि 1996 में नर्सरी बिज़नेस से हर दिन 1000 रुपये की कमाई होने लगी।
इसी दौरान उनके पिता गोपीनाथ शर्मा का निधन हो गया, लेकिन पिता के शौक़ और अपनी रुचि को हमेशा ज़िन्दा रखने के लिए ध्रुबज्योति और उनके छोटे भाई ने इस काम को जारी रखा। 1999 में ध्रुबज्योति ने रेखा गोस्वामी से शादी की, जिसके बाद उन्हें डैफोडिल नर्सरी चलाने में काफी मदद मिलने लगी। क्योंकि रेखा को भी गार्डनिंग का शौक था।
शादी के समय रेखा भी कॉलेज में पढ़ाया करती थीं। लेकिन 2003 में उन्होंने घर की जिम्मेदारियों और डैफोडिल नर्सरी का काम संभालने के लिए कॉलेज की नौकरी छोड़ दी। ध्रुबज्योति कहते हैं कि उन्हें भी कई बार नर्सरी बिज़नेस से फुल टाइम के लिए जुड़ने का मन करता है, लेकिन उन्हें जीव विज्ञान से भी काफी लगाव है। इसलिए वह दोनों काम एक साथ कर रहे हैं और आज 17 बीघे में फैली उनकी नर्सरी, नार्थ ईस्ट की सबसे बड़ी नर्सरी बन चुकी है।
जब डैफोडिल नर्सरी बनी हॉर्टिकल्चर कॉलेज
इतने सालों में पेड़-पौधों की असीम जानकारियां जमा करके ध्रुबज्योति और रेखा ने और लोगों की मदद करने का फैसला किया। दरअसल, पहले ही कई लोग दूर-दूर से डैफोडिल नर्सरी में पौधों की जानकारियां लेने आते थे। इसी काम को आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने साल 2017 में डेफोडिल कॉलेज ऑफ़ हॉर्टिकल्चर की शुरुआत की।
ध्रुबज्योति बताते हैं, “हमने असम साइंस एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी की मान्यता के साथ इस कॉलेज की शुरुआत की थी। इतना ही नहीं डैफोडिल नर्सरी भारत सरकार के हॉर्टिकल्चर विभाग के भी कई प्रोजेक्ट्स से जुड़ी हुई है।”
उनके घर पर हॉर्टिकल्चर से जुड़ी पांच से छह हजार किताबे हैं। इसके साथ ही उन्होंने देश-दुनिया की कई बड़ी नर्सरियों में घूमकर उनसे भी काफी प्रेरणा ली है। ध्रुबज्योति के बेटे आज डेफोडिल कॉलेज से हॉर्टिकल्चर की पढ़ाई कर रहे हैं। वहीं, अगले साल से यहां एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी भी खुलने वाली है।
लाखों पौधे जाते हैं विदेश भी
ध्रुबज्योति ने बताया कि उनकी डैफोडिल नर्सरी में सालों पुराने 700 से ज्यादा मदर प्लांट आज भी मौजूद हैं और ये सारे प्लांट हॉर्टिकल्चर विभाग से सर्टिफाइड भी हैं। उनके पास फूल, फल, सब्जियां, मेडिशनल और ढेरों सजावटी पौधों की 4000 से ज्यादा किस्में मौजूद हैं।
इतनी बड़ी नर्सरी में लगभग 300 लोग नियमित रूप से काम करते हैं, जिसमें डिलीवरी देने वाले और ड्राइवर सहित लैंडस्केपिंग से जुड़े काम करने वाले लोग भी शामिल हैं। ध्रुबज्योति ने बताया कि वह पिछले चार सालों से लैंडस्केपिंग में काफी अच्छा काम कर रहे हैं। इसके अलावा, यहां से हर साल लाखों पौधे नेपाल, भूटान, फिलीपींस और बांग्लादेश भी जाते हैं।
इस नर्सरी में सीडलेस लीची, आम, सेव, कीवी, केला, नारियल आदि की एक से बढ़कर एक किस्में मौजूद हैं। वहीं, यहां नींबू की भी कई किस्मों के पौधे बिकते हैं, जो डैफोडिल नर्सरी की अलग पहचान भी है। इतना ही नहीं, अब यह नर्सरी गुवाहाटी का एक टूरिस्ट आकर्षण भी बन गई है।
ध्रुबज्योति कहते हैं, “ठण्ड के समय में तो हमारे यहां हर दिन 200 से 300 लोग घूमने आते हैं। लोग हमारे बोनसाई कलेक्शन को देखकर काफी खुश होते हैं।” अब तक वह करीबन 600 लोगों की खुद की नर्सरी खोलने में मदद भी कर चुके हैं।
तो अगर आप भी पौधों के शौक़ीन हैं, तो अगली बार अपने असम टूर पर डैफोडिल नर्सरी (ओल्ड) घूमना न भूलें। आप उनसे उनके फेसबुक पेज के ज़रिए भी जुड़ सकते हैं।
संपादनः अर्चना दुबे
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