हिमाचल के विक्रम रावत ने कलासन में 42 बीघा ज़मीन पर बनाया है एक मॉडल फार्म। अभी तक 11 हज़ार किसानों और बागवानों को एडवांस्ड गार्डनिंग की ट्रेनिंग देने के साथ-साथ, वह 5 लाख सेब के पौधे भी बांट चुके हैं। बैंक की नौकरी से बागवानी तक का उनका यह सफ़र काफ़ी दिलचस्प रहा है।
मिलिए, शालीमार (जम्मू-कश्मीर) के कृषि इंजीनियर और वैज्ञानिक, डॉ. मोहम्मद मुज़मिल से, जिन्हें खेती में इतनी रुचि है कि उन्होंने किसानों की मदद के लिए एक नहीं, आठ से ज़्यादा आविष्कार किए हैं।
एमबीए और एमकॉम की पढाई कर बड़ी कोचिंग में कार्यरत, 25 साल के निमिष गौतम ने गणेश चतुर्थी पर अनोखे इको फ्रेंडली गणेश की 500 मूर्तियां बनाकर लोगों को सवा रुपये में बांटी हैं, जिससे आस्था और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रहें।
राजकोट के 30 वर्षीय रसिक नकुम ने साल 2013 में टीचर की नौकरी के साथ-साथ हाइड्रोपोनिक तरीके से सब्जियां उगाना शुरू किया था। वहीं, पिछले चार सालों से वह नौकरी छोड़कर एक कृषि एक्सपर्ट के तौर पर काम कर रहे हैं। पढ़ें, कैसे हुआ यह सब मुमकिन।
उज्जैन से करीब 50 किमी दूर बड़नगर में बना एक नेचुरल फार्म स्टे- जीवंतिका को दो आईआईटी टॉपर्स साक्षी भाटिया और अर्पित माहेश्वरी ने अपने जीवन के अनुभवों से बनाया है।
मिलिए जबलपुर में फलों की खेती से जुड़े 47 वर्षीय किसान संकल्प सिंह परिहार से, जिन्होंने कभी परिवार के खिलाफ जाकर खेती को अपनाया था और आज अपनी खेती को ही फायदे का बिज़नेस बना लिया है। उनके बागानों में देशी-विदशी कई दुर्लभ किस्मों के आम कड़ी सुरक्षा में उगते हैं।
मिलिए भोपाल (मध्य प्रदेश) के 26 वर्षीय हर्षित गोधा से, जिन्होंने यूके से BBA की पढ़ाई करने के बाद, भारत आकर एवोकाडो उगाना शुरू किया। जानिए क्यों और कैसे?
इलेक्ट्रॉनिक कार और स्कूटर के बाद जामनगर के एक किसान महेश भुत ने ई-ट्रैक्टर ‘व्योम’ बनाया है, जिसकी मदद से उनका खेती का खर्च 25 प्रतिशत तक कम हो गया है। इस ट्रैक्टर को देशभर से ऑर्डर्स मिल रहे हैं ।
सालों पहले गुजरात के नवसारी जिले के दोलधा गांव के किसान, नुकसान के कारण खेती छोड़ने को मजबूर थे। लेकिन आज यह गांव नर्सरी हब बन गया है और पूरे गुजरात, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों में पौधे बेचता है।