कृषि में हरे सोने के नाम से जाना जाता है शैवाल, जिसकी मांग आज दवाई से लेकर ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने में काफी ज्यादा है। एक वक्त था जब आम लोग ही नहीं किसान भी इस सुपरफूड और इसके गुणों से अंजान थे, लेकिन हिम्मत करके एक महिला किसान ने 10 साल पहले इसे उगाना शुरू किया और आज इसे देश के 1200 से ज्यादा किसानों के बीच लोकप्रिय बना दिया।
गांव में रहने वाले वो युवा जो मानते हैं कि तरक्की और कामयाबी की कहानी सिर्फ शहर में जाकर, बड़ी नौकरी करके ही हासिल की जा सकती है। उन्हें गांव के भावेश चौधरी की सफलता की कहानी जरूर जाननी चाहिए।
रतलाम के दो भाइयों ने शुरू की थी मध्यप्रदेश की पहली हाइड्रोपोनिक नर्सरी, जिससे आज वह लाखों रुपयों का टर्नओवर कमा रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह नर्सरी उन्होंने जुगाड़ से बनाई थी।
ओडिशा के कोरापुट जिले की रहने वाली रायमती घुरिया ने अब तक मिलेट की 30 से अधिक किस्मों को संरक्षित किया है। सातवीं पास रायमती का कृषि और बीज संरक्षण के प्रति लगाव आज उनकी पहचान बन गया है।
न कोई खेत, न मिट्टी! पंजाब के दो भाई किसान न होते हुए भी, उगा रहे हैं केसर और दूसरों को भी सीखा रहे हैं एक्स्ट्रा आय का जरिया। खास बात तो यह है कि ये सब वे अपनी फुल टाइम नौकरी के साथ कर रहे हैं।
आंध्र प्रदेश के श्री सत्य साईं जिले में सालों से बंजर पड़ी 13,900 स्क्वायर फीट की ज़मीन को बेंगलुरु के पुष्पा और किशन कल्याणपुर ने अपने बच्चों के साथ मिलकर केवल 3 महीने की कड़ी मेहनत और कोशिशों से न केवल उपजाऊ बना दिया, बल्कि यहाँ बनाया है 'वृक्षावनम' नाम का एक विशाल और सुन्दर फ़ूड फॉरेस्ट भी, जो आज उनके सस्टेनेबल घर की पहचान बन चुका है।
ऑर्गेनिक फार्मिंग से लेकर कम्पोस्टिंग तक, सब सीख सकते हैं मंगलुरु के नज़दीक केपु गाँव में बसे इस अनोखे 'वारानाशी फार्मस्टे' में। साथ ही यहाँ आने वाले मेहमान कायाकिंग और स्विमिंग जैसी कई एक्टिविटीज़ में भी भाग ले सकते हैं।
मुंबई बेस्ड इंजीनियर कौस्तुभ ढोंडे और उनका इलेक्ट्रिक ट्रैक्टर स्टार्टअप AutoNxt Automation आर्टिफिशल इंटेलिजेन्स (AI) और 5G तकनीक से चलने वाले ऑटोनोमस ट्रैक्टर पर काम कर रहा है और 2024 तक इसे लांच करने की तैयारी में है।
केरल के कन्नूर जिले में पयंगडी के पास थावम के रहनेवाले राजन, पेशे से एक मछुआरे हैं। लेकिन पिछले 40 सालों से मैंग्रोव को उगाने, संरक्षित करने और लोगों को जागरूक करके, उन्हें बचाने और पुनर्स्थापित करने का काम कर रहे हैं। इस वजह से उनका नाम मैंग्रोव राजन पड़ गया है।