निमिष ने बांटी गणपति की 500 अनोखी मूर्तियां, विसर्जन के बाद देती हैं फल और सब्जियां

Eco-friendly Ganesha Idols made by Nimish Gautam

एमबीए और एमकॉम की पढाई कर बड़ी कोचिंग में कार्यरत, 25 साल के निमिष गौतम ने गणेश चतुर्थी पर अनोखे इको फ्रेंडली गणेश की 500 मूर्तियां बनाकर लोगों को सवा रुपये में बांटी हैं, जिससे आस्था और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रहें।

“गणेशोत्सव पर निकलने वाले भव्य अनंत चतुर्दशी जुलूस में गजानन की मूर्तियों को श्रद्धा, भजन, अखाड़ों के साथ जल में वित्सर्जन करना, बड़ा ही सुखमय और आनंदमय क्षण होता है। लम्बोदर की विदाई के दूसरे दिन जब में किशोर सागर तालाब पर मॉर्निंग वॉक के लिए गया तो देखा कि, जिनको हमने ससम्मान भक्तिभाव से पूजा, उनकी प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनी खंडित गणपति की मूर्तियां पानी में पड़ी हुई हैं। उनको देखकर लगा जैसे गजानन दुखी हैं, बस उसी समय इसमें बदलाव लाने का विचार आया।” 

यह कहना है कोटा (राजस्थान) के 25 साल के युवक निमिष गौतम का। उन्होंने गणेश उत्सव पर गणेश जी की इको फ्रेंडली गणपति की मूर्तियां बनाईं और गणेश चतुर्थी के अवसर पर घर में गजानन की स्थापना करने वाले धर्मार्थियों को बाँट दिया। 

कमाल की बात यह है कि निमिष ने ये सभी गणपति की मूर्तियां मिट्टी और आटे से बनाईं और इनकी सजावट के लिए खाने का तेल, मोटे अनाज और फलों व सब्जियों के बीज का इस्तेमाल किया। 

आस्था के साथ-साथ पर्यारण को बचाने की मुहिम 

एम.बी.ए. और एम.कॉम की डिग्री ले चुके निमिष गौतम, एक बड़ी कोचिंग में अच्छे पद पर काम करते हैं। वह धार्मिक होने के साथ-साथ, पर्यावरण के प्रति जागरूक और संवेदनशील भी हैं। उन्होंने इस साल, गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की 500 इको फ्रेंडली गणपति की मूर्तियां भक्तों में बांटीं, ताकि विसर्जन के बाद गजानन की मूर्तियों का न तो अपमान हो और न ही उनसे जल प्रदूषित हो। 

निमिष ने यह 500 गणपति की मूर्तियां काली मिट्टी और गेहूं के आटे से बनाईं। ख़ास बात यह है कि इनको आराम से घर में किसी गमले या किचन गार्डन में श्रद्धापूर्वक विसर्जित किया जा सकता है। कुछ मूर्तियों में नींबू, जामुन, लौकी, गिलकी, तोरई जैसी सब्जियों के बीज भी डाले गए हैं, ताकि इनको जब गमले या गार्डन में विसर्जित किया जाए तो गजाजन के आशीर्वाद के रूप में फल और सब्ज़ी मिल सकें। 

निमिष ने मूर्तियों को सुन्दर और आकर्षक बनाने के लिए इनमें तरबूज-खरबूजों के बीज, किशमिश और मोटे अनाज का इस्तेमाल किया और फ़ूड कलर से इनका रंग-रोग़न किया। 

जहाँ पहले प्लास्टर ऑफ़ पेरिस और केमिकल वाले कलर से बनीं मूर्तियों की वजह से पानी में रहने वाले जीवों पर बुरा असर पड़ता था; वहीं निमिष की इन मूर्तियों से इन सभी समस्याओं का समाधान हो गया। अनाज और बीज पानी में आसानी से घुल जाते हैं या फिर जलीय जंतुओं के खाने के काम भी आ सकते हैं।

नौकरी के बाद बनाते थे गणपति की मूर्तियां 

निमिष ने 20 अगस्त से गणपति की मूर्तियां बनाने का यह काम शुरू किया था, जो गणेश चतुर्थी के एक दिन पहले ख़त्म हुआ। वह 8 घंटे, 10 से 6 बजे तक अपनी नौकरी करते, उसके बाद घर आकर खाना खाने के बाद देर रात 1-2 बजे तक मूर्तियां बनाते थे। जब मूर्तियां रात भर में सूख जाती तो सुबह जल्दी उठकर, 5 बजे से 8-9 बजे तक इन्हें रंगने और सजाने का काम करते थे। इन मूर्तियों के लिए वह खेत या कंस्ट्रक्शन साइट पर से मिट्टी लाते थे। इस पूरे काम में निमिष की माँ, उनकी मदद करती थीं।

ये गणपति की मूर्तियां लोगों को बहुत पसंद आईं, लेकिन निमिष ने इनको बांटने से पहले सभी भक्तों से एक शपथ लेने के लिए कहा। उन्होंने लोगों से पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाने और हमेशा इको फ्रेंडली गणेश मूर्ति लाने या बनाने का वचन लिया; उसके बाद सवा रुपये में यह मूर्तियां उनको प्यार से भेंट की। 

अगले साल 1000 मूर्तियों का लक्ष्य

निमिष ने पिछले साल भी, इसी तरह 250 गणपति की मूर्तियां लोगों में बांटी थीं। उन्होंने इस बार सिर्फ़ उन 500 लोगों को मूर्तियां बांटी, जिन्हें पिछले साल नहीं दे पाए थे। इसके पीछे का तर्क बताते हुए वह कहते हैं, “गत वर्ष 250 परिवारों को इस मुहिम में जोड़ा था और उनसे इको फ्रेंडली गणेश जी घर लाने के साथ पर्यावरण के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभाने का वचन लिया था; और इस साल नए 500 परिवारों को जोड़ा है। पिछली बार जिन्हें मैंने गणपति की मूर्तियां दी थीं, उनमें से कई लोगों ने मुझे इस बार मिट्टी के गणेश के साथ सेल्फी भेजकर अपना वचन निभाया है। मुझे खुशी है कि मेरा जो उद्देश्य था वो सफल हो रहा है। अब, अगले साल 1000 मूर्तियों का लक्ष्य है।”

निमिष की लगन और श्रद्धा से बनी यह इको फ्रेंडली मूर्ति पाने वाले एक भक्त, अवधेश ने इस पहल का स्वागत कर धन्यवाद देते हुए कहा, “हमारे परिवार के लोग बहुत खुश हैं क्योंकि यह पर्यावरण की रक्षा के साथ-साथ आस्था, धर्म और संस्कृति की पालना करने का एक बहुत ही अच्छा तरीका है। आम तौर पर मिट्टी की मूर्ति मिल तो जाती है, लेकिन वह इतनी आकर्षक नहीं होती और महंगी भी होती है। इसलिए हमें प्लास्टर ऑफ़ पेरिस की मूर्ति लानी पड़ती थी, लेकिन इस बार यह मूर्ति पा कर मन खुश है। अब शपथ भी ली है कि अगले साल से इसी तरह इको फ्रेंडली, मिट्टी की ही मूर्ति स्थापित करेंगे ताकि आस्था साथ-साथ पर्यावरण भी सुरक्षित रहे।”

लेखकः सुजीत स्वामी

संपादन: भावना श्रीवास्तव

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