कर्नाटक के सात्विक एस और प्रदीप खंडेरी Suraksha Mudblock नाम की एक कंपनी चलाते हैं। यहां इंटरलॉकिंग मड ब्रिक विधि का इस्तेमाल करके मिट्टी के घर बनाए जाते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होता और खर्च भी कम होता है।
तमिलनाडु, होसुर के पास Denkanikotta में बने आर्किटेक्ट राजीव कुमारवेल का घर गर्मियों में भी ठंडा रहता है। सीमेंट का कम से कम उपयोग करके बने इस घर में उनका परिवार साल भर बारिश का पानी पीता है और घर में उगी सब्जियां ही खाता है।
पेशे से शिक्षक और पर्यावरण प्रेमी बाबूराज ने 2007 में प्रकृति के करीब रहने के लिए एक इको-फ्रेंडली घर बनाने की योजना बनाई। उन्होंने तालाब के ऊपर एक तीन मंजिला बैम्बू विला बनाया, यह एक होमस्टे भी है, जिसे बनाने के लिए उन्होंने 90 प्रतिशत बैम्बू खुद ही उगाए हैं।
वायनाड के रहनेवाले बाबुराज ने जब गांव में अपने सपनों का घर बनाने के लिए जमीन खरीदी थी, तो योजना सिर्फ बेम्बू हाउस बनाने की थी। उन्हें क्या पता था कि वह एक तालाब के बीचों-बीच होगा। आज उनका तीन मंजिला घर न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि उनकी आमदनी का जरिया भी बन गया है।
मुंबई और पुणे जैसे शहरों में बतौर इंजीनियर काम करने वाले नरेंद्र पितले, नौ साल पहले शिलिम्ब गांव में आकर बस गए। यहाँ उन्होंने मिट्टी और रीसायकल चीजों से, मात्र दो लाख रूपये में एक इको फ्रेंडली घर तैयार कर लिया।
अब जब साल 2021 अपने अंतिम पड़ाव पर है, तो हम आपके लिए इस साल के उन इको फ्रेंडली घरों की कहानियां लेकर आए हैं, जिन्हें आपने सबसे ज्यादा पढ़ा और सराहा है।
अमरेली के रहनेवाले कैलाशबेन और कनुभाई करकर के घर में तमाम सुविधाएं होते हुए भी, बिजली-पानी का कोई खर्च नहीं आता है। इतना ही नहीं, सरकार उन्हें सालाना 10 हजार रुपये देती है। तभी तो इसे मिला है गुजरात के आदर्श घर का अवॉर्ड।
मिलिए सालों से ऑर्गेनिक खेती से जुड़े अजय बाफना से, जिन्होंने बड़ी बारीकी से कम से कम सीमेंट, प्लास्टिक और केमिकल के इस्तेमाल से 52 महीने में तैयार किया एक बेहतरीन फार्मस्टे।