हर रोज़ सुबह-सुबह राजन अपनी छोटी सी नाव लेकर पयंगडी नदी की ओर मछली पकड़ने निकल जाते हैं। इस दौरान वह हमेशा थोड़ा समय निकालकर उन प्यारे मैंग्रोव को देखने के लिए रुकते हैं, जिन्हें वह पिछले कई सालों से लगा रहे हैं और देखभाल कर रहे हैं।
केरल के कन्नूर जिले में पयंगडी के पास थावम के रहनेवाले राजन, पिछले 40 सालों से मैंग्रोव को उगाने, संरक्षित करने और प्रचारित करके उन्हें बचाने और पुनर्स्थापित करने का काम कर रहे हैं। इस वजह से उनका नाम कंडल (मैंग्रोव) राजन पड़ गया है।
राजन द बेटर इंडिया को बताते हैं, “एक मछुआरा होने के नाते मैं हरियाली के महत्व को जानता हूं और पिछले कई सालों से इसे घटते हुए देख रहा हूं। ये मैंग्रोव मछलियों और कई समुद्री और गैर-समुद्री प्रजातियों के लिए ब्रीडिंग ग्राउंड भी हैं। मैंने इन क्षेत्रों में मैंग्रोव की लगभग 22 प्रजातियां देखी हैं, लेकिन अब उनमें से ज़्यादातर इंसानों के हस्तक्षेप की वजह से गायब हो गई हैं। झींगा या धान की खेती के लिए इन्हें बड़े पैमाने पर काटा जा रहा है। इसलिए, मैं कम से कम इतना तो कर सकता हूं कि ज़्यादा पौधे लगाऊं।”
राजन के इस काम के बारे में उनके आस-पास के भी ज़्यादा लोग नहीं जानते, लेकिन उन्होंने घटते मैंग्रोव के संरक्षण के लिए बचपन से ही काम करना शुरू कर दिया था। 58 वर्षीय राजन बताते हैं, “मैं बचपन से मैंग्रोव लगा रहा हूं और अपनी आंखों के सामने इन्हें कम होता देखकर दुख होता है। इसलिए मैं जितना हो सके, उतने पौधे लगाने की कोशिश करता हूं।” वह आगे कहते हैं कि उन्होंने अब तक कितने मैंग्रोव पौधे लगाए, इसकी गिनती नहीं रखी है।
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मैंग्रोव को बचाना है उद्देश्य
इकोसिस्टम को बेहतर बनाए रखने में अहम भुमिका निभाने वाले मैंग्रोव, क्लाइमेट चेंज को कंट्रोल करने के लिए ज़रूरी माने जाते हैं। केरल में ये सदाबहार मैंग्रोव, मालाबार (उत्तरी केरल) के किनारे पाए जाते हैं, विशेष रूप से कन्नूर और कासरगोड जिलों में।
कन्नूर के मुख्य वन संरक्षक (उत्तरी सर्कल) विनोद कुमार डीके कहते हैं, “बाकी क्षेत्रों की तुलना में एक छोटे क्षेत्र, केरल में लगभग 700 वर्ग किमी मैंग्रोव पेड़ थे, जो अब केवल 21 वर्ग किमी तक रह गए हैं। पहले इसका आधा हिस्सा सरकारी था और बाकी निजी निवेशकों का था। लेकिन अब राज्य में मैंग्रोव की आबादी कम होती जा रही है, क्योंकि इसका आधे से ज़्यादा हिस्सा लोगों के हाथ में है, जिससे संरक्षण में मुश्किल हो रही है।”
सभी मुश्किलों के बारे में जानने के बाद भी राजन ने कभी हार नहीं मानी। वह कहते हैं, “मुझे पता है कि मैं यह नुक़सान होने से रोक नहीं सकता, लेकिन मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि ज़्यादा से ज़्यादा पौधे लगाए जाएं, इसलिए मैं बीज या पौधे लगाने के लायक ज़मीन ढूंढ़ने के लिए पूरे क्षेत्र में घूमता रहता हूं।”
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मछली पकड़ना उनका पेशा ज़रूर है, लेकिन मैंग्रोव के बीज और दलदली ज़मीन के आस-पास पौधे खोजना उनका पसंदीदा शौक़ बन गया है। वह बताते हैं, “जब भी मुझे कोई बीज या पौधा मिलता है, तो मैं उन्हें ज़िंदा रखने के लिए किसी सुरक्षित और बेहतर जगह पर लगा देता हूं और फिर उनकी देखभाल के लिए उस जगह जाता रहता हूं।”
कई प्राकृतिक आपदाओं के सामने बांध का करते हैं काम
एक स्थानीय निवासी रामचंद्रन पेटेरी कहते हैं, “वह हमेशा इस क्षेत्र में मैंग्रोव ढूंढते रहते हैं और उनको बचाने की बहुत कोशिश करते हैं। उनकी कोशिशों की वजह से ही यहाँ अब बहुत सारे मैंग्रोव पैच हैं। मैं ज़्यादातर उन्हें अपनी नाव से नदी के चारों ओर घूमते हुए और मैंग्रोव को ढूंढ़ते हुए देखता हूं। वह इन्हें लगाने के लिए जगह खोजते रहते हैं।”
मैंग्रोव के फ़ायदे के बारे में बताते हुए राजन कहते हैं कि ये कोस्टल इरोशन को रोकने में मदद करते हैं और प्राकृतिक आपदाओं जैसे आंधी, चक्रवात, तूफ़ान और सुनामी के ख़िलाफ़ एक बांध के रूप में काम करते हैं। वह आगे कहते हैं, “इतना ही नहीं, इनमें कुछ औषधीय गुण भी होते हैं और दवाएं बनाने में भी इनका इस्तेमाल किया जाता है।”
हालांकि, राजन का कहना है कि आज लोग कृषि, जलीय कृषि, निर्माण और विकास परियोजनाओं के नाम पर, इतने फ़ायदे होने के बावजूद इन्हें नष्ट कर रहे हैं। वह कहते हैं, “निजी ज़मीन के मालिकों को मैंग्रोव बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि इनसे उन्हें कोई आर्थिक फ़ायदा नहीं होता है। इसलिए वे उन्हें झींगा या धान की खेती के लिए साफ़ कर देते हैं।”
शुरू की मैंग्रोव नर्सरी
विनोद बताते हैं, “हालांकि कोस्टल रेगुलेटरी ज़ोन (सीआरज़ेड) के अंतर्गत आने वाले मैंग्रोव क्षेत्रों के लिए हमारे पास कानून हैं, लेकिन उन्हें लागू करना आसान नहीं है। झींगा और धान की खेती को बढ़ावा देने वाली सरकारी सब्सिडी वाली योजनाएं भी हैं, जिनकी वजह से ज़मींदार खेती करने के लिए मैंग्रोव को काट देते हैं।”
लेकिन मैंग्रोव मैन कहते हैं कि जब कोई उनकी जानकारी में कानून का उल्लंघन करता है और मैंग्रोव को काटता है, तो वह चुप नहीं रहते और इसकी सूचना वन अधिकारियों को देते हैं। वह कहते हैं, “कई लोग मेरे काम पर सवाल उठाते हैं। इतना ही नहीं, क्योंकि मैं मैंग्रोव की कटाई की सूचना देता हूं, इसलिए क्षेत्र के कई लोग मेरा विरोध भी करते हैं।”
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विनोद आगे बताते हैं, “वह इस बारे में बहुत जागरूक हैं और वन विभाग को मैंग्रोव की कटाई के बारे में बताते हैं। हम तुरंत हस्तक्षेप करते हैं और अपराधियों के ख़िलाफ़ पेड़ संरक्षण अधिनियम के तहत कार्रवाई करते हैं और उन्हें पेड़ काटने से रोकते हैं।”
इसके अलावा, 2007 से उन्होंने अपने घर में बनाई हुई मैंग्रोव की एक छोटी नर्सरी की देखभाल भी कर रहे हैं। वह आगे कहते हैं, “यहाँ कुट्टीकंडल (ब्रुगुएरा सिलिंड्रिका), उपुट्टी, एज़ुथानी कंडल, पू कंडल (ब्रुगुएरा जिमनोरिज़ा), प्रंथन कंडल (राइज़ोफोरा माइक्रोनेशिया) जैसी पांच अलग-अलग किस्मों के लगभग 5,000 पौधे हैं और जो लोग उनके पास पौधे लेने आते हैं, उन्होंने वह पौधे देते भी हैं।”
मछली पकड़ने के काम से उनकी ज़्यादा कमाई नहीं होती और उन पर कुछ क़र्ज़ भी है। इसके बावजूद, वह कहते हैं, “मैंने पौधों पर कोई फिक्स्ड रेट नहीं लगाया हुआ है। लोग मुझे जो भी क़ीमत देना चाहें, मैं ले लेता हूँ।”
लोगों को कर रहे हैं जागरूक
वह आगे कहते हैं, “कई क्लब, स्कूल, कॉलेज और संगठन, पौधे लगाने के लिए मुझसे संपर्क करते हैं। मैं उन्हें पौधे देने के साथ ही यह भी बताता हूं कि उनकी देखभाल कैसे करें। इसके अलावा, मैंने वन विभाग के साथ मैंग्रोव को लगाने की उनकी परियोजनाओं के लिए काम किया है और उन्हें हज़ारों पौधे दिए हैं।” आज वह मैंग्रोव के संरक्षण पर जागरूकता फैलाने के लिए कई स्कूल और कॉलेजों में जाते हैं।
अपने प्रयासों के लिए उन्हें बहुत सी तारीफ़ों के साथ-साथ, 2008 में पीवी थम्पी मेमोरियल अवॉर्ड भी मिल चुका है, जो समाज में आम लोगों को उनके असाधारण काम के लिए दिया जाता है।
वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, “यह मेरे लिए कभी आसान नहीं रहा। लेकिन मैंने मैंग्रोव के संरक्षण के अपने लक्ष्य के साथ आगे बढ़ने का फैसला कर लिया है।”
अगर आप भी इस क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, तो राजन से 9995122871 पर संपर्क कर सकते हैं।
मूल लेख - अंजली कृष्णन
संपादन - अर्चना दुबे
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