चार सालों तक सरकारी परीक्षा में असफल होने के बाद महज 5 दिन के ट्रेनिंग प्रोग्राम ने गौरव पचौरी का जीवन बदल दिया। रेगिस्तान में मोती उगाकर आज वह लाखों की कमाई कर रहे हैं। इस युवा किसान की सफलता से आपको ही जरूर मिलेगी प्रेरणा।
'भीड़ हमें ताकत देती है लेकिन हमारी पहचान छीन लेती है।" किसानी के अपने खानदानी पेशे को उनकी सही पहचान दिलाने के लिए राजस्थान के एक जवान ने किसान बनने की ठानी और आज अपने अनोखे प्रयास से इलाके के सबसे इनोवेटिव किसान बनकर दूसरों को भी राह दिखा रहे हैं।
पुणे की एक गृहिणी वैष्णवी पाटिल कहती हैं, "हर बीज का हक है पौधा बनने का और पौधे से पेड़ बनने का, उनका हक हमें देना चाहिए।" आइए जानते हैं शहर में रहकर भी वह कैसे प्रकृति की हिफाजत और देखभाल कर रही हैं।
घर में जगह नहीं थी तो पुणे के इस ऑटो वाले ने कुछ इस तरह किया अपने गार्डनिंग का शौक पूरा। प्रकृति से लगाव और पौधों से ऐसा प्यार आपने शायद ही पहले देखा होगा।
IAS दिव्या तंवर की मजदुर माँ को कभी यह मालूम ही नहीं था कि बेटी UPSC की तैयारी कर रही है। वह तो बस यही सोचकर खुश थीं कि बेटी पढ़ाई कर रही है। माँ की मेहनत और घर की गरीबी ही बनी उनकी ताकत, जिसके दम पर उन्होंने बिना कोचिंग के अपने पहले प्रयास में ही UPSC पास करके इतिहास रच दिया।
राजस्थान के एक छोटे से गांव में बने दो दोस्तों के एग्रो टूरिज्म को सफल बनाने में द बेटर इंडिया ने निभाई अहम भूमिका। एक तरफ यहां आने वाले मेहमानों की संख्या दुगुनी हो गयी है, वहीं ट्रेनिंग के लिए इनसे जुड़े देशभर के 10 हजार किसान।
कर्नाटक के एक किसान करिबसप्पा एमजी ने अपनी फसलों से कीड़ों को दूर रखने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करके एक मशीन तैयार किया है, जिसका फ़ायदा आज दुनियाभर के किसानों को मिल रहा है।
मिलिए हरिद्वार की डॉ. अंशु राठी से; जिन्होंने अपनी बेटी को घर की ऑर्गेनिक फल-सब्जियां खिलाने के लिए साल 2013 में गार्डनिंग शुरू की थी। उनके इस सफर में द बेटर इंडिया भी उनका साथी रहा है! जानिए कैसे..