हिमालयन क्षेत्र में चलने वाली तेज हवा और जलवायु परिवर्तन से लेकर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं के साथ, ताबो मठ ने कई तूफानों का सामना किया है। मिट्टी से बने ये सालों पुराने मठ सस्टेनेबल आर्किटेक्चर का उत्तम उदाहरण हैं।
साल 2001 से जैविक खेती कर रहे कच्छ के मनोज सोलंकी, अपने ट्रस्ट के जरिए गांव वालों को सस्टेनेबल व्यवसाय के तरीके भी सीखा रहे हैं। इसी प्रयास की आगे बढ़ाते हुए, उन्होंने ईको-टूरिज्म की भी शुरुआत की है।
केरल के कासरगोड के रहनेवाले देवकुमार नारायणन और उनकी पत्नी UAE में एक इंजीनियर के रूप में काम कर रहे थे। लेकिन, 2018 में उन्होंने नौकरी छोड़ अपने गांव में ‘पपला’ कंपनी की शुरुआत की, जिसके तहत वह सुपारी के पत्तों से कई इको-फ्रेंडली सामान बना रहे हैं।
चिड़ियों की चहचहाहट और तितलियों के रंगों से सजे छोटे से 'Art Village Karjat' को मुंबई की गंगा कडाकिया ने बनाया है। यहां कला और सस्टनेबिलिटी का संगम है, जहां सुकून से बैठ प्राकृतिक इकोसिस्टम को बनता और काम करता देख सकते हैं आप।
स्टेटिक ऐप से जुड़े चार्जिंग स्टेशन से आप बिना किसी परेशानी के अपने ईवी को सिर्फ 11 रुपये/ युनिट में चार्ज कर सकते हैं और कैश या कार्ड पेमेंट की भी कोई चिकचिक नहीं। पेमेंट सीधे इससे जुड़े वैलेट से हो जाती है।
30 वर्षीय नाज़ ओजैर को बचपन से ही इनोवेशन का शौक़ रहा है। उनके भांजे की अचानक हुई मृत्यु ने, उन्हें प्लास्टिक का विकल्प ढूंढने की प्रेरणा दी और उन्होंने नौकरी छोड़कर, प्लास्टिक से बनने वाले 10 प्रोडक्ट्स को मकई के छिल्कों से बनाकर तैयार किया।