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COVID-19 के चलते देशभर में सख्त लॉकडाउन किया गया है। लेकिन इस लॉकडाउन का असर सबसे ज्यादा दिहाड़ी-मजदूर, गरीब और बेसहारा लोगों पर हो रहा है।
इस मुश्किल समय में भारत में बहुत से लोग सामने आ रहे हैं जो अपनी परवाह किए बिना ज़रूरतमंदों को आश्रय, राशन, पैसे और अन्य ज़रूरी सुविधाएं मुहैया करा रहे हैं। इन लोगों ने इंसानियत को सबसे ऊपर रखा है और हर संभव प्रयास कर रहे हैं ताकि इस लड़ाई में कोई भी पीछे न छूट जाए।
बदलाव की मशाल जला रहे इन लोगों में कई प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हैं, जो गरीब लोगों की मदद पूरे दिल से कर रहे हैं। महाराष्ट्र से मेघालय तक, ये अफसर बिना रुके और थके गरीब, दिहाड़ी मजदूरों, और फंसे हुए श्रमिकों को आश्रय और खाना दे रहे हैं। साथ ही, अपने जिले में जागरूकता का भी प्रसार कर रहे हैं।
द बेटर इंडिया इन सभी को और इनके प्रयासों को सलाम करता है। साथ ही, इन अफसरों की पहल में मदद करने के लिए हम एक अभियान शुरू कर रहे हैं ताकि इनके लिए धनराशि इकट्ठा कर सकें!
#BetterTogether द बेटर इंडिया की एक पहल है जिसके ज़रिए हम प्रशासनिक अधिकारियों का साथ देना चाहते हैं ताकि दिहाड़ी मजदूरों, सबसे आगे खड़े स्वास्थ्य कर्मचारियों और ज़रूरतमंदों को इस मुश्किल समय में मदद मिलती रहे। आज हो डोनेट करने के लिए
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हम इन अफसरों के अभियानों की सभी जानकारी को इकट्ठा करके एक प्लेटफ़ॉर्म पर लेकर आए हैं ताकि हमारे पाठक इन अभियानों के बारे में पढ़ें और फिर तय करें कि वे कैसे ज़रूरतमंदों तक अपनी मदद पहुंचा सकते हैं!
1. आईएएस स्वप्निल टेम्बे, मेघालय
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ईस्ट गारो हिल्स के डिप्टी कमिश्नर, स्वप्निल साल 2015 से ही इस इलाके में अपने विकास कार्यों के लिए मशहूर हैं। अभी भी वह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके क्षेत्र में किसी को भी परेशानी का सामना न करना पड़े।
स्वप्निल ने द बेटर इंडिया को बताया, “भले ही अभी तक हमारे यहां COVID-19 का कोई मामला नहीं है लेकिन पिछले दो हफ्तों से चल रहे कर्फ्यू के चलते लोगों को परेशानी हो रही है। इनमें से बहुत से लोग श्रमिक विभाग के साथ रजिस्टर नहीं हैं और बहुतों के पास बैंक खाता नहीं है जिससे कि उन्हें सरकारी राशन की मदद मिल पाए।”
लॉकडाउन के बाद से ही बहुत से गरीब लोगों ने मदद के लिए स्वप्निल के दफ्तर आना शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने कुछ इलाकों में ग्राउंड सर्वे किया और यहाँ के हालात देखकर उन्होंने इन लोगों के लिए कुछ करने की ठानी।
मदद के लिए वह इन गरीब परिवारों को राशन पहुंचा रहे हैं और साथ ही, वह असम से यहाँ काम करने आए कुछ श्रमिकों की मदद भी कर रहे हैं!
उन्होंने बताया, “ एक दिव्यांग व्यक्ति ने संपर्क किया जो अपनी छोटी-सी मोबाइल रिपेयरिंग शॉप बंद होने के बाद बहुत मुश्किल में था। इसलिए मैंने ऐसे दिव्यांग लोग जो परेशानी से जूझ रहे हैं, उन्हें ढूंढ़कर उनकी मदद करने की योजना बनायी है।”
उन्होंने ज़मीनी स्तर पर सभी राशन और अन्य सामान को पहुंचाने की ज़िम्मेदारी एक स्वयं सहायता समूह अचिके चादम्बे को दी है।
स्थानीय युवा, बोंकेय आर. मारक द्वारा संचालित किए जाने वाले इस समूह ने परेशानी में बहुत से लोगों की मदद की है। फिलहाल, आईएएस के आदेशानुसार हर परिवार को उनकी साप्ताहिक ज़रूरत के हिसाब से 5 किलो चावल, 2-3 किलो दाल और 1 किलो नमक दिया जा रहा है।
इस फंडरेजर की मदद से आईएएस स्वप्निल जल्द से जल्द 2000 से भी ज्यादा गरीब परिवारों तक पहुंचना चाहते हैं। उनका उद्देश्य #BetterTogether के ज़रिए 8 लाख रुपये इकट्ठा करने का है!
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2. आईआरएस डॉ. मेघा भार्गव, मुंबई
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देश की आर्थिक राजधानी कहा जाने वाला मुंबई शहर सबसे ज्यादा प्रभावित है, जहां कोरोना वायरस के मामले 700 से ज्यादा हो चुके हैं। ऐसे में, शहर में फंसे श्रमिकों की मदद के लिए मुंबई की डिप्टी इनकम टैक्स कमिश्नर डॉ. मेघा भार्गव आगे आ रही हैं।
पहले डेंटिस्ट रह चुकीं डॉ. मेघा अपने एनजीओ, समर्पण के ज़रिए लॉकडाउन होने के बाद अब तक 2666 खाने के पैकेट और सैनिटरी किट बाँट चुकी हैं।
उन्होंने बताया, “इस एनजीओ की शुरूआत 2017 में हम कुछ डॉक्टरों और प्रशासनिक अधिकारियों ने मिलकर की थी जिसमें मेरी बहन डॉ. रुमा भार्गव, मेरे दोस्त डॉ. राहुल टैगोर और आईआरएस अफसर सुरेश कटारिया भी शामिल हैं। हम दो क्षेत्रों में काम कर रहे हैं - शिक्षा और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं। अब तक, हमने अपने एनजीओ के ज़रिए महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तराखंड के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में 10 हज़ार से भी ज्यादा लोगों के जीवन को प्रभावित किया है।”
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अपने विभाग के अधिकारियों, मुंबई पुलिस और बृहन्मुंबई नगर निगम के साथ मिलकर डॉ. भार्गव श्रमिक परिवारों के साथ-साथ धारावी स्लम के निवासियों तक राशन और सैनिटरी किट पहुंचाने के लिए दिन-रात काम कर रही हैं। साथ ही, इस पहल में उनकी मदद करने वाले पुलिस कर्मचारियों को उन्होंने 1000 से अधिक हैंड सैनिटाइज़र और 1300 से अधिक फेस मास्क प्रदान किए हैं।
#BetterTogether अभियान की मदद से उनका उद्देश्य 10 हज़ार परिवारों के लिए खाना और सैनिटरी किट जुटाना है जो कम से कम एक महीने तक चले!
1000 रुपये की कीमत वाली प्रत्येक किट में 5 किलो आटा, 3 किलो चावल, 3 किलो दाल (1-1 किलो मसूर, चना और काला चना), 1 किलोग्राम चीनी, 1 लीटर खाना पकाने का तेल, 1 किलो नमक और हल्दी, मिर्च, धनिया और अन्य ज़रूरी मसाले ( 200 ग्राम) हैं। इसके अलावा, हर एक सैनिटरी किट में साबुन, हैंड सैनिटाइज़र और फेस मास्क शामिल हैं।
डॉ. भार्गव को इन प्रवासी मजदूर परिवारों की मदद के लिए 25 लाख रुपये जुटाने हैं और आप सभी इसमें उनकी मदद कर सकते हैं!
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3. आईआरएस निशांत के, बंगलुरु
बंगलुरु भारत के उन शुरूआती शहरों में से है जहां सबसे ज्यादा कोरोना वायरस के मामले बढ़े हैं और इससे तुरंत लॉकडाउन का निर्णय लिया गया। इसके चलते शहर में 13 हज़ार प्रवासी मजदूर और उनके परिवार बिना किसी काम और बिना किसी राशन के फंस गये।
बंगलुरु के जॉइंट कमिश्नर ऑफ़ इनकम टैक्स यानी कि आयकर आयुक्त, निशांत के, इन परिवारों की मदद के लिए आगे आने वाले लोगों में एक हैं। अपने विभाग के लगभग 20 आईआरएस अधिकारियों के साथ, उन्होंने बोम्मासंद्र के पास लगभग 1800 प्रवासी श्रमिकों को गर्म भोजन बाँटना शुरू किया।
देशभर में लॉकडाउन होने के बाद, उन्होंने और उनके सहयोगियों ने अपने प्रयासों को बढ़ाया और फिलहाल, प्रतिदिन 13,050 लोगों को भोजन दिया जा रहा है।
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“शुरुआत में, हमने लगभग 2500 लोगों के लिए भोजन तैयार करने के लिए रेलवे कैंटीन से संपर्क किया। लेकिन जल्द ही, बीबीएमपी की मदद से, हमने जाना कि हजारों असहाय लोग शहर के अलग-अलग भागों में भूख से बेहाल हैं। इसलिए, हमने 31 मार्च से एनजीओ लाइफलाइन फाउंडेशन और एटीआरआईए (ATRIA) के साथ मिलकर अपने प्रयासों को आगे बढ़ाया,” बेंगलुरु की सहायक आयकर आयुक्त निव्या शेट्टी ने बताया, जो इस टीम का हिस्सा हैं।
हर दिन, 5 केंद्रों में भोजन तैयार किया जाता है - जिसमें रेलवे कैंटीन, कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन कैंटीन और तीन व्यक्तिगत स्वयंसेवक शामिल हैं जो अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं में खाना बना रहे हैं। उसके बाद, लाइफलाइन और ATRIA के स्वयंसेवक इसे घर-घर पहुंचाने के लिए बेंगलुरु पुलिस कर्मियों को सौंप देते हैं। अंत में, लगभग 30 पुलिस अधिकारी शहर भर में 15 स्थानों पर भोजन बांटते हैं।
इस सबमें हर दिन लगभग 4 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं, जिसमें एक थाली की लागत लगभग 30 रुपये है। फंड जुटाने के लिए, निशांत और उनकी टीम डॉ. मेघा भार्गव के एनजीओ समर्पण के साथ सहयोग कर रही है, जो फंड का एक हिस्सा बंगलुरु के लिए देंगे। वह अपने सोशल मीडिया पर भी लोगों को मदद करने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
फ़िलहाल, द बेटर इंडिया के साथ, उनका उद्देश्य 25 लाख रुपये इकट्ठा करना है ताकि उनकी पहल चलती रहे।
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4. आईएएस सौरभ कुमार, रायपुर
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छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी में, नगर आयुक्त सौरभ कुमार दिहाड़ी- मजदूरों के लगभग 17, 500 परिवारों के लिए राशन किट की व्यवस्था कर रहे हैं। उनकी पहल से राज्य के अन्य दूरदराज के हिस्सों या पड़ोसी राज्य ओडिशा के फंसे हुए प्रवासी मजदूरों को भी सुविधा मिल रही है।
“रात भर में प्रशासन के लिए राशन की व्यवस्था करना मुश्किल था अगर मिल मालिकों ने मदद न की होती तो। हमारे अनुरोध पर, रायपुर में चावल और दाल मिल मालिकों ने तुरंत 125000 किलो चावल और 29000 किलो दाल का दान किया। हमें राज्य सरकार से लगभग 5000 किलोग्राम चावल भी रियायती दर पर 3 रुपये प्रति किलो में मिला। सभी के साथ से, हम तुरंत वितरण प्रक्रिया शुरू कर पाए,” उन्होंने कहा।
फ़िलहाल, लोगों को दी जा रही राशन किटों में लगभग 5 किलो चावल, 1 किलो दाल, 500 ग्राम बेसन (बेसन), 1 लीटर खाना पकाने का तेल और साबुन होता है। कुछ क्षेत्रों में, दूध भी प्रदान किया जा रहा है, खासकर बच्चों वाले परिवारों के लिए।
प्रत्येक किट की कीमत लगभग 491 रुपये है और एक परिवार के लिए यह सप्ताह भर चल रही है। सूखे राशन के अलावा, कुमार ने अक्षय पात्र फाउंडेशन सहित 104 सामाजिक संगठनों को भी इस पहल में शामिल कर लिया है, जो सबसे ज्यादा कमजोर वर्ग के लोगों को रोजाना पके हुए भोजन के 8000 पैकेट उपलब्ध करा रहे हैं।
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नगरपालिका के अधिकारियों द्वारा प्रतिदिन शाम 5 बजे के बाद घर-घर जाकर खाने का वितरण होता है।
फिलहाल, वह अक्षयपात्रा फाउंडेशन के साथ मिलकर और 15 लाख रुपये जुटाना चाहते हैं ताकि लॉकडाउन के खुलने तक का राशन खरीदा जा सके। उनका उद्देश्य नगर निगम की सीमा के भीतर आने वाले ऐसे परिवारों की मदद करना है जो कि फ़ूड सिक्यूरिटी योजना से बाहर हैं, इनमें प्रवासी मजदूर, दिहाड़ी-मजदुर और बिना किसी स्थिर आय वाले परिवार हैं, जो आसपास के जिलों / राज्यों से संबंधित हैं। इन परिवारों के पास या तो राशन कार्ड नहीं है या उनके पास आसपास के जिलों / राज्यों के राशन कार्ड हैं और लॉकडाउन के कारण सेवाओं का लाभ उठाने में सक्षम नहीं हैं।
एक सर्वेक्षण के ज़रिए ऐसे 17,000 से अधिक परिवारों की पहचान की गई है। इस अभियान के ज़रिए इन्हीं परिवारों की मदद की जाएगी!
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5. डॉ. के. विजयाकार्तिकेयन, तिरुपुर
तमिलनाडु के टेक्सटाइल हब के रूप में प्रसिद्ध, तिरुपुर जिले में बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम के बहुत से प्रवासी मजदूर रहते हैं। लॉकडाउन होने के बाद यहाँ लगभग 3 लाख लोग तिरुपुर में ही फंस गए, इनके पास न तो कमाई का कोई ज़रिया है और न ही ये कहीं जा सकते हैं।
कुछ मजदूरों के लिए उनके कंपनी वालों ने व्यवस्थाएं की हैं लेकिन बहुतों की स्थिति खराब है। लगभग 40 हज़ार मजदूर बिना किसी मदद के हैं और इनमें से बहुतों के पास सिर पर छत भी नहीं है।
ऐसे में, जिला कलेक्टर डॉ. के. विजयकार्तिकेयन ने अब तक लगभग 62,744 लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था करके स्थिति से निपटने के लिए कदम बढ़ाया है। इस जिले में पहले से ही कोरोना वायरस के 20 मामले सामने आ चुके हैं और इसलिए जिले को एक्स्ट्रा अलर्ट पर रखते हुए पूरी तरह लॉकडाउन किया गया है। लेकिन डॉक्टर से आईएएस बना यह अफसर हर संभव प्रयास कर रहा है कि ज़रूरतमंद परिवारों को लगातार सूखा राशन मिलता रहे।
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“हमने अधिकारियों और स्वयंसेवकों की टीम के साथ एक 24×7 नियंत्रण कक्ष स्थापित किया है जो जरूरतमंदों की पहचान कर रहे हैं और सुनिश्चित कर रहे हैं कि राशन समय पर उन तक पहुंच जाए। हमारे ‘तिरुपुर कोरोना फाइटर्स’ कार्यक्रम के माध्यम से आम नागरिकों के बीच में से लगभग 1000 ऑन-ग्राउंड स्वयंसेवकों को चुना गया है। वे पूरी प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए हमारे प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हम लॉकडाउन के पहले दिन से ही काम कर रहे हैं,” उन्होंने बताया।
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एक परिवार के लिए एक राशन किट की कीमत 755 रुपये है और यह एक हफ्ते तक चलता है। अब तक, राशन के लिए धनराशि राज्य सरकार के राहत अनुदान और सीएसआर भागीदारी के माध्यम से प्रदान की गई है। लेकिन विजयाकार्तिकेयन 10 लाख रुपये इकट्ठा कर रहे हैं ताकि और 1325 राशन की किट खरीदीं जा सकें!
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