उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में जन्मे चंद्रशेखर पांडे अपनी पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ रोज़गार की तलाश में सपनों की नगरी मुंबई में जा बसे. शहर में वह अपने सभी अरमान पूरे करते हुए तरक्की कर रहे थे, लेकिन इस बीच गांव और अपनी मिट्टी के लिए लगाव भी बढ़ता रहा। जानें 22 साल बाद आख़िर ऐसा क्या हुआ कि नौकरी छोड़कर वह वापस गांव लौट आये.
मुंबई की हेमांगी और प्रशांत नकवे ने अपने बिज़नेस 'हेमा की वेज रसोई' के जरिए, दो सालों में ही 10 हजार लोगों तक स्वादिष्ट और हेल्दी महाराष्ट्रीयन डिश नए ट्विस्ट के साथ पहुंचाया है।
मुंबई के कल्पेश और उनकी पत्नी सरिता कापसे ने, लॉकडाउन के दौरान गांव में रहकर गार्डनिंग करने के साथ-साथ एक सुंदर DIY गार्डन भी तैयार किया, जहां बैठकर वह वर्क फॉर्म होम करते हैं।
कोविड-19 के मरीजों की मदद के लिए रोज़ी सलधाना अपने गहने तक बेच चुकी हैं और अब उन्हें हम सबके साथ की जरूरत है। उनकी इस मुहिम में छोटी-बड़ी जैसी भी हो, लेकिन मदद जरूर करें।
जयंतराव सलगांवकर ने 70 के दशक में ‘कालनिर्णय’ कैलेंडर की शुरुआत की थी। आज यह नौ भाषाओं (मराठी, अंग्रेजी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, तमिल और तेलुगु) में उपलब्ध हैं। आईए जानते हैं कालनिर्णय के अस्तित्व में आने की दिलचस्प कहानी।
बिजनेस शुरु करने से पहले मिलिंद और कीर्ति दतार ने 13 साल तक IT क्षेत्र में नौकरी की। फिर उन्होंने अपना स्टार्टअप शुरु करने का फैसला किया। स्टार्टअप के जरिए अब वे पुणे और मुंबई में गन्ने का जूस बेच रहे हैं और लाखों की कमाई कर रहे हैं।