असम की ऋतूपूर्णा नेओग अपनी संस्था Akam Foundation के जरिए उन गांवों में फ्री लाइब्रेरी बना रही हैं, जहां के बच्चों को आज भी किताबों और रोटी के बीच में किसी एक चुनना पड़ रहा है।
तिनसुकिया, असम में रहने वाले संजय कुमार गुप्ता साल 2018 से 'केयर नॉर्थ ईस्ट फाउंडेशन' चला रहे हैं। जिसके जरिये वह न सिर्फ तिनसुकिया बल्कि तीताबर जैसे शहर को भी 'कचरा मुक्त' करने में जुटे हैं।
असम के धेमाजी में रहने वाले नबजीत भराली ने जरूरतमंदों व दिव्यांगजनों के लिए कई ज़रूरी आविष्कार किए हैं, जिसके लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
30 साल से भी ज़्यादा समय से गार्डनिंग कर रहीं, नयन मोनी हज़ारिका ने अपने बगीचे में 50 किस्म की फल-सब्जियों के अलावा, छह से आठ किस्मों के गुलाब भी उगाएं हैं। आज उनसे सीखिए, घर पर गमलों में गुलाब उगाने के कुछ आसान टिप्स।
डिब्रूगढ़, असम के रहने वाले 56 वर्षीय चाय किसान, दुर्लभ गोगोई ने 15 से ज्यादा फूड प्रोसेसिंग मशीनें बनाई हैं। जिनमें चाय, धान, हल्दी, अगर और अदरक जैसी फसलों को प्रोसेस करने वाली मशीनें शामिल हैं।
IAS डॉ. लक्ष्मी प्रिया एम एस के निर्देशन में असम के बोंगाईगांव जिले में, पर्यावरण के अनुकूल कई योजनाओं पर काम किया जा रहा है, जैसे- सौर स्ट्रीट लाइट लगाना, कचरे का प्रबंधन आदि। इसके साथ ही, उन्होंने 8000 बेकार प्लास्टिक की बोतलों से, एक सार्वजनिक शौचालय का निर्माण भी कराया है।
रानी गाइदिन्ल्यू, एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने मात्र 13 साल की उम्र में ब्रिटिश सरकार और उनकी नीतियों के विरुद्ध अभियान चलाया था और अपनी क्रांति के लिए 14 साल तक कारावास में भी रहीं।
असम के दो दोस्त, उपामन्यु और अंशुमान ने दिल्ली में अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर चाय का स्टार्टअप शुरू किया और अब इसके ज़रिए वह 'वूलह' ब्रांड नाम से 100% प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल 'ट्रूडिप' टी-बैग बना रहे हैं!