23 वर्षीय अमर लाल कभी भी वकील बनने का अपना सपना पूरा नहीं कर पाते यदि नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी नहीं होते। आज अमर लाल नोयडा में कानून की पढाई कर रहे हैं। बाल मजदूरी के शिकार, अमर को पांच साल की उम्र में सत्यार्थी के बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) के जरिये बचाया गया था।
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निशा डागर
बातें करने और लिखने की शौक़ीन निशा डागर हरियाणा से ताल्लुक रखती हैं. निशा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी ग्रेजुएशन और हैदराबाद विश्वविद्यालय से मास्टर्स की है. लेखन के अलावा निशा को 'डेवलपमेंट कम्युनिकेशन' और रिसर्च के क्षेत्र में दिलचस्पी है.
ट्रेनों के रख-रखाव और मरम्मत में मदद करेगा भारतीय रेलवे का 'उस्ताद'!
भारतीय रेलवे के नागपुर डिवीज़न ने एक अनोखा रोबोट तैयार किया है। इस रोबोट के जरिए ट्रेन के निचले हिस्से के न सिर्फ फोटोग्राफ लिए जा सकेंगे बल्कि उसके पूरे हिस्से की जांच भी की जा सकती है। इस रोबोट को 'अंडर गियर सर्विलेंस थ्रू आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस असिस्टेड ड्रॉइड' या 'उस्ताद' (USTAD) नाम दिया है।
हिंदी साहित्य के 'विलियम वर्ड्सवर्थ' सुमित्रानंदन पंत!
दिल्ली : अपनी जान जोखिम में डाल कर, ऑटो चालक ने माँ-बेटे को डूबने से बचाया!
दिल्ली के पवन शाह नामक एक ऑटो ड्राईवर ने हाल ही में, एक महिला और उसके एक साल के बेटे को पानी में डूबने से बचाया। हालांकि, इन दोनों की जान बचाने में पवन खुद तेज बहाव के साथ बह गये। दक्षिण-पूर्व दिल्ली के डीएसपी ने बताया कि इस नेक काम के लिए उनका नाम जीवन रक्षक अवॉर्ड के लिए नामित किया जाएगा।
बीना दास : 21 साल की इस क्रांतिकारी की गोलियों ने उड़ा दिए थे अंग्रेज़ों के होश!
बाज़ार से प्लास्टिक का नहीं बल्कि खुद बीज बो कर उगाया अपना क्रिसमस ट्री!
क्रिसमस डे पर केरल के वायनाड जिले में एक 9वीं कक्षा के छात्र एलन ने कुछ अलग ही तरह का क्रिसमस पेड़ बनाया। उसने एक बड़े बांस के फ्रेम को मिट्टी से अच्छे से ढका और फिर इस मिट्टी में कंगनी (मलयालम में थीना) के बीज बो दिए। जैसे ही ये बीज अंकुरित होंगे, यह एक हरे-भरे क्रिसमस पेड़ की शक्ल ले लेगा।
बाबा आमटे: कुष्ठ रोगियों को नया जीवन दान देने के लिए छोड़ दी करोड़ों की दौलत, बन गये समाज-सेवी!
डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे को सभी लोग 'बाबा आमटे' के नाम से जानते हैं। बाबा आमटे भारत के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी थे। उनका जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में एक ब्राह्मण जागीरदार परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना पूरा जीवन कुष्ठ रोगियों व आदिवासियों की सेवा में लगा दिया।