मुंबई में रहने वाले धर्मेंद्र कर, एक पर्यावरण संरक्षक हैं। उन्होंने ओडिशा और मुंबई में, अब तक 8000 से ज्यादा पेड़-पौधे लगवाए हैं और मुंबई की खारघर झील को साफ करके संरक्षित किया है। इसके लिए, उन्हें 'वाटर हीरो 2020' पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में 140 एकड़ में फैले अपने 'जिलिंग एस्टेट' की देखभाल के लिए 78 वर्षीय स्टीव लाल, भारतीय वायु सेना की नौकरी छोड़ कर वापस आ गए थे और तब से वह यहां पर लगाए अपने बाग, जंगल और जीव-जंतुओं की देखभाल कर रहे हैं।
कोचीन, केरल में रहने वाली दीविया थॉमस ने साल 2008 में पुराने अखबारों से बैग बना कर अपने काम की शुरुआत की थी और आज वह इको-फ्रेंडली बैग के साथ-साथ डिब्बे, कार्ड, पेपर-पेन जैसे उत्पाद भी बना रहीं हैं।
बिहार के भागलपुर स्थित मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा 2006 से क्षेत्र में बड़े गरूड़ों के संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए संघर्षरत हैं। उनके प्रयासों से यहाँ इस संकटग्रस्त प्रजाति की संख्या 78 से 600 तक पहुँच गई है।
संदीप सिंह द्वारा ब्लू ट्राइब फूड की शुरुआत नवंबर 2020 में की गई। इसके द्वारा फिलहाल, इकोफ्रेंडली Plant-Based Chicken Nuggets को पेश किया जा रहा है। वे जल्द ही ‘प्लांट बेस्ड चिकन कीमा’ को पेश करेंगे।
ऐतिहासिक सेव साइलेंट वैली आंदोलन के दौरान मराठिनु स्तुति (Ode to a Tree) नाम की एक कविता इस आंदोलन की पहचान बन गई। इस कविता को आवाज सुगत कुमारी ने दी थी, जो इस आंदोलन का नेतृत्व भी कर रही थीं।
अंडमान निकोबार द्वीप समूह में रहने वाले जोरावर पुरोहित ने साल 2017 में, अपने तीन दोस्तों अखिल वर्मा, आदित्य वर्मा और रोहित पाठक के साथ मिलकर आउटबैक हैवलॉक को शुरू किया। यह पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है। इस द्वीप पर बेकार पड़े 5 लाख बोतलों को रीसायकल कर बनाया गया है।
आईएफएस अधिकारी विकास उज्जवल ने झारखंड के लोहरदगा जिले में वन प्रमंडल अधिकारी के रूप में अपना पदभार संभालने के बाद, यहाँ 3 लाख से अधिक पौधे लगाए गए। जिससे जंगल की समृद्ध जैव विविधता को पुनर्स्थापित करने में मदद मिली।
साल 1997 तक, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिला के झारबगड़ा गाँव एक समय 50 किलोमीटर के दायरे में हर ओर से बंजर जमीनों से घिरा हआ था। लेकिन, आज यहाँ के करीब 387 एकड़ जमीन पर घने जंगल लगे हुए हैं और यह कई प्रकार के पशु-पक्षियों का घर है।
उत्तराखंड के नैनीताल जिला के नाई गाँव के रहने वाले चंदन सिंह नयाल की उम्र कम है, लेकिन उनके इरादे बेहद ऊंचे। चंदन ने जब देखा कि चीड़ और बुरांश के जंगलों में आग लग रही है और जमीन सूख रही है तो उन्होंने अपनी लगन से चामा तोक इलाके में बांज का जंगल तैयार कर दिया।