राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र द्वारा तैयार किये गये वेस्ट डीकम्पोज़र से किसानों को बहुत फायदा मिल रहा है। इसकी मदद से किसान खेतों की उर्वरकता बढ़ा सकते हैं और साथ ही, इसे किचन आदि से निकलने वाले कचरे में मिलाकर जैविक खाद तैयार कर सकते हैं। वेस्ट डीकम्पोज़र की शीशी आपको मात्र 20 रूपये में मिल जाएगी।
राजस्थान में सीकर जिले के गिरधारीपुरा गाँव के निवासी श्रवण कुमार बाज्या को हाल ही में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन- इंडिया द्वारा सम्मानित किया है। उन्हें यह सम्मान उनके द्वारा बनाई गयी एक मशीन 'अनियन हार्वेस्टर' के लिए मिला है।
राजस्थान के सीकर जिले से ताल्लुक रखने वाले जगदीश प्रसाद पारीक साल 1970 से खेती कर रहे हैं। पारम्परिक खेती के अलावा वे अपने दो हेक्टेयर खेत में अनार, निम्बू, वुड एप्पल, और गुलाब के साथ-साथ फूलगोभी भी उगाते हैं। उनकी गोभी की खेती के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड्स में शामिल किया गया है।
गुजरात के बनासकांठा जिल्ले के छोटे से गाँव चंदाजी गोलिया में खेताजी का जन्म हुआ। खेताजी के पिता पारम्परिक खेती करते थे। वे आलू, बाजरा और मूंगफली उगाते थे। उन दिनों आलू के अच्छे-ख़ासे दाम मिलते थे और खेताजी के पिता के परिवार की ज़रूरत उनसे पूरी हो जाती थी।
अब वक्त आ गया है कि हम किसानी को एक पेशे की तरह पेश करें। दरअसल किसान को हमें केवल मजबूत ही नहीं बल्कि स्मार्ट भी बनाना होगा। वैसे यह भी सच है कि स्मार्ट सिटी की बहसों के बीच स्मार्ट किसान हमें खुद ही बनना होगा।
ये कहानी है कनिका आहूजा की, जिन्होंने कॉर्पोरेट नौकरी छोड़कर इस घटना से प्रभावित होकर अपनी ज़िन्दगी का मकसद बदल लिया। और हरियाणा के बहादुरगढ़ के बच्चों के हालात बदलने में जुट गयीं। कनिका इस कम्युनिटी में आधे दशक से रह रही हैं.
मांड्या जिले के छोटे से गाँव में रहने वाले सैयद गनी खान एक संग्रहालय (म्यूज़ियम) में संरक्षक है। उन्होंने एक अनूठी पहल की और एक ऐसा म्यूज़ियम तैयार कर दिया.
ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण के बढ़ते कहर के बारे में जहाँ एक तरफ हम सिर्फ चिंता कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर केरल के कुछ परिवार जुटे हैं एक जैविक गाँव बनाने में। मोहन चावड़ा के मार्गदर्शन में बन रहा यह गाँव एक प्रेरणा हैं आने वाली पीढ़ियों को एक खूबसूरत दुनिया सौंपने का और बेहतर भारत बनाने का।