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मछली पालन, बांस की खेती और आम- लीची : इन सबने बनाया मजबूरी में बने इस किसान को लखपति !

अमरेश एक इंजिनियर बनना चाहते थे पर पिता की बीमारी की वजह से उन्हें गाँव लौटना पड़ा पर फिर वे मछली पालन, बांस की खेती और आम-लीची की खेती कर लखपति बन गए!


“किसान की आवाज “के आज के अंक में हम आपको ऐसे युवा किसान से मुलाकात कराने जा रहे हैं, जिसकी कहानी संघर्ष से शुरु होती है पर ख़त्म सफलता से !

दार्जिलिंग के समीप कर्सियांग के गोथेल्स मेमोरियल स्कूल में 90 के दशक में एक बच्चे का दाखिला होता है। उसने दसवीं तक वहीं पढ़ाई की और फिर इंजिनियर बनने का सपना लिए सिलिगुड़ी में आगे की पढ़ाई करने निकल जाता है लेकिन इसी बीच अचानक पिता की तबियत खराब होती है और वह लौट आता है अपने गांव-घर। और फिर यहीं से शुरु होती है उसके संघर्ष की कहानी। वह लड़का अब पिता की सेवा के साथ-साथ किसानी करने लगता है, यह साल 2000 की बात है।

यह कहानी है बिहार के कटिहार जिले के दलन के समीप स्थित भवारा कोठी के किसान अमरेश चौधरी की।

अमरेश ने द बेटर इंडिया को बताया कि जब वे साल 2000 में बिहार के अपने गांव लौटकर आए तब उनके पिताजी बिछावन पकड़ चुके थे। कॉलेज की पढ़ाई बीच में ही रुक गई और अब उन्हें घर संभालना था।

अमरेश ने कहा- “ पिताजी पारंपरिक खेती करते थे और मछली पालन भी किया करते थे लेकिन इसमें आय नहीं थी। मैंने देखा कि खेती से और मछली पालन से जो पैसा आता है उससे तो घर चलाना मुश्किल है। लगभग लाख रुपये आते थे उस वक्त। मैंने मछली पालन को व्यवसायिक रुप देने का बीड़ा उठाया।“

अमरेश ने हैदाराबाद स्थित राष्ट्रीय मत्सियकी विकास बोर्ड ( National Fisheries Development Board)  से संपर्क किया और वहां से प्रशिक्षण प्राप्त किया।

 

उन्होंने बताया – “ पिताजी के समय दो पोखर थे लेकिन मैंने अब सात पोखर तैयार कर लिए हैं और अब साल में मेरी आमदनी केवल मछली से छह से सात लाख रुपये की बीच हो जाती है। “

मछली पालन

अमरेश को मछली पालन की ट्रेनिंग लेने से कई फायदे मिले हैं। दरअसल मछली के नस्ल की जानकारी सबसे महत्वपूर्ण है। बाजार को हर दिन किस तरह की मछली चाहिए, इसकी भी जानकारी मछली पालक को रखनी चाहिए। अमरेश का कहना है कि यह सारा ज्ञान उन्हें हैदराबाद में ट्रेनिंग लेने के बाद ही मिला।  यहाँ तक कि उन्हें वहां यह भी पता चला कि मछली का चारा कितना महत्वपूर्ण है।

बांग्लादेश की प्रमुख मछली चितल भी वे पालते हैं। चितल मछली 400 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव से बाजार में बिकती है और बाजार में इस मछली की मांग हर दिन होती है। पश्चिम बंगाल के रायगंज इलाके से वे छोटी मछलियां लाते हैं और फिर उसे अपने तालाब में छोड़ देते हैं।

शुरुआत में हुई कठिनाई

अमरेश जब हैदराबाद से प्रशिक्षण प्राप्त कर अपने गांव लौटे तो मछली की जिस प्रजाति को वे तालाब में पालना चाहते थे उसे लेकर उन्हें स्थानीय लोगों ने कहा कि बाजार में इस तरह की मछली की मांग नहीं है। जब पहली बार वे मछली को बाजार में पहुंचाने गए तो उन्हें निराशा हाथ लगी लेकिन साल भर के भीतर ही उन्होंने बाजार के अनुसार मछली का पालन आरंभ कर दिया और अब तो बाजार में उनके ही तालाब की मछलियों की सबसे अधिक मांग होती है।

अमरेश के अनुसार मत्स्य पालन के लिए अच्छी नस्ल में रोहू, सिल्वर कार्प, कतला, म्रगल, ग्रास कार्प आदि नस्लें होती है और आपको मत्स्य पालन के लिए यही नस्लें खरीदनी चाहिए। इसके लिए आप अपने जिले के मत्स्य पालक विकास अभिकरण से सम्पर्क कर सकते हैं, जो कि हर जिले में होता है और यहां से आप इसके बारे में और जानकारी ले सकते हैं।

मछली के लिए आहार कैसे तैयार करें

मछलियों के आहार के लिए सबसे बेहतर होता है आप चावल का आटा तैयार करें। उसके बाद चावल के आटे में कुछ मात्रा में पानी मिलाकर आप उसकी गोलियां बना लें: इसे मछलियाँ बड़े चाव से खाती हैं। कई लोग गेहूं के आटे की गोलियां भी मछलियों को देते हैं। इसके साथ ही आपको इन मछलियों को खिलाने के लिए कई चीज़ें अपने आस-पास से ही प्राप्त हो जायेंगी, जैसे कि सरसों की भूसी भी आप घर में ही तैयार कर सकते हैं।

मछली को कब निकाले और कैसे निकाले

मछली एक वर्ष के भीतर ही एक या डेढ़ किलो वजन की हो जाती है। मछली का वजन एक से डेढ़ किलो होते ही समझ जाए कि वो मछली आपके बाजार में जाने के लिए तैयार है।

मछली पालन से प्रतिदिन 9000 रुपये का रोजगार देते है अमरेश!

अमरेश ने कहा कि मछली पालन से अच्छा पैसा मिलता है। वे हर रोज मछली बाजार भेजते हैं, जिसमें लगभग तीस लोगों को रोजगार मिलता है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार वे प्रतिदिन 9000 रुपये के रोजगार का भी सृजन कर रहे हैं (30 आदमी x 300 रुपये)।

बांस की खेती

अमरेश मछली पालन के अलावा बांस की भी खेती करते हैं। वे बांस मिशन से भी जुड़े हैं। अब तो वे कटिहार जिला में बांस का उत्पादन करने वाले सबसे बड़े किसान बन गए हैं।

उन्होंने बताया – “बांस नकदी फसल है। हर किसान को कुछ हिस्से में बांस जरुर लगाना चाहिए। मैं 13 एकड़ में बांस की खेती करता हूं जिससे मुझे साल में 3 लाख रुपये की आमदनी हो जाती है। हर किसान को बांस की खेती करनी चाहिए। यदि आप एक एकड़ में बांस लगाते हैं तो पांच साल में वह कटने के लायक हो जाता है और वह अच्छी राशि आपको देता है।“

उन्होंने बताया कि मछली के तालाब से कुछ ही दूरी पर बांस लगाने से कई फायदे होते हैं। दरअसल बांस छाया नहीं करता है और इससे तालाब की सुरक्षा भी होती है।

आम-लीची की खेती भी करते है अमरेश!

अमरेश आम और लीची की खेती वे इसलिए करते हैं कि इन दोनों फलों का स्थानीय बाजार में दबदबा होता है। साथ ही अच्छी आय हो जाती है। उन्होंने बताया कि यदि आपके पास दस लीची के पेड़ हैं तो वे साल में कम से कम 20 हजार रुपये आपको देंगे ही। साथ ही आम-लीची के बगान में आप मधुमक्खी पालन कर सकते हैं, जो एक और आय का साधन है!

12 लाख रुपये तक सलाना कमा रहे हैं अब!

अमरेश चौधरी अपने बेटे के साथ

सन 2000 में किसानी से अमरेश के परिवार की आय केवल लाख डेढ़ लाख रुपये थी लेकिन आज मछली, बांस, आम-लीची और सब्जी की खेती से वे 12 लाख रुपये तक सलाना कमा लेते हैं। अमरेश को अब इस बात का गर्व है कि वे खेती करते हुए अपने बच्चों को बाहर घूमाने ले जाते हैं। उनकी आमदनी इतनी हो जाती है कि वे बच्चों को छुट्टी मेंं पहाड़ों पर घूमाने ले जाते हैं। अमरेश ने कहा कि अब उन्हें इस बात का दुख नहीं है कि वे मैकेनिकल इंजीनियर नहीं बन सके। एक किसान के तौर पर वे अपने जीवन से संतुष्ट हैं।

उन्होंने कहा- “अब लगता है कि किसानी का पेशा बुरा नहीं है। मैं खेती से हुई आमदनी से अपने दोनों बच्चों को दार्जिलिंग में पढ़ाता हूं। जो पढ़ाई मैं पूरी न कर सका, मेरे दोनों बच्चे वह काम पूरा करेंगे। सच कहूं तो मैं अपने काम से संतुष्ट हूं। मेरा परिवार भी खुश है।“

किसानों के लिए अमरेश के टिप्स : स्मार्ट बनना होगा किसानों को!

अमरेश का कहना है कि किसानी के पेशे से जुड़े लोगों को पारंपरिक खेती के साथ बाजार को ध्यान में रखकर भी खेती करनी चाहिए।

“सब्जी और मछली, दो ऐसी चीजें हैं जो आपको रोज पैसा देगी। बस जरुरत है कि आप अपने फार्म में लगे रहें। छोटा सा भी पोखर जरुर रखें और मछली पालें। मैं हर तरह की मछली बाजार भेजता हूं ताकि पैसा आता रहे। किसान को जागरुक बनना होगा। सरकारी योजनाओं का लाभ लेना होगा। यह सच है कि सरकारी योजनाओं का लाभ हासिल करने में दिक्कतें आती है लेकिन यदि किसान चाहे तो कुछ भी असंभव नहीं है। खुद किसान को यह प्रतिज्ञा लेनी चाहिए कि वह अपने प्लेट के लिए कुछ भी बाजार से नहीं खऱीदेगा। रोज की सब्जी हो या फिर तेल-मसाला, यह सबकुछ किसान को उपजाना चाहिए।”

अमरेश का कहना है कि किसान को स्मार्ट बनना होगा और यदि किसी किसान के पास पर्याप्त जमीन है, उसका यह दायित्व बनता है कि वह अन्य लोगों को रोजगार भी दे!

अमरेश से संपर्क करने के लिए आप hindi@thebetterindia.com पर ईमेल कर सकते हैं!

( संपादन – मानबी कटोच )


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