डॉ मंजू वासुदेवन और डॉ श्रीजा केरल के आदिवासियों के जीवन में एक उम्मीद की किरण बनकर आई हैं। उनका फारेस्ट पोस्ट उद्यम आदिवासियों के लिए एक नियमित आय का जरिया है।
छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) के पातालकोट निवासी, सुकनसी भारती ने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और पर्यावरण को बचाने के उदेश्य से, पत्तों से कटोरी (दौना) बनाना सीखा। आज वह, आस-पास के गावों और होटलों में अपने दौने बेच रहे हैं।
'आदिवासी जनजागृति' ने पिछले 3 महीनों में न सिर्फ कोरोना पर जागरूकता लाने का काम किया है बल्कि फेक न्यूज, मजदूरों की समस्या सहित इस दौरान बढ़े करप्शन को भी उजागर किया है।
मारिया ने 'मेक ईट हैप्पन' को हॉबी ट्रैवल क्लब के रूप में शुरू किया था। इसे शुरू करने के पीछे उनका उद्देश्य छुट्टियों के प्रति लोगों का नज़रिया बदलना था।
डॉ. रेगी एम. जॉर्ज और डॉ. ललिता पिछले 25 सालों से Tamilnadu के सित्तिलिंगी गाँव में आदिवासियों को अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं। एक झोपड़ी से शुरू हुए अस्पताल को उन्होंने आज 35 बैड वाले आधुनिक अस्पताल में तब्दील कर दिया है।