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डॉक्टर्स की पहल का नतीजा! अब हेयर ऑयल से लेकर अचार तक बना रहे आदिवासी, कई गुना बढ़ी आय

डॉ मंजू वासुदेवन और डॉ श्रीजा केरल के आदिवासियों के जीवन में एक उम्मीद की किरण बनकर आई हैं। उनका फारेस्ट पोस्ट उद्यम आदिवासियों के लिए एक नियमित आय का जरिया है।

गाँव का इको फ्रेंडली स्टार्टअप, पातालकोट के सुकनसी से खरीदिए पत्तों से बनी कटोरियाँ

By प्रीति टौंक

छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश) के पातालकोट निवासी, सुकनसी भारती ने अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार लाने और पर्यावरण को बचाने के उदेश्य से, पत्तों से कटोरी (दौना) बनाना सीखा। आज वह, आस-पास के गावों और होटलों में अपने दौने बेच रहे हैं।

एक वन अधिकारी की कोशिशों ने बांस को बनाया ब्रांड और फिर गाँव में खुल गया मॉल

By नेहा रूपड़ा

गुजरात के विसदालिया गाँव को बांस के काम के लिए देश भर में पहचान दिलाने में भारतीय वन सेवा के अधिकारी पुनित नैयर की अहम भूमिका रही है!

जहाँ बिजली भी नहीं पहुँचती, वहाँ आदिवासी भाषाओं में जानकारी पहुँचाते हैं ये पत्रकार!

By द बेटर इंडिया

'आदिवासी जनजागृति' ने पिछले 3 महीनों में न सिर्फ कोरोना पर जागरूकता लाने का काम किया है बल्कि फेक न्यूज, मजदूरों की समस्या सहित इस दौरान बढ़े करप्शन को भी उजागर किया है।

यह युवती बांस से बना रही है इको-फ्रेंडली ज्वेलरी, तिगुनी हुई आदिवासी परिवारों की आय!

By निशा डागर

साल 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार डांग आर्थिक तौर पर भारत का सबसे पिछड़ा हुआ जिला था, पर सलोनी के यहाँ आने के बाद से बदलाव की शुरुआत हो चुकी है।

आदिवासियों तक स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुंचाने के लिए कई किमी पैदल चलता है यह डॉक्टर!

By निशा डागर

"मैंने ठाना कि अगर मरीज़ अस्पताल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं तो अस्पताल उन तक पहुंचेगा!"

MNC की नौकरी ठुकरा, उड़ीसा-बिहार के किसानों की ज़िंदगी बदलने में जुटा है यह IIT ग्रेजुएट!

By निशा डागर

'बैक टू विलेज' के साथ अब तक 5000 किसान रजिस्टर्ड हो चुके हैं। उनके काम को देखते हुए इस साल उन्हें ONGC कंपनी ने सीएसआर फंडिंग दी है!

छुट्टियों में महंगे होटल्स नहींं, आदिवासियोंं के साथ जीवन अनुभव कराती है यह ट्रैवल कंपनी!

By निशा डागर

मारिया ने 'मेक ईट हैप्पन' को हॉबी ट्रैवल क्लब के रूप में शुरू किया था। इसे शुरू करने के पीछे उनका उद्देश्य छुट्टियों के प्रति लोगों का नज़रिया बदलना था।

25 साल पहले झोपड़ी में शुरू हुआ था अस्पताल, अब हर साल हो रहा है 1 लाख आदिवासियों का इलाज!

डॉ. रेगी एम. जॉर्ज और डॉ. ललिता पिछले 25 सालों से Tamilnadu के सित्तिलिंगी गाँव में आदिवासियों को अच्छी और सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान कर रहे हैं। एक झोपड़ी से शुरू हुए अस्पताल को उन्होंने आज 35 बैड वाले आधुनिक अस्पताल में तब्दील कर दिया है।