गुना (मध्य प्रदेश) के रुठिआई गांव के 44 वर्षीय केदार सैनी एक गरीब किसान परिवार से आते हैं। लेकिन पर्यावरण के प्रति उनका जो लगाव है, वह उन्हें काफी खास बना देता है। वह पेड़-पौधों और देसी बीज के विषय में बेहद अच्छी जानकारी रखते हैं और इसका इस्तेमाल करके वह शहर में हरियाली भी फैला रहे हैं। साल 2019 से वह गेल इंडिया और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे प्रोजेक्ट्स पर पौधे लगाने का काम कर रहे हैं।
अपने पौधों के प्रति लगाव के कारण ही वह दुर्लभ सब्जियों, फलों और जड़ी-बूटियों आदि के बीज इकट्ठा करने का काम भी करते हैं।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह इन बीजों को साल 2013 से न सिर्फ जमा कर रहे हैं, बल्कि जरूरमंद किसानों को मुफ्त में बाँट भी रहे हैं। हालांकि कोरोना महामारी के बाद, उन्होंने बीज के लिए मात्र डाक शुल्क लेना शुरू किया है।
केदार ने द बेटर इंडिया से बात करते हुए बताया, “मैंने अब तक देश के 17 राज्यों में अलग-अलग किसानों को डाक के जरिए देसी सब्जियों और औषधीय पौधों के बीज पहुचाए हैं। यह काम मैं पैसों के लिए नहीं करता, बल्कि सिर्फ इसलिए करता हूँ, ताकि इन देसी किस्मों के बीज सालों साल सुरक्षित रहें और हमारी आने वाली पीढ़ी भी हमारे देसी खाने का स्वाद चख सके।”
बचपन से था देसी बीज जमा करने का शौक
केदार ने हिंदी विषय में एम ए किया है। लेकिन वह हमेशा अपने पिता के साथ खेतों में काम किया करते थे। वह कहते हैं, “मेरी माँ के नाम पर मात्र चार बीघे जमीन थी, इसलिए हम दूसरों के खेत किराए पर लेकर खेती करते थे। लेकिन मुझे पारम्परिक खेती से कहीं ज्यादा बागवानी में रुचि है।” केदार हमेशा से अलग-अलग किस्म की सब्जियां उगाते और देसी किस्मों के बीज यहां-वहां से जमा करते आए हैं।
बारिश के मौसम में तो वह इन देसी बीजों को इकट्ठा करके बेचा भी करते थे। वह कहते हैं, “जब मैं सातवीं-आठवीं कक्षा में पढता था, तब बारिश के समय हम सभी दोस्त एक-एक रुपये में देसी बीज के पैकेट्स बनाकर हाट में बेचते थे। इससे हम थोड़ी पॉकेट मनी बना लेते थे। समय के साथ यह शौक बढ़ने लगा।”
वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर खुद भी बहुत पौधारोपण का काम करते रहते थे। उनके पौधों के प्रति इसी लगाव के कारण ही उन्हें गुना के विजयपुर शहर में गेल इंडिया लिमिटेड (Gas Authority of India Limited) में पेड़ों के मेंटेनेंस का काम भी मिला। उन्होंने बताया कि साल 2007 तक वह सिर्फ खेती ही कर रहे थे। लेकिन उनके अनुभव के कारण, जब उन्हें नौकरी करने का प्रस्ताव मिला, तो उनके माता-पिता खुश हो गए थे। क्योंकि उन्हें लगा कि अब किसी तरह से घर में नियमित आय आती रहेगी। हालांकि, उस दौरान उन्हें मात्र चार हजार रुपये ही मिला करते थे।
लेकिन समय के साथ उन्हें गेल के ही अलग-अलग जगहों पर काम मिलने लगा। कभी उन्हें सिविल मेंटेनेंस का काम मिला, तो कभी पेट्रो स्टोर मैनेजर का। लेकिन गेल के बागवानी विभाग से वह हमेशा जुड़े रहे। इसके अलावा, केदार ने खुद के स्तर पर पौधे लगाने और बीज जमा करने का काम भी जारी रखा।
केदार कहते हैं, “मेरी जेब में आपको हमेशा बीज मिल ही जाएगें। मेरे पास देसी बैंगन, खीरा, गेंहू सहित करीबन 140 तरह के बीज हैं। लेकिन इन सारे बीजों की देखभाल करना मेरे लिए काफी मुश्किल का काम है। क्योंकि मैं पौधरोपण के काम के लिए अलग-अलग शहरों में घूमता रहता हूँ। इसलिए मैं सोशल मीडिया के जरिए लोगों को भी बीज पंहुचा रहा हूँ।”
केदार कहते हैं कि कोरोना के बाद सरकार ने हर एक आवासीय योजना, सरकारी इमारतों या रोड जैसे प्रोजेक्ट्स पर पौधे लगाने का काम अनिवार्य कर दिया है, जिसके तहत केदार को भी काम ज्यादा मिल रहा है।
फिलहाल केदार, इंदौर में प्रधानमंत्री निवास योजना के तहत बने प्रोजेक्ट में पौधे लगाने का काम कर रहे हैं। वहीं, वह खुद के स्तर पर भी समृद्धि पर्यावरण संरक्षण अभियान नाम से एक मिशन चला रहे हैं। इसके ज़रिए, वह मानसून में लोगों को ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। केदार पौधरोपण के अभियान से लोगों को जोड़ने के लिए सोशल मीडिया की मदद लेते हैं।
आप केदार के बीज कलेक्शन या उनके काम के बारे में ज्यादा जानने के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर सम्पर्क कर सकते हैं।
संपादनः अर्चना दुबे
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