वेब सीरीज पंचायत में उपप्रधान के किरदार से लोगों के दिलों में बसने वाले फैसल मलिक को जब लुक्स की वजह से काम नहीं मिल रहा था, तो वह लोगों से कहते अगर किसी को काला मोटा और गंदा दिखने वाले आदमी की जरुरत है तो मुझे बुला लो, दूसरों को न सही लेकिन फैसल को अपने हुनर पर भरोसा था और आज उसी भरोसे और स्ट्रगल के दम पर उन्होंने अपनी खास पहचान बनाई है।
चेन्नई के कीलकट्टलाई में जन्मे बालमुरुगन के पास कभी अख़बार तक पढ़ने के पैसे नहीं होते थे, तब पढ़ने के लिए उन्होंने 9 साल की उम्र में अखबार बेचना शुरू किया और मेहनत कर बने गए अधिकारी।
ओड़िशा के रहने वाले सूरज कुमार बेहरा के पिता एक अस्पताल के सामने चाय की रेहड़ी लगाते हैं। बचपन से ही सूरज का सपना था कि वह डॉक्टर बनें। लेकिन कोचिंग की फ़ीस भरने तक के पैसे नहीं थे। पढ़ें, ऐसे हालातों के बावजूद सूरज ने कैसे NEET क्रैक करके बदली अपनी और परिवार की क़िस्मत।
बाड़मेर की बेटी लक्ष्मी गढ़वीर मिसाल बन गई हैं। छोटे से गाँव मंगले की बेरी की छोटी सी मेघवालों की बस्ती की रहने वाली लक्ष्मी, दलित समुदाय से अपने जिले की पहली महिला सब-इंस्पेक्टर बन गई हैं!
वाराणसी, उत्तर प्रदेश के रहनेवाले डॉ. सुबोध कुमार सिंह अमेरिका के एक एनजीओ स्माइल ट्रेन के साथ मिलकर कटे होंठ वाले नवजात शिशुओं की मुफ्त सर्जरी करते हैं।
पलक कोहली, सकीना खातून, ज्योति बलिया, अरुणा तंवर, प्रमोद भगत, अवनी लेखरा, पारुल परमार, रूबिना फ्रांसिस, कशिश लाकर और मनीष नरवाल! ये कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्होंने जिंदगी के हर मोड़ पर संघर्ष किया है। लेकिन, न तो इन्होंने हार मानी और न ही अपने मनोबल को टूटने दिया। जानते हैं, पैरालंपिक तक पहुंचने के उनके सफर को।