चाय की रेहड़ी पर पिता की मदद करने के साथ की तैयारी, छठे प्रयास में सूरज ने निकाला NEET

Suraj with his parents

ओड़िशा के रहने वाले सूरज कुमार बेहरा के पिता एक अस्पताल के सामने चाय की रेहड़ी लगाते हैं। बचपन से ही सूरज का सपना था कि वह डॉक्टर बनें। लेकिन कोचिंग की फ़ीस भरने तक के पैसे नहीं थे। पढ़ें, ऐसे हालातों के बावजूद सूरज ने कैसे NEET क्रैक करके बदली अपनी और परिवार की क़िस्मत।

अगर आप दिल से कुछ करना चाहते हैं तो पैसे या संसाधनों की कमी आपका रास्ता नहीं रोक सकते। ओड़िशा स्थित फूलबाणी के रहने वाले सूरज कुमार बेहरा की कहानी भी इसी बात पर आधारित है। सूरज के पिता फूलबाणी के एक अस्पताल के सामने चाय की रेहड़ी लगाते हैं। पिता के पास कोचिंग की फ़ीस के लिए पैसे नहीं थे इसलिए सूरज ने यूट्यूब देखकर पढ़ाई की। पांच बार असफल हुए, लेकिन हौसला नहीं खोया। इस बार छठे अटेम्प्ट में उन्होंने NEET (नेशनल एंट्रेंस एलिजिबिलिटी टेस्ट) निकाला है।

अब उनका सपना डॉक्टर बनकर समाज की सेवा करने का है।

पिता के साथ रेहड़ी पर काम के साथ-साथ की पढ़ाई, आसान नहीं था यह सफ़र

द बेटर इंडिया से ख़ास बातचीत में सूरज ने, अपने यहां तक के सफ़र और इस दौरान आईं मुश्किलों के बारे में बताया।

वह हर रोज़ अपने पिता के साथ रेहड़ी पर हाथ बंटाने जाते हैं। इसके बावजूद उन्होंने NEET में 720 में से 635 अंक हासिल किए हैं।

सूरज कहते हैं कि उनके लिए यह सफ़र आसान नहीं था। घर में दादी हैं, मां रूनू बेहरा हैं, दो भाई हैं, और कमरा केवल एक। उन्हें ऐसे ही मैनेज करना था। दोपहर तक काम करने के बाद वह घर आते तो कई बार शोर के बीच पढ़ाई नहीं हो पाती थी। लेकिन इसके बाजवूद उन्होंने अपना फ़ोकस बनाए रखा। उसी माहौल में पढ़ने की आदत डाल ली।

वह आगे बताते हैं, “हम जब अपने लिए एक मंज़िल निश्चित कर लेते हैं तो रास्ते में कठिनाइयां कितनी भी हों, उनका असर कम होना शुरू हो जाता है मेरे साथ भी यही हुआ।”

Suraj celebrating with parents.

2017 से लगातार दे रहे NEET की परीक्षा, पांच साल बाद मिली क़ामयाबी

सूरज बताते हैं कि वह 2017 से लगातार NEET दे रहे थे। पांच साल पहले, फर्स्ट अटेम्प्ट में उन्हें केवल 150 अंक मिले। 2018 में भी उनके लिए कुछ नहीं बदला, इसमें उन्होंने 159 अंक हासिल किए। लेकिन 2019 आते-आते उन्हें लगा कि आज-कल यूट्यूब पर सभी सब्जेक्ट्स का पूरा कोर्स मौजूद है। वह इसके ज़रिए अपनी पढ़ाई कर सकते हैं। इस साल उन्हें 367 मार्क्स हासिल हुए।
साल 2020 कोरोना महामारी के चलते उनके लिए बहुत बुरा साबित हुआ। उनके पिता की तबीयत ख़राब हो गई। ऐसे में पिता की देखभाल करते हुए, उन्होंने पढ़ाई करके NEET दिया तो इस बार फिर सुई 367 पर जाकर ही अटक गई।

पिता ठीक हुए तो एक बार फिर उन्होंने रूटीन से पढ़ाई शुरू कर दी। 2021 के NEET एग्ज़ाम में उन्हें 575 मार्क्स मिले। वह 10 अंक से फिर चूक गए।

सूरज कहते हैं कि कई बार असफल होने के बाद फिर खड़ा होना आसान नहीं होता, उन्होंने अपना हौसला बरकरार रखा। 2022 में उन्होंने फिर एग्ज़ाम दिया और इस बार 635 अंकों के साथ NEET क्रैक कर दिया।

8-10 घंटे की पढ़ाई, एप डाउनलोड किए..ऐसे की NEET की तैयारी

सूरज बताते हैं कि उन्होंने NEET के लिए हर रोज़ 8 से 10 घंटे तक पढ़ाई की।

इससे पहले उन्होंने 2017 में +2 के बाद +3 यानी बीएससी (फिजिक्स ऑनर्स) में एडमिशन लिया था, लेकिन चार सेमेस्टर की पढ़ाई के बाद, साल 2019 में बीएससी की पढ़ाई छोड़ दी। पूरा फ़ोकस NEET के लिए सेल्फ स्टडी पर लगा दिया। उन्होंने कई मोबाइल ऐप्स डाउनलोड किए और उनके मॉक टेस्ट में शामिल होने लगे।

सूरज कहते हैं, “पिताजी की इनकम भले ही कम है, लेकिन उन्होंने कभी हमें किसी चीज़ की कमी नहीं महसूस होने दी। बेशक NEET की कोचिंग की फ़ीस नहीं भर सकते थे, लेकिन ऑनलाइन पढ़ाई के लिए पेड ऐप्स पर 4-5 हज़ार रुपए का खर्च उन्होंने मैनेज किया।”

वह कहते हैं कि उन्होंने केवल मोबाइल पर लेक्चर को देखकर ही नहीं, बल्कि प्रश्नों के पीडीएफ के प्रिंट निकालकर, लिखकर भी खूब प्रैक्टिस की। NEET के पिछले करीब 10 साल के प्रश्नपत्र हल किए। इससे उन्हें बहुत मदद मिली।

किसी एक विषय पर एक समय में 45 मिनट से ज़्यादा नहीं दिए। इसका फ़ायदा यह हुआ कि वह जब भी एक सब्जेक्ट से थकते, तुरंत दूसरे पर लग जाते। थकान होती तो अलार्म लगाकर 15 मिनट की नींद ले लेते।

वह बताते हैं कि जब NEET एग्ज़ाम को केवल दो-तीन महीने ही रह गए, तो उन्होंने रेहड़ी जाना छोड़कर केवल घर में रहकर पढ़ाई को महत्त्व दिया। क्योंकि पिता शिव शंकर भी यही चाहते थे कि वह डॉक्टर बनें।

एग्ज़ाम देने से पहले NEET के बारे में कुछ नहीं पता था

सूरज कहते हैं, “मैं डॉक्टर ज़रूर बनना चाहता था, लेकिन 12वीं में आने तक मुझे NEET के बारे में नहीं मालूम था। जिस अस्पताल के सामने पिता चाय की रेहड़ी लगाते हैं, वहां के डॉक्टर 12वीं के बाद NEET की कठिन परीक्षा के बारे में बताते थे। ऐसे में इंटरनेट पर इस एग्ज़ाम के बारे में सब कुछ पढ़ा। कोरा के प्रश्न पढ़े। टॉपर्स के वीडियोज़ देखे। खुद से पूछा कि क्या मैं इस परीक्षा को निकाल सकता हूं, अंदर से हाँ में आवाज़ आई और मैंने अपनी मंज़िल तय कर ली।”

आगे की राह भी आसान नहीं

सूरज कहते हैं, “मैंने NEET भले ही निकाल लिया है लेकिन सरकारी मेडिकल कालेज में भी 50-60 हजार रुपए का खर्च आता ही है। इसका इंतज़ाम करने की कोशिश में लगे हैं। कई लोगों ने मदद की बात कही है। प्रशासन भी अपनी ओर से सहायता के लिए तैयार है। इच्छा है कि कटक या बरहमपुर स्टेट मेडिकल कॉलेज में एडमिशन लेकर आगे की पढ़ाई करूं।”

साल 2000 में जन्में सूरज ने गवर्नमेंट जूनियर कॉलेज, फूलबाणी से हाईस्कूल और गवर्नमेंट कॉलेज, फूलबाणी से 12वीं पास की। उन्हें नॉवेल पढ़ने का भी शौक़ है और फिक्शन बेहद पसंद करते हैं। हैरी पॉटर सीरीज़, टाइम मशीन आदि उनकी पसंदीदा रचनाएं हैं। उन्होंने गुड रीड का भी सब्सक्रिप्शन लिया हुआ है, ताकि वह हमेशा कुछ अच्छा पढ़ते रह सकें।

संपादन – भावना श्रीवास्तव

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