मध्य प्रदेश के बैतूल जिले का बांचा गांव देश का पहला ऐसा गांव है, जहां न किसी घर में लकड़ी के चूल्हे का इस्तेमाल होता है और न ही एलपीजी सिलेंडर का। जानिए कैसे बदली इस आदिवासी बहुल गांव की किस्मत!
मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले कुणाल वैद पहले टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काम करते थे, लेकिन 2011 में झारखंड दौरे के दौरान महिला बुनकरों को हाथ से रेशम का धागा बनाते देख, उन्हें कुछ अलग करने की प्रेरणा मिली।
तमिलनाडु के तूतुकुड़ी में रहने वाले एम शक्तिवेल के कस्बे में पहले बिजली की कोई सुविधा नहीं थी। उनके प्रयासों से कस्बे में 15 सोलर पैनल लगे और लोगों की जिंदगी से अंधेरा हमेशा के लिए दूर हो गया। पढ़िए यह प्रेरक कहानी!
नागालैंड का शिन्न्यु गांव (Nagaland Village) भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित है। 44 साल पहले बसे इस गांव में बिजली की कोई सुविधा न थी। लेकिन, एक सरकारी शिक्षक के सोशल मीडिया पोस्ट ने उन्हें एक नई उम्मीद दी है। पढ़िए यह प्रेरक कहानी!
तमिलनाडु में चेन्नई के महिंद्रा वर्ल्ड सिटी में चाय का स्टॉल चलाने वाले एस. दामोदरन पिछले छह महीने से सौर ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं। जिस कारण छह महीने से उन्हें न तो बिजली की समस्या हुई है और न ही बिजली के लिए कहीं और पैसे खर्चने पड़े हैं।
कच्छ का भुज शहर, अपनी रेतीली मिट्टी और कम वर्षा के लिए जाना जाता है, लेकिन भुज के गोर परिवार ने एक ऐसा हरा-भरा आशियाना बनाया है, जो पूरी तरह से इको फ्रेंडली है और आत्मनिर्भर है।